राज्य के डिप्टी सीएम बाबा के राजनीति कैरियर की अजब गजब कहानी, डैमेज कंट्रोल से लेकर साहस और प्रशासनिक क्षमता का सफर, मिलिए टी एस बाबा से.

विशेष.

टीएस सिंहदेव का परिचय.

पूरा नाम- त्रिभुनेश्वर शरण सिंहदेव

जन्म- 31 अक्टूबर 1956, इलाहाबाद

पिता- एस एस सिंहदेव

माता- श्रीमती देवेंद्र कुमारी

शिक्षा- एमए इतिहास, हमीदिया कालेज भोपाल

राजनैतिक जीवन.

वर्ष 1983 में नगर पालिका निगम अंबिकापुर के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
वे छत्तीसगढ़ के सबसे धनी विधायक हैं। शपथ पत्र के अनुसार उनकी कुल चल अचल संपत्ति करीब 514 करोड़ रुपये है।

2023 के नवंबर में चुनाव होने हैं और चुनाव के पांच माह पूर्व टीएस सिंहदेव को छत्तीसगढ़ का उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। इसे कांग्रेस में असंतोष को कम करने डैमेज कंट्रोल मना जा रहा है। 13 जून को अंबिकापुर में आयोजित कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन में टीएस सिंहदेव ने प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के समक्ष यह कहा दिया था कि उन्होंने दिल्ली में भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों से मिले थे, जिनसे भाजपा में जाने का ऑफर मिला था, लेकिन वे भाजपा में नहीं जाएंगे। टीएस सिंहदेव ने यह भी सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में भूपेश सरकार की वापसी आसान नहीं है। इस सरकार में सत्ता से संगठन खुश नहीं है। इसके पूर्व भी वे प्रदेश की भूपेश सरकार से अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर कर चुके हैं। जुलाई 2022 में उन्होंने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया था।

वे वर्तमान में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण व स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं।
2018 विस चुनाव में बड़़ी भूमिका में थे टीएस- वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएस सिंहदेव की न सिर्फ अहम भूमिका रही, बल्कि वे सीएम पद के लिए सीधे दावेदार थे। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र समिति के टीएस सिंहदेव अध्यक्ष थे। टीएस सिंहदेव पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में एक थे। कांग्रेस हाईकमान ने जब भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया तो ढाई-ढाई साल का फार्मूला सामने आया। स्वयं टीएस सिंहदेव ने कभी सीधे तौर पर तो नहीं कहा, लेकिन कई बार इशारों में बताया कि कांग्रेस हाईकमान ने ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय किया है। यह ऐसा फार्मूला साबित हुआ, तो कभी अस्तितव में नहीं आया। टीएस सिंहदेव इन साढ़े चार सालों में न सिर्फ कमजोर किए गए, बल्कि उनके पाले के विधायक जिनकी संख्या चुनाव के बाद करीब 48 तक बताई जाती थी, उनमें से गिनती के चार से पांच को छोड़कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पाले में चले गए। भूपेश बघेल सरकार में सिंहदेव के अनुशंसाओं की फाइलें तक डंप होती रहीं। यहां तक कि उनके दौरों में प्रोटोकाल तक को अधिकारी नजर अंदाज करने लगे। सरगुजा संभाग में टीएस सिंहदेव किंगमेकर से सिर्फ एक ऐसे मंत्री बन गए, जिनकी भूमिका सरकार में लगभग शून्य थी। मंत्रियों से तबादले व अन्य निर्णय के अधिकार भी सीएम समन्वय समिति को दे दिए गए। जाहिर से मंत्रियों के लिए यह सहज स्थिति नहीं है। इसे लेकर भी टीएस सिंहदेव लंबे समय से सरकार से खफा रहे। इससे बेहतर टीएस सिंहदेव की स्थिति भाजपा के रमन सरकार में थी, जब वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में थे।
सत्ता के शिखर से हासिए तक पहुंचे टीएस.

अब मिली बड़ी जवाबदेही.

जनता के बीच बाबा के रूप में लोकप्रिय प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत भले ही नगर पालिका अध्यक्ष पद से की हो, लेकिन सरगुजा राजपरिवार के होने के नाते उनकी राजनैतिक हैसियत इससे कहीं अधिक रही। टीएस सिंहदेव के पिता एमएस सिंहदेव मध्यप्रदेश में मुख्य सचिव व बाद में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। उनकी मां देवेंद्र कुमारी सिंहदेव मध्यप्रदेश में दो बार मंत्री रही। तब कहा जाता था कि सरगुजा के लिए मुख्यमंत्री राजपरिवार ही है। छत्तीसगढ़ गठन के बाद जोगी की सरकार बनी तो सरगुजा राजपरिवार हासिए पर चला गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने उपेक्षा के बीच चुनाव के कुछ माह पूर्व टीएस को वित्त आयोग का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया। वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद अंबिकापुर सीट सामान्य हुई तो टीएस सिंहदेव अपना पहला चुनाव 980 मतों के मामूली अंतर से जीता। दूसरे चुनाव में जीत का अंतर 19400 एवं तीसरे चुनाव में करीब 40 हजार पहुंच गया। वर्ष 2013 से 2018 तक वे नेता प्रतिपक्ष रहे, जो टीएस सिंहदेव के लिहाज से बेहतर कार्यकाल कहा जा सकता है। भूपेश सरकार में शुरूआती कुछ माह बाद टीएस सिंहदेव अपनी ही सरकार में इस कदर उपेक्षा के शिकार हुए कि उन्हें कई बार सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि इस सरकार में हमारी चल ही नहीं रही है। जोगी सरकार के कार्यकाल के बाद यह राजपरिवार के लिए सबसे खराब समय कहा जा सकता है। चुनाव के पूर्व डैमेज कंट्रोल के इस कोशिश का कितना असर होगा, या अब देर हो चुकी है, यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है।

सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर सीधे प्रभाव.

टीएस सिंहदेव का सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर सीधे प्रभाव माना जाता है। इन सभी 14 सीटों पर वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने बड़े मतांतर से जीत दर्ज की थी। इन सभी सीटों में टीएस सिंहदेव के समर्थक भी हैं और उनका जनाधार भी है। सरगुजा संभाग में कांग्रेस के अंतर्कलह के कारण न सिर्फ कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, बल्कि उनकी भी उपेक्षा लगातार की जाती रही है। उत्तर छत्तीसगढ़ की इन सीटों पर साढ़े चार सालों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सीधा असर 2023 के विधानसभा चुनाव में दिखना तय माना जा रहा है। भाजपा उत्तर छत्तीसगढ़ में कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस के अंतर्कलह के कारण ही करीब आधी सीटों पर बढ़त बनाती दिख रही है, जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है। यही कारण है कि संभागीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी कार्यकर्ताओं से यह कहते नजर आए कि जय-वीरू की जोड़ी कभी नहीं टूटेगी। टीएस सिंहदेव ने भी कहा कि अंदर जो भी हो, भूपेश बघेल ने कभी सार्वजनिक तौर पर उनकी उपेक्षा नहीं की है। सरगुजा के अलावे मध्य छत्तीसगढ़ एवं बस्तर की कुछ सीटों पर भी टीएस सिंहदेव का प्रभाव माना जाता है।

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