व्यापारी और अधिकारियों की मिलीभगत से सरकार को बड़े राजस्व का लग रहा चूना

बलरामपुर। जिले में वन विभाग के आला अधिकारी और लकड़ी व्यापारियों की सांठगांठ से राज्य सरकार को भारी राजस्व का नुकसान झेलना पड़ रहा है. दरअसल, वन विभाग के ओर से प्रति माह लकड़ी की नीलामी की जाती है. जिसमें लकड़ी व्यापारी अपने मनमाने रवैए और अधिकारियों की मिलीभगत से राज्य शासन को आर्थिक क्षति पहुंचा रहे हैं. मामला बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर काष्ठगार का है. जहां लकड़ी की नीलामी में छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों के भी व्यापारी इस नीलामी में शामिल होते हैं. जहां पर वन अधिकारियों की मिलीभगत से राज्य शासन को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है.

जानिए कैसे होता है लकड़ी नीलामी में सांठगांठ

लकड़ी नीलामी में जितने भी लकड़ी व्यापारी हैं. उन्हें पहले ही सभी लकड़ियों के रेट प्रदान किए जाते हैं. जिसमें पहली और दूसरी नीलामी में जो लकड़ी होते हैं उन्हें व्यवसाय कभी नहीं खरीदते है और रिंग बनाकर सभी एक मत होकर लकड़ी नीलामी के शासकीय रेट से भी कम दामों पर लकड़ियों को लेते हैं. जिन लकड़ियों की नीलामी तीसरी चौथी और पांचवी बार होती है, उन्हें ही व्यवसाई खरीदते हैं. इसका कारण यह है कि दूसरी, तीसरी, चौथी नीलामी में लकड़ियों का मूल्य क्रमशः हर नीलामी में 10% कम होते जाता है जिसे लकड़ी कम दाम में व्यवसायियों को मिल जाती है और सरकार को काफी राजस्व का नुकसान झेलना पड़ता है. अब इस पूरे मसाले में अधिकारी अपनी चुप्पी साध लेते हैं. वाड्रफनगर काष्ठगार में बीते दो वर्षों में शायद ही पहली नीलामी में लगे लकड़ियों को किसी व्यवसायी ने खरीदा होगा.

क्या कहते हैं जिले के वन मंडला अधिकारी?

वनमंडला अधिकारी विवेकानंद झा से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि पहली, दूसरी नीलामी में लकड़ी भी व्यवसायी लेते हैं और शासन स्तर पर अब ई-नीलामी की व्यवस्था बनाई जा रही है. जिससे सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त हो जाएगी. लेकिन बीते कई वर्षों से ऐसी व्यवस्थाओं को लेकर डीएफओ साहब ने कोई पहल नहीं की है. आने वाले समय के लिए व्यवस्था सुधारने की बात कहते नजर आ रहे हैं.

वहीं वाड्रफनगर डिपो के रेंजर डी एन सिंह का जब हमने स्टिंग किया तो उन्होंने बताया कि व्यापारी संघ का पदाधिकारी राजू अग्रवाल नामक व्यक्ति लकड़ी नीलामी में लाखों रुपये का खेल करता है और इन लोग नीलामी के बाद आपस में बंटवारा कर लेते है.

रेंजर ने तो मीडिया वालों को यह भी कह दिया कि थोड़ा सा आप लोग इनका पैर फंसाएंगे तो आप लोगों को भी खर्चा पानी मिल जाएगा. ऐसे में सवाल यह है की जिम्मेदार लोग शासन के राजस्व को घटाने का प्रयास जरूर करते हैं लेकिन कभी भी राजस्व में वृद्धि हो ऐसा प्रयास करने में नजर नहीं आते हैं. हालांकि रेंजर से बातचीत की पूरी ऑडियो क्लिप हमारे पास सुरक्षित है.

पूरे मामले में जब हमने लकड़ी व्यवसायी और संघ के पदाधिकारी राजेश अग्रवाल से बात की तो उन्होंने कहा कि वाड्रफनगर में जो नीलामी होती है. वहां पर अधिकारियों की काफी लापरवाही है जो भी रेट तय किए जाते हैं वह काफी ऊंचे दाम पर रहते हैं. यही कारण है कि पहले और दूसरे नीलामी में कोई भी व्यवसायी लकड़ी नहीं लेता है. चौथे और पांचवें में ही लकड़ी को लेने में सक्षम हो पता है. जब उनसे पूछा गया कि आप लोगों के द्वारा रिंग भी की जाती है और आपस में बंटवारा भी किया जाता है तो इस बात को उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया.

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