एनटीपीसी सीपत में बालिका सशक्तिकरण अभियान के शीतकालीन कार्यशाला का समापन.

बिलासपुर. एनटीपीसी सीपत में नैगम सामाजिक दायित्व कार्यक्रम के अंतर्गत 23 से 28 दिसम्बर तक बालिका सशक्तिकरण अभियान के शीतकालीन कार्यशाला का आयोजन एक उड़ान असीमित आसमान थीम के साथ किया गया। जिसका समापन समारोह 28 दिसम्बरको चाणक्य सभागार में हुआ।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में घनश्याम प्रजापति, कार्यकारी निदेशक,रमानाथ पूजारी, मुख्य महाप्रबंधक (प्रचालन एवं अनुरक्षण), उमाकांत हरिभाऊ गोखे, मुख्य महाप्रबंधक (यू.एस.एस.सी & सी&एम), श्रीमती सरोज प्रजापति, अध्यक्षा, संगवारी महिला समिति तथा अन्य विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह का आरंभ किया गया।

विदित हो कि मई तथा जून महीने में एनटीपीसी सीपत द्वारा नैगम सामाजिक दायित्व के तहत करीब एक माह तक बालिका सशक्तिकरण अभियान का आयोजन किया गया था। जिसमें परियोजना प्रभावित 17 गांवों के 24 विद्यालयों के 10 से 12 वर्ष के 120 बालिकाओं ने भाग लिया था| इस अभियान का उद्देश्य था – परियोजना के आस-पास के विद्यालयों में अध्ययनरत बालिकाओं को हर संभव शिक्षित एवं सशक्त बनाना|

मोहन लाल यादव, वरिष्ठ प्रबंधक, सीएसआर (मानव संसाधन) ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बालिका सशक्तिकरण अभियान शीतकालीन कार्यशाला की सभी गतिविधियों पर प्रकाश डाला।

घनश्याम प्रजापति, कार्यकारी निदेशक, ने कहा कि,यदि आप एक भी महान और अच्छा काम करते हैं, तो वह समाज में परिलक्षित होता है। 5 दिनों यह आवासीय कार्यशाला आप सभी बच्चों के अंदर छुपी हुई प्रतिभा को निखार कर एक नई उचाइयों को छूने मदद करेगा।

इस अभियान के दौरान प्रतिभागी बालिकाओं को प्रातः काल में योग, के विभिन्न आसान व प्राणायाम, का अभ्यास कराया गया, जिससे तन और मन स्वस्थ रहे। कार्यशाला में ड्राईंग पेन्टिग, आर्ट एवं क्राफ्ट, नृत्य एवं संगीत, खेलकूद, आत्मरक्षा के लिए ताइक्वाडो, मनोरंजनात्मक कार्यक्रम एवं अकादमिक अध्यापन गणित, विज्ञान, अंग्रेजी एवं कम्प्यूटर शिक्षा का प्रारम्भिक ज्ञान कराया गया।

ज्ञात हो कि इस अभियान के दौरान 108 बालिकाओं ने हिस्सा लिया। इन बालिकाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे नृत्य, नुक्कड़ नाटक, आदि प्रस्तुत किया। बच्चों द्वारा उनके बनाई गई गतिविधियों को भी प्रदर्शित और प्रस्तुत किया। बालिकाओं ने केमिकल फ्री उत्पाद बनाना भी सीखा।

इस कार्यशाला में छात्राओं को मानसिक व बौद्धिक विकास के साथ-साथ जीवन जीने की कला को भी समझाया गया था। बालिकायों को लैंगिक समानता के बारे में भी सिखाया गया।

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