लंबे समय तक बरकरार रहेगा सेक्सोफोन की दुनिया कार्यक्रम का असर..

रायपुर. सुर और ताल के मुरीदों के शहर रायपुर में यूं तो हर रोज संगीत का कोई न कोई आयोजन होता है, मगर चंद कार्यक्रम ही ऐसा होता है जिसका असर लंबे समय तक बरकरार रह पाता है. जेहन में बस जाने वाला एक ऐसा ही कार्यक्रम 2 सितम्बर को रायपुर के वृंदावन हाल में हुआ.

‘अपना मोर्चा डॉट कॉम और संस्कृति विभाग’ के सहयोग से आयोजित सेक्सोफोन की दुनिया कार्यक्रम महज एक संगीत का कार्यक्रम नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी ने इस कार्यक्रम को इस खूबसूरत ढंग डिजाइन किया था कि लग रहा था हम शानदार फिल्म देख रहे हैं. कार्यक्रम अपने निर्धारित समय मेंं शाम ठीक छह बजे प्रारंभ हुआ…लेकिन देर रात तक दर्शक हाल छोड़ने को तैयार नहीं थे. जितने दर्शक/ श्रोता हाल के भीतर थे उससे कहीं ज्यादा हाल के बाहर और सड़क पर मौजूद थे.

क्या नहीं था कार्यक्रम मे..

कार्यक्रम में जहां परदे पर पुरानी फिल्मों के छोटे- छोटे हिस्से थे. ( वे हिस्से जिनमें सेक्सोफोन बजा था. ) तो दूसरी ओर राजकुमार सोनी के थियेटर अनुभव का फ्लेवर भी दिख रहा था.कार्यक्रम की शुरुआत में ही धमाका था. मंच पर संगीत देने वाले मौजूद थे लेकिन सेक्सोफोनिस्ट गायब थे. सेक्सोफोन बजाने वाले विजेद्र धवनकर पिंटू और लीलेश कुमार ने शोले का टाइटल म्यूजिक बजाते हुए हाल के बाहर से इंट्री की तो तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंज उठा. पूरे कार्यक्रम मेंं गानों का सलेक्शन भी शानदार था. ये दुनिया उसी की… जमाना उसी का… लग जा गले… ओ हंसिनी… बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है… सहित 20 गाने ऐसे थे जो एक से बढ़कर एक थे और गाने की धुन के पीछे एक कहानी गूंथी हुई थीं.

कार्यक्रम में सेक्सोफोनिस्ट विजेंद्र धवनकर, लीलेश कुमार और सुनील ने अपनी कला का शानदार प्रदर्शन किया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक दुर्गेश माधव अवस्थी थे जो सपरिवार पूरे समय मौजूद रहे. विशिष्ट अतिथि प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी वरिष्ठ वन अफसर एसडी बडगैया, बिजली बोर्ड के चेयरमैन शैलेंद्र शुक्ला, संस्कृति विभाग के राहुल सिंह सहित कई अफसरों की गरिमामय उपस्थिति बनीं रही. आबकारी मंत्री कवासी लखमा भी कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिए पहुंचे.

देश के प्रसिद्ध फिल्म अध्ययेता एवं विश्लेषक अनिल चौबे ने हिंदी फिल्मों में सेक्सोफोन की उपयोगिता को लेकर पर्दे पर जो प्रस्तुति दी वह मील का पत्थर साबित हुई. उन्होंने दर्शकों को बताया कि किस फिल्म मेंं किस सेक्सोफोनिस्ट ने सेक्सोफोन बजाया था और क्यों बजाया था. उनका बारीक काम देखकर हर कोई हतप्रभ था. सेक्सोफोन पर आधारित कहानी साज-नासाज के जरिए अपनी देश व्यापी पहचान कायम करने वाले कथाकार मनोज रुपड़ा ने भी अपने अनुभव से कार्यक्रम को समृद्ध किया. वैश्विक परिदृश्य में उन्होंने यह बताया कि किस तरह से एक सेक्सोफोन लोगों को लामबंद कर सकता है. उनका अनुभव कार्यक्रम को एक ऊंचाई पर ले गया. अपनी चुटीली टिप्पणियों के साथ कार्यक्रम का संचालन पत्रकार राजकुमार सोनी ने किया.पूरे कार्यक्रम के बाद अब हर तरफ से यहीं आवाज उठ रही है- सेक्सोफोन की दुनिया कोई मामूली दुनिया नहीं है.एक बार किसी दूसरी जगह ही सही… फिर से होना चाहिए यह आयोजन.

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