कांग्रेस के थूके को चाटने से कैसे मिलेगा नमो सरकार को सम्मान

बिलासपुर. नोटबंदी और जीएसटी पर चौतरफा आलोचना का शिकार हो रही मोदी सरकार से सिर्फ एक सवाल है कि माना कि आप कर्ण की तरह अब अपमानित हो रहे हैं, लेकिन हे सूत पुत्र! पूर्व की कांग्रेस सरकार के थूके को चाट रहे हो मतलब पेट्रोल-ईंधन मूल्य वृध्दी, आधार की अनिवार्यता, जीएसटी को दुगनी ताकत से फालो कर रहे हो तो फिर जनमानस से सम्मान की उम्मीद क्यों। वैसे भी पार्टी के भीतर आवाज उठाने वाले यशवंत सिन्हा को इशारे में शल्य कहकर आपने खुद को कर्ण मान ही लिया और २०१९ के चुनावी महाभारत में अपना भविष्य खुद गढ़ भी लिया है।
कहते हैं कि चौबीस घंटे में माता सरस्वती एक बार जिभ्या पर विराजमान होती है। अगर ये सच है तो नमो जी ने अटल सरकार में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा को शल्य राज कहकर सही नहीं किया। दानवीर कर्ण की तरह आपको सहानुभूति तब मिलती, जब आप जनता पर रहमतों की बारिश करते। लेकिन आपकी सरकार ने तो जनता का कवच(रुपया-पैसा) और कुंडल(व्यापार-रोजगार) भी छीन लिया। महाभारत की तरह चुनाव भी लगभग अठारह दिन के ही होते हैं और कौरव दल और कर्ण का हश्र सबको पता ही है।

सच भी तो है कि मोदी सरकार के वित्तमंत्री अरूण जेटली से ज्यादा के्रडिबल अटल सरकार के वित्तमंत्री यशवंत जी को जनता के बीच माना जाता है। यकीन नहीं हो तो आप अपनी पार्टी में पूछ लो। जिन आर्थिक सुधार यानी की कड़वी दवाइयों की बात अब की जा रही है उसे भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र में तो नहीं लिखा था। चलो मान लो ये जरूरी भी था तो पार्टी को अपना परिवार मानने वाली भाजपा को अपने बड़े बुजुर्गों, खासकर सरकार चलाने के अनुभवी नेताओं से राय मशविरा कर लेना था। अब जो नहीं किया तो भुगतो अकेले-अकेले।
भाई नमो जी, लोगों ने कांग्रेस की सरकार को इसीलिए निपटाया था क्योंकि महंगाई बेकाबू हो गई थी। सब यह मानते थे कि इसकी सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार है। तब कांग्रेस की सरकार इन दोनों मुद्दों का कोई इलाज करने की बजाए आधार का लिंकेज करके लोगों की निजता और स्वतंत्रता का हनन करने लगी। पूर्व सरकार भी कड़वे घूंट के नाम पर जीएसटी लाकर करों का भार डालने तुली थी।
हालाकि वह इन कामों को धीमी रफ्तार से कर रही थी और नमो के विरोध से जीएसटी तो ला भी नहीं सकी। शायद इसलिए मनमोहन सरकार के दस साल कट गए। मगर मोदी सरकार ने तो आते ही कांग्रेस के इस थूके हुए एजेण्डों, जिस पर जनता को घिन आने लगी थी, उसको इतनी तेजी से चाटने का काम किया कि तीन साल में चौतरफा सड़ांध भर गई। मोदी सरकार के पास बहुमत का दम और विपक्ष के बेदम होने की वजह से भले ही ज्यादातर लोग इस अघोषित आर्थिक आपातकाल पर नहीं बोल रहे हैं लेकिन भारतीय लोकतंत्र इसे महसूस अवश्य कर रहा है।

मनोज शर्मा

(पूर्व अध्यक्ष)

प्रेस क्लब, बिलासपुर

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