सूरजपुर। देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 20 नवंबर को अंबिकापुर आ रही हैं, जहां जनजाति गौरव दिवस कार्यक्रम में शामिल होंगी। वहीं अंबिकापुर से लगे सूरजपुर में एक राष्ट्रपति भवन है, दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के बारे में पूरी दुनिया जानती है, लेकिन सूरजपुर के पंडोनगर में राष्ट्रपति भवन है, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। इस राष्ट्रपति भवन का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है, लेकिन पंडो जनजाति के लोगों को आज तक उनकी जमीन का पट्टा नहीं मिल पाया है। पंडो जाति के लोगों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उम्मीद जताते हुए मांग की है कि उन्हें उनकी जमीन का पट्टा दिलाएं। साथ ही उनके दसवीं पास बच्चों को नौकरी दें। इस खबर में हम आपको सूरजपुर के राष्ट्रपति भवन की खास कहानी और पंडो जनजाति की पीड़ा बता रहे हैं।
पंडो एक संरक्षित जनजाति है, जो जंगलों में अपनी जिंदगी गुजारते थे, ना तो खाने के लिए इनके पास कुछ था और ना पहनने को, जंगल के भरोसे इनका जीवन यापन होता था। 11 नवम्बर 1952 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और तात्कालीन सरगुजा राजा रामानुज शरण सिंह देव हेलीकाप्टर से सूरजपुर के पण्डो गांव के ऊपर से गुजर रहे थे, तभी डॉ. राजेंद्र प्रसाद की नजर इन ग्रामीणों पर पड़ी। राष्ट्रपति इन ग्रामीणों के साथ एक दिन गुजारना चाहते थे। ग्रामीणों ने राष्ट्रपति के रुकने के लिए घास की छोपड़ी बनाई थी, जिसे राष्ट्रपति भवन का नाम दिया ।
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