मुंहफट

“रवि शुक्ला”..

 

पार्ट 1. सुशासन का ‘”दीपक'”.

 

अगर सच में सुशासन का ‘ दीपक ‘ देखना हो तो इस यंग आईएएस अफसर से मिल कर देखो, काम की भरमार लेकिन व्यवहार में मौसमी लस्सी, छाछ, चाय और तरह तरह की चीजों की मिठास और चटपटापन, नैनक की नजरों से फरियादियों को पहचाने की काबिलियत और समाधान,पूरे जिले की खबर और कलेक्ट्री.

स्टाइल कुछ इस तरह की पहले वेटिंग रूम में आगंतुकों को इक्कठा करना फिर एक साथ बुला कर धड़ाधड़ समस्याओं का निपटारा, चेंबर से ही मोबाइल में फोटो क्लिक कर संबंधित विभाग को निर्देश,कम बात और जो न समझे उसे अफसर की तरह तौर तरीके समझाना सब से अच्छी बात तो यह है कि सुशासन सरकार की योजनाओं की बेहतर मॉनिटरिंग का ‘ दीपक ‘ जलता रहे इसलिए देर रात तक ऑफिस में बैठ फाइलें निपटना कभी कभी तो छुट्टी के दिन भी और किसी ने जरा सी भी चूक की तो उसका विकेट गिराने से भी परहेज नहीं.

पार्ट 2. ज्ञानी अफसर की “विजय” गाथा.

छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी और न्यायधानी के बीच तूफानी जिले में अफसरी का तूफान मचा कर एक प्रमोटी आईपीएस अफसर आगे बढ़ गए हैं। जब तक रहे बदल बदल का मातहतों से काम काज लिया, अनुभव का टैरर इतना की नीचे वालों को भयंकर टॉर्चर किया और बदले में काम लेते रहे ये बात हम नहीं बोल रहे बल्कि पूरे जिले और पुलिस विभाग में चर्चा है।

कुछ भी बोलो बताओ तो किसी ज्ञानी की तरह सामने वाले को ट्रीट करना इनकी आदत में शुमार है। जिले में आए एक आगजनी के भूचाल के बाद सरकार ने इन प्रमोटी के हाथ जिले की कमान सौंप दी फिर जो भारी प्रताड़ना वाली पुलिस कप्तानी हुई मातहत भूले नहीं भुला रहे हैं। वैसे यही हाल राज्य के तीसरे बड़े जिले की एसपी शिप में चल रहा है कोई बदलाव नहीं वही अनुभव का टॉर्चर और बदले में काम, एक रात नौबत तो ऐसी आ गई कि अपनी विजय की गाथा लिखने के चक्कर में बीजेपी सांसद से नीचे वालों को भिड़ा दिया फिर तो बवाल होना ही था, ले देकर मामला शांत हुआ लेकिन प्रमोटी आईपीएस अफसर के कामकाज के तरीके से हाय तौबा मची हुई है।

पार्ट 3. अब आ गई अपनत्व की “भावना”.

ये तो अच्छा हो गया कि फलाने प्रमोटी आईपीएस की अफसरी की जलन मिटाने यंग और डायरेक्ट लेडी आईपीएस अफसर को सरकार ने जिले का चार्ज दे दिया। मोहतरमा काफी काबिल है थ्रू आउट इंग्लिश से अच्छे अच्छों के पसीने छुड़ा दे। अब डायरेक्ट आईपीएस है तो कड़क होना लाजमी है लेकिन पुलिसिंग में मातहतों से अच्छे व्यवहार की ‘ भावना ‘ को साथ लेकर चलती है।

राज्य के करीब पांच से अधिक जिलों में एसपी की जिम्मेदारी संभाल चुकी है। किसी के काम आ सको और पुलिस विभाग में होकर अपनों का ख्याल न रख पाएं तो क्या मतलब कि सोच रखने वाली लेडी आईपीएस के आने से जिले की पुलिसिंग में भी बदलाव आ गया है। काम को लेकर टाइट है। ज्वाइनिंग के बाद से लगातार दौरा कर पूरे जिले की रूप रेखा की जांच परख लिया है रही बात मातहतों की तो टॉर्चर पुलिसिंग से अब मातहत निकल कर राहत की सांस लेने लगें है।

खटराल थानेदारों की टीम,,अब जल्द.

