शासन को स्कूलों की जानकारी देने में प्राचार्य बनाम नोडल अधिकारी फेल.

यू डाइज जानकारी देने में बीईओ और डीईओ के आदेशों को नोडल दिखा रहे हैं अंगूठा.

तखतपुर ब्लॉक में 100 सेे अधिक सरकारी स्कूलों ने अंतिम तिथि गुजरने के बाद भी स्टॉफ की जानकारी नहीं दी.

बिलासपुर. स्कूलों के विकास के लिए आंकड़े एकत्र करने केंद्र और राज्य शासन की यू डाइज पोर्टल को सरकारी स्कूलों के प्राचार्य बनाम नोडल अधिकारियों ने पलिता लगा दिया है। एक दशक से अधिक समय से जमे इन हाईस्कूल और हायर सेकंडरी स्कूलों के प्राचार्यों ने बीईओ और डीईओ के आदेशों को भी अंगूठा दिखाना शुरू कर दिया है। तखतपुर ब्लाक के अंतर्गत ऐसे करीब एक दर्जन नोडल अधिकारियों ने अपनी स्कूलों की जानकारी और शिक्षकों का विवरण दो बार अंतिम तिथि निकलने के बाद भी जमा नहीं कराई है। सबसे बुरी हालत सकरी कन्या हायर सेकंडरी स्कूल की है, यहां यही पता नहीं है कि इस स्कूल में नान टिचिंग स्टाफ कितना है।

केंद्र की भाजपा और राज्य की भूपेश सरकार स्कूलों के संरचनात्मक विकास के लिए योजनाएं बनाने यू डाइज एंट्री हर साल कराती है। इसमें शासकीय और निजी स्कूलों को अपने स्कूलों का विवरण और शिक्षक और गैर शिक्षकों की जानकारी देनी होती है। इस बार यह काम 22 दिसंबर से शुरू किया गया। इसमें जिले की स्कूलों को 31 दिसंबर तक अपने यहां भवनों और स्टाफ की जानकारी मोटे तौर पर देनी थी। दस बीस स्कूलों को छोड़कर 31 दिसंबर तक यह काम जिले में शुरू ही नहीं हो पाया। जिले के ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों ने अपने अपने ब्लॉक में कई बार वाट्सएप गु्रप पर इसके लिए चेतावनी जारी की लेकिन इसका भी असर नहीं हुआ। इसके बाद दस जनवरी को ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों ने अंतिम रिमाइंडर जारी करते हुए कहा कि 12 जनवरी तक जो स्कूल यू डाइज की जानकारी नहीं भरेगा उस पर कार्रवाई की जाएगी इसके बाद भी हजारों की संख्या में जिले के सरकारी और गैर सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने यह एंट्री पूरी नहीं की है। इन में भी सबसे बुरा हाल तखतपुर ब्लॉक का है, यहां करीब 1०० सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें टीचर की एंट्री अंतिम तिथि गुजरने के बाद भी नहीं हो सकी है।

सरकारी की मौज और निजी स्कूलों पर शिकंजा
शासन के निर्देशों का पालन करने में सरकारी और निजी स्कूलों दोनों विफल रहे हैं। सरकारी स्कूलों में मोटी तनख्वाह पाकर भी निर्देशों का काम नहीं हो पा रहा है जबकि निजी स्कूलों में थोड़ा बहुत मानदेेय पाने वालों पर बराबर का दबाव है। मजे कि बात है कि शासकीय स्कूलों के प्राचार्यों को नोडल अधिकारी बनाकर निजी स्कूलों पर शासकीय आदेश निर्देश के पालन कराने का जिम्मा दिया गया है जबकि वे अपनी खुद की सरकारी स्कूल की मानिटरिंग ढंग से नहीं कर पा रहे हैं।

तखतपुर ब्लाक और सकरी का कौन माईबाप.

तखतपुर ब्लाक में करीब 520 सरकारी और गैर सरकारी स्कूल प्रभाव में हैं। इनमें सरकारी स्कूल 415 के करीब है। इन स्कूलों में भी 45 संकु ल हैं जिनमे आध्ो से अधिक जिम्मेदारी पूरा करने में आनाकानी कर रहे हैं। आज भी करीब 100 से अधिक सरकारी स्कूल है जो सरकार को नहीं बता पा रहे हैं कि उनके यहां टीचर कितने हैं। इसमें भी सकरी की कन्या हायर सेकंडरी स्कूल और माशाल्लाह है जिसे यही नहीं पता कि उसके यहां नान टिचिंग स्टाफ कितना है, है भी या नहीं। बालक हायर सेकंडरी स्कूल ने अपने स्कूल का विवरण ही नहीं भरा है।

नहीं होती इन पर ट्रांसफर पालिसी लागू.

शिक्षकों पर समय से आने और जाने के लिए घर बैठे दबाव बनाने वाले हायर सेकंडरी स्कूलों के प्राचार्यों की मॉनिटरिंग ब्लॉक शिक्षा अधिकारी भी नहीं कर पाते क्योंकि ऐसे प्राचार्य उनके समकक्ष माने जाते हैं। जिले में हजारों की तादात में ऐसे प्राचार्य हैं जो करीब दस सालों से एक ही स्थान और एक ही कुर्सी पर जमे हुए हैं। मोटी तनख्वाह के साथ स्कूल फंड का मनमाने उपयोग की मोटी कमाई से वे कभी ट्रांसफर हो भी गया तो उसे रुकवा लेते हैं। सब मिलाकर जब कांग्रेस की सरकार अपना पूरा जोर शिक्षा के सुधार पर लगा रही है तो ऐसे में प्रचार्य बनाम नोडल अधिकारियों ने उसकी योजनाओं को पलिता लगाने का काम करने लगे है। मजे की बात है कि इन राजपत्रित श्रेणी के अधिकारी यानी प्राचार्यों पर हर तीन साल में स्थानांतरण की पालिसी भी बेअसर है।

विकास शुल्क -क्रीड़ा शुल्क से शानो शौकत.

शासकीय हायर सेकंडरी स्कूलों के प्राचार्यों के कक्ष जिले के कलेक्टर या डीईओ के चेम्बर से कहीं कम नहीं है। इतनी साज सज्जा के लिए सरकार से कोई फंड तो मिलता नहीं है लेकिन बच्चों से लिया जाने वाला क्रीड़ा शुल्क और विकास शुल्क से बच्चों और स्कूलों का विकास हो या न हो लेकिन प्राचार्यों की गाड़ियों में तेल और प्राचार्य कक्ष की शानो शौकत जरूर बरकरार रखा जा सकता है। इतने के बाद भी इन बेलगाम प्राचार्यों का कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि दस सालों में कोई ऐसा डीईओ नहीं आया जो इन पर लगाम कस सके।

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