त्वरित टिप्पणी: अफसरों को फटकारा, शाबास! मेयर विधानी.

मनोज शर्मा ..



जनता का दर्द, जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही समझ सकते हैं और मेयर पूजा विधानी दंपती ने सही किया और खरीखोटी सुनाना था निगम के अफसरों को। उन्होंने नगर