वो दिन दूर नहीं जब एक आदेश जारी होगा और उसमें लिखा होगा कि फलाने टीआई प्रमोट कर डीएसपी बनाए गए और उनकी नवीन पदस्थापना। खबर है कि पीएचक्यू ने 25 से 27 साल पुलिस की नौकरी कर चुके यानी 98,99 और 2000 बैच के जाने माने अनुभवी (खटरालो) की डीपीसी की सारी प्रक्रिया पूरी कर ली है।

बस इंतजार है आदेश फ्लैश होने का,ये वो पुलिस अफसर हैं जिन्हें नौकरी के दौरान दूसरा और बड़ा प्रमोशन मिलेगा। पुलिस विभाग को खूब नाम कर जमकर काम किया और आगे की सरकार बेहतर और अनुभवी पुलिस अफसर मिलने वाले है। लेकिन बेचारों को पानी के एक ठहराव की तरह रोक कर रख दिया गया था। भारी दांव पेंच के बाद अब ये मौका हाथ लगा है। खुशी ऐसी कि नई वर्दी और डीएसपी बनने के लिए वर्दी में लगने वाला साजो सामान की खरीदी शुरू हो गई है। सब से अहम बात तो ये है कि  प्रदेश में करीब पांच दर्जन से अधिक खटराल थानेदारों डीएसपी बनने बूम होते ही पुलिस का एक धड़ा जरा अलर्ट हो गया है क्योंकि कैसे और कौन टीआई,डीएसपी बनकर सामने मैदान में आएंगे सब को पता है। खैर जो भी हो ये पुलिस विभाग के भीतर का मसला है। हमारी ओर से तो सबको बधाई.

वाह,क्या ‘बड़ी कार्रवाई’ थी?

खनिज विभाग की टीम ने तो एकदम ‘रेत का पहाड़’ खड़ा कर दिया… मतलब, अवैध रेत के पहाड़ पर धावा बोल दिया! पता चला कि यह पहाड़ नगर के किसी ‘ताऊ के संरक्षण में चल रहा था, जो बीजेपी में ‘दिग्गज’ हैं। शायद उन्हें लगा होगा कि रेत का पहाड़ बनाना भी ‘विकास’ का ही हिस्सा है।

अधिकारी पहुंचे, कागज़ देखे… शायद रेत की क्वालिटी चेक कर रहे थे या देख रहे थे कि किस ‘शुभ मुहूर्त’ में डंपिंग हुई है और फिर, जैसे ही लगा कि कार्रवाई ‘पूरी’ हो गई है (मतलब, आधे अधूरे कागज़ देख लिए), वे वापस चले गए। शायद रास्ता भटक गए होंगे या रेत में चप्पल फंस गई होगी।

सबसे दिलचस्प तो यह है कि एक बेचारे बिल्डर पर दबाव डाला गया कि ‘भाई , यह रेत आपकी है, मान लो!’ क्या ज़माना है! अब अपनी चीज़ों से ज़्यादा, दूसरों की अवैध चीज़ों को अपना बताना पड़ रहा है। शायद यह ‘मेक इन इंडिया’ नहीं, ‘क्लेम अदर्स प्रॉपर्टी’ का नया मॉडल है और हाँ, हर दिन 50 ट्रैक्टर रेत आती थी! यहां तो ‘रेत की गंगा’ बह रही थी, सीधे ‘ताऊ’ के डंपिंग ज़ोन में, और इस पूरे मामले में ‘न्यायधानी’ के एक ‘धानी’ का नाम आ रहा है, जिन्हें ‘वरिष्ठ राजनेता’ का ‘संरक्षण’ प्राप्त है। मतलब, ‘रेत के कण-कण में नेताजी का वास’ है!

हाई कोर्ट की अवहेलना? अधिकारी चुप? माफिया बेलगाम? अरे नहीं! यह तो बस ‘रेत का लोकतंत्र’ है, जहाँ ‘ताऊ’ और ‘धानी ‘ जैसे लोग ‘विकास की नींव’ रेत से रखते हैं और सिस्टम इस नींव को ‘मजबूत’ बनाए रखने में पूरा सहयोग देता है।

You May Also Like

error: Content is protected !!