लेखा जोखा के बिना सेंट्रल जेल में बंट रहे लाखों के टेंडर.

टेंडर कमेटी में नियमानुसार लेखा अधिकारी नियुक्त नहीं.

बिलासपुर. प्रदेश की जेलों में सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के उलट कामकाज चल रहा है। जेल की चारदीवारियों के भीतर जेल प्रबंधन की मनमानी से राज्य सरकार को हर साल करोड़ों का चूना लगा जेल के बड़े अफसर अपनी जेब भर रहे है। क्रय नियमों को ताक पर रख निविदाओं में गोलमोल का खेल खेला जा रहा है,वो भी बिना लेखा प्रभारी अधिकारी को सदस्य बनाए, ‘OMG NEWS’ ने इससे पहले भी राज्य की जेलों में चल रहे इस गोरखधंधे की पहली कड़ी को उजागर किया था। अब तक इंतजार था कि सरकार की तरफ से या जेल मुख्यालय के बड़े अफसर इस मसले पर संज्ञान ले,मगर जैसे ही उन्हें ‘OMG NEWS’ की इस पड़ताल की भनक लगी सब ने चुप्पी साध ली है, वही इस बारे में कई बार गृह-जेल विभाग के संसदीय सचिव से भी संपर्क किया गया। लेकिन उन्होंने भी गड़बड़झाला की हकीकत सुन जवाब देने से अपनी कन्नी काट ली और दूसरे कामों में होने की व्यस्तता दिखा दी।

राज्य की जेलों में अगर कोई नया व्यवसाई टेंडर प्रक्रिया में शामिल होता है तो उसके लिए बुरी खबर है। जितनी भी जोरआजमाइश कर लो होगा वही जो जेल प्रबंधन चाहेगा, मतलब साफ है कि जेल की चारदीवारियों के भीतर सिर्फ जेल प्रबंधन की चलती है उसके सामने क्या सरकार, मंत्री और अफसर,’OMG NEWS’ की पड़ताल में पता चला है कि जेल प्रबंधन मनमाना ढंग से जेल में निविदा आमंत्रित करता है। नियम के हिसाब से निविदा को लेकर ऊपर से लेकर नीचे तक जो बॉडी बनती है उसमें जेल के लेखा जोखा का काम देखने वाले अधिकारी को शामिल किया जाना जरूरी है। मगर ऐसा नही किया जाता,हालांकि सरकार द्वारा किसी भी शासकीय विभाग में लेखा अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान नहीं है।

मगर नियमों की माने तो निविदा के संबंध में बिना लेखा इंचार्ज को निविदा टीम का सदस्य बनाए कोई भी कामकाज आगे नही बढ़ सकता। इन सब से परे पूरे राज्य में अपनी राजशाही चला जेल प्रबंधन लेखा इंचार्ज को किनारे कर निविदा पर काम कर रहा है और हर साल राज्य सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहा है। सूत्रों की माने तो इस गड़बड़झाले से आने वाला सारा माल जेल प्रबंधन द्वारा बिना डकार लिए खाया जा रहा है।

हाल ए बिलासपुर जेल.

‘OMG NEWS’ की पड़ताल में जहां एक तरफ राज्य की जेलों में निविदा को लेकर हो रहे भ्रष्टाचार की बात सामने आई है तो वही सेंट्रल जेल बिलासपुर का भी यही हाल है। प्रदेश में भले भूपेश सरकार का राज है मगर बिलासपुर की सेंट्रल जेल कांग्रेसियों को ठेंगा दिखा पूर्वर्ती बीजेपी सरकार के पिछलग्गू ही टेंडर का सारा कामकाज आज भी कर रहे हैं। यहां वर्ष 2018 के बाद से एक भी निविदा नही हुई है। मिली जानकारी के अनुसार मनमाफिक कामकाज जेल अधीक्षक एस के मिश्रा जो कि चालू प्रभार (अब रिटायर) की देखरेख में चलता रहा है। वर्ष 2019-20 (करीब डेढ़ साल) तक एस के मिश्रा की मनमर्जी से जेल का सारा कामकाज चलता रहा है। जो अब भी जारी है।

उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार जेल में रिटायर्ड जेल अधीक्षक मिश्रा के कारनामों का सारा काला चिट्ठा राजधानी में बैठे अफसरों को भी पता है। मगर किसी ने एस के मिश्रा के कामकाज पर आंखे नही ततेरी, वैसे उनके कार्यकाल के किस्से भी कम नही है। सेंट्रल जेल में रईसजादों को वीआईपी ट्रीटमेंट से लेकर मुख्य प्रहरी बारिक को गोदाम इंचार्ज बनाया और तबादले के बाद भी अपने इस इंतजाम अली को सेंट्रल जेल में रोके रखा।

यह है नियम.

छत्तीसगढ़ क्रय 2002 के संशोधित 2012 के नियम 4.12 के अनुसार किसी भी सरकारी संस्थान में निविदा आमंत्रित करने के बाद क्रय समिति का गठन किया जाना आवश्यक है। जिसमें (लेखा अधिकारी या लेखा प्रभारी) को क्रय समिति का मेम्बर बनाया जाना भी जरूरी है।

ये हो सकता है.

जिले के मुखिया के हक हिसाब से कलेक्टर को पूरा अधिकार होता है कि एसडीएम या किसी डिप्टी कलेक्टर को क्रय समिति का सदस्य नियुक्त करने की जिम्मेदारी सौपे वही उक्त अधिकारी भी इस टीम का मेंबर हो सकता है।

इसलिए नही होती नियुक्ति.

1.जेल के भीतर की दुनिया से आमजन तो दूर जिला प्रशासन के अफसर भी अनजान रहते है। कभी कभार औचक निरीक्षण का ड्रामा किया जाता है। असल हकीकत तो यह है कि प्रदेश की जेलों में प्रबंधन का एक सूत्रीय राज चलता है। मनमानी ऐसी की निविदा में नियमों को ताक पर रख टीम में लेखा प्रभारी को जगह जानबूझकर के नही दी जाती। क्योंकि लिखा पढ़ी के हिसाब से उक्त अधिकारी को सब पैतरों की जानकारी रहती है। जेल प्रबंधन अपनी चोरी छुपाने के लिए लेखा प्रभारी को निविदा में सदस्य नही बनाते।

2.जानकर बताते है कि किसी भी निविदा को आमंत्रित (खुलने के बाद) निरस्त नही कर सकते, लेकिन जेल के भीतर ऐसा बिल्कुल नही होता और निविदाओं के लिफाफे खोल बाद में स्वीकार किया या नही का फ़ैसला जेल प्रबंधन करता है।

विभाग के मुखिया की जिम्मेदारी. ठाकुर

इस मसले पर ‘OMG NEWS’ से चर्चा करते हुए कलेक्ट्रेट के ट्रेजरी अधिकारी विकास ठाकुर ने बताया कि किसी भी सरकारी विभाग में लेखा अधिकारी की नियुक्ति शासन स्तर पर नही की जाती है,हा अगर उक्त विभाग के मुखिया अफसर चाहे तो किसी भी काम काज में प्रभारी लेखा अधिकारी जो कि उस विभाग का कामकाज देखता हो उसे जरूर मेंबर बनाया जाता है और निविदा के मामलों में तो आवश्यक भी है।

वही जेल पर प्रबंधन का भी यही बयान है लेकिन सेकेंड और आवश्यक लाइन के बारे में जेल प्रबंधन कुछ भी कहने से बच सारा कसूर सरकार के मत्थे पर फोड़ रहा है।

बचने की कोशिश.

सरकारी खजाने में राज्य की जेलों के प्रबंधन द्वारा सेंध लगाने के मामले में जेल मुख्यालय हो या गृह -जेल विभाग के संसदीय सचिव विकास उपाध्याय सभी बयान देने से बच रहे है। ‘OMG NEWS’ ने श्री उपाध्याय से फोन और उनके रायपुर स्थित सरकारी बंगले में जाकर संपर्क किया। लेकिन जैसे ही संसदीय सचिव के जवाब देने का टाइम आया वे अन्य कामों का अपना बिजी शेड्यूल दिखा कन्नी काट लिए।

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