राजनीति के संत ‘’कैलाशजी’’ का अवसान..

‘विजया पाठक’

मध्यप्रदेश की राजनीति में एक ऐसे सूर्य का अस्त हो गया जिसने अपनी सैद्धांतिकता, कर्तव्यपरायणता और समर्पणता की आभामंडल से प्रदेश को एक नई दिशा और दशा को प्रकाशमान किया है। आज हमारे बीच मध्यप्रदेश में पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैलाश जोशी नही रहे। रविवार को उन्होंने 91 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत वर्ष 1955 में हाटपीपल्या नगरपालिका से कैलाश जोशी अध्यक्ष के रूप में की फिर उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा। आज ऐसे संत का यूं खामोश हो जाना सबको स्तब्ध करने वाला पल है। अपनी सादगी और सौम्यता की पहचान लिए कैलाश जी आज के नेताओं को प्रेरणास्त्रोत हैं लेकिन वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए लगता है कैलाश जी जैसा राजनेता न प्रदेश में पैदा हुआ है और न ही आगे होगा। मुख्यमंत्री जैसा पद पाकर भी उन्होंने अपने उपर अहम हावी नही होने दिया। कैलाश जी ने मध्यप्रदेश को विकसित करने में एक मजबूत योगदान दिया है। भाजपा को मजबूत करने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है। कैलाश जोशी जन्म 14 जुलाई 1929 देवास जिले की हाटपिपल्या तहसील में हुआ था। वे 1951 में स्थापित जनसंघ से संस्थापक सदस्य भी रहे। आपातकाल के समय में एक माह भूमिगत रहने के बाद दिनांक 28 जुलाई 1975 को विधानसभा के द्वार पर गिरफ्तार होकर 19 माह तक मीसा में नजरबंद रहे। ऐसे वक्त में जब सरकार बनाने और मुख्यमंत्री बनने के लिए दल और नेता कुछ भी करने पर आमादा दिखते हैं, वहीं कैलाश जोशी ने जब 1977 में मप्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उन्होंने यह पद स्वेच्छा से त्यागकर वीरेंद्र कुमार सकलेचा के मुख्यमंत्रित्व में मंत्री बनना पसंद किया। वे मंत्री बाद में भी रहे, विधायक रहे और 2014 तक भोपाल के सांसद रहे। कैलाश जोशी का अवसान असल में राजनीति में शुचिता, सिद्धांतपरकता और प्रतिबद्धता के उज्ज्वल शिखर कलश का विसर्जन है। उन्हें मध्यप्रदेश की राजनीति का संत कहा जाता रहा है और वे सचमुच ऐसे थे। सादगी के पर्याय रहे और कभी भी पार्टी लाइन का उल्लंघन नहीं किया। वे दो दफा चुनाव हारे, एक दफा विधानसभा का चुनाव अपने गृह क्षेत्र बागली से और एक दफा राजगढ़ लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह से, लेकिन उनके सम्मान में रंच मात्र भी कमी नहीं आई। कैलाश जोशी की खूबी यह थी कि वे भीड़ में भी आपको पहचान लेते थे। जब वे राजगढ़ से लोकसभा प्रत्याशी बनाए जा रहे थे और चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था, उन्होंने चुनौती को स्वीकार करने में एक पल भी नहीं लगाया। राजनीति के संत कहे जाने वाले कैलाश जोशी सादा जीवन एवं उच्च विचार के राजनेता थे। जीवनपर्यंत वे मूल्य और सिद्धांतों के प्रति समर्पित रहे। अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। आज वो भले ही हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके सिद्धांत और विचार हमेशा हमें प्रेरणा देते रहेंगे और प्रेरित करते रहेंगे कि जीवन में सार्थकता के साथ किए जाने वाले कार्य हमें उर्जा प्रदान करते हैं। कैलाश जी के यूं चले जाना किसी राजनीतिक क्षति से कम नही हैं। ऐसे संत शिरोमणि कैलाश जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि……

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