8 साल बाद भी नहरों में नहीं पहुंचा पानी, फेल हो चुकी योजना पर 39 साल से करोड़ों बहा रही थी सरकारें

गरियाबंद. जिले के देवभोग सिंचाई अनुविभाग में 8 साल पहले बनाई गई जलप्लावन योजना फेल साबित हुई है. मोखागुड़ा में 10 से ज्यादा किसानों ने इस बार लगभग एक किमी लंबी नहर में मसूर और मूंग की फसल ली है. नाम न छापने की शर्त पर किसानों ने बताया कि उनके खेतो में इस बार नहर से सिंचाई का पानी नहीं मिला. खरीफ में प्यासे खेतों के कारण धान की फसल चौपट हो गई है. किसानों ने अपनी लागत निकालने के लिए अपने खेतो से होकर गए नहरों के भीतर ही जुताई की, फिर कचरा साफ किया, इसके बाद मसूर और मूंग की फसल लगा दी. अभी नहरों में दलहन के पौधों की हरियाली दिखाई दे रही है.

3186 हेक्टेयर सिंचाई करने बनाई गई 63 किमी लंबी नहर

योजना के तहत अमलीपदर तहसील के 5 और देवभोग तहसील के 22 गांव मिलाकर कुल 27 गांव (3186 हेक्टेयर) में खरीफ सीजन में सिंचाई के लिए 29 किमी मुख्य नहर के अलवा 29 किमी लंबी 14 नहरों का जाल बिछाया गया था. लेकिन निर्माण पूरा होने के 8 साल बाद सिंचाई का पानी मुख्य नहर में महज 5 से 10 किमी के दायरे में सिमट कर रह गया.

फिर भी झोंख दिए 54 करोड़

1977 में अकाल के वक्त राहत कार्य के तहत तेल नदी के एनासर और कोदोबेड़ा घाट में नहरों की खुदाई हुई थी. लेकिन बाद में इन दोनों नदियों के पानी को सिंचाई सुविधा में बदलने जलप्लावन योजना लागू करने की योजना बनाई गई.कोदोबेड़ा घाट पर 1990 में जलप्लावन की नींव रखी गई. 4 साल में अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली जलप्लावन योजना तैयार हो गई. बारहों मास तेज बहाव वाले आंध्र, पंजाब की नदियों में यह योजना असफल थी. अल्प वर्षा में नदी का बहाव कम हो जाता था. रूपांकित 12 गांव की बजाए सिंचाई का पानी केवल 4 गांव तक पंहुचा. छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आने के बाद इस योजना को एक्सपर्ट्स ने फेल मान लिया था. उरमाल के एनासर में भी अधूरे जलप्लावन को पूर्ण करने लगातार पत्राचार हो रहा था. आखिरकार मुख्य कार्य के लिए 2006 में भाजपा सरकार ने 9 करोड़ 73 लाख की मंजूरी दे दी. योजना में पानी कैसे और कीं से आएगा इस पर एक्सपर्ट की राय लिए बिना मुख्य स्ट्रक्चर के पूरा होते ही नहरों का जाल बिछाने 2014 में 44 करोड़ 48 लाख की भी मंजूरी दे दी गई. असफल योजना से अफसरों ने 27 गांव के 3186 हेक्टेयर को सिंचाई सुविधा दिलाने का कागजी मैप तैयार किया. जिसे आंख मूंदकर सरकार ने मान लिया. नतीजा ये हुआ कि 8 साल बाद भी योजना का पानी 10 किमी नहर के पार नहीं पहुंच पाया.

सपोर्टिंग स्कीम भी विवादों में फंसी

योजना की रूपरेखा तैयार करने वाले अफसरों को पता था कि यहां पानी नही मिलेगा. इसलिए नदी में जलप्लावन के लिए बनाए गए मुख्य स्ट्रक्चर से करीब 500 मीटर आगे नदी के बहाव को रोकने के लिए एक व्यापवर्तन योजना लागू किया. 5 करोड़ की लागत से बनने जा रही इस योजना का काम 2013 में शुरू हुआ, वॉल के लिए नीव खड़ी की जा रही थी, पर नदी में ओड़िशा सीमा विवाद के चलते काम रोक दिया गया. सपोर्टिंग योजना आज भी अधर में हैं. पूरी तरह फेल हो चुकी इस योजना के नहरों में लाइनिंग कार्य के लिए रुपये मांगे जा रहे हैं. करीब 3 करोड़ का प्रपोजल भी भेजा गया है. लेकिन इसकी मंजूरी देने से पहले योजना की सफलता की तकनीकी जांच जरूरी है.

मुआवजा भी नहीं मिला

मोखागुड़ा के किसान पालेश्वर पोर्टी बताते हैं कि उनकी जमीन का अधिकग्राहण 10 साल पहले किया गया था. नहर बना दिया गया पर उन्हें मुआवजा नहीं मिला. इसलिए अपने खेत के हिस्से में आए नहर में पानी नही आता. दलहन तिलहन की खेती कर रहे हैं. इस किसान की तरह और भी हैं जिन्हें अब भी मुआवजे का इंतजार है.

सरकार बैठते ही मंजूरी मिलने की उम्मीद

शेष नारायण सोनवानी, एसडीओ ,सिंचाई अनुविभाग देवभोग ने बताया कि योजना के अंतिम छोर तक पानी पहुंच सके इसके लिए नया प्रपोजल बनाया गया है. मुख्य नहर में 0 से 1500 मीटर चेन तक नहर लाइनिंग कार्य होना है. स्वीकृति के लिए फ़ाइल मंत्रालय पहुंच चुकी है. सरकार बैठते ही मंजूरी मिलने की उम्मीद है. नहर में कुछ विवादित रकबे हैं और किसानो के आपसी विवाद के चलते उन्हें मुआवजा नहीं दिया जा सका है. जमीन अधिग्रहण के बाद उन्हें कायदे से नहर में बुआई नहीं करना चाहिए था.

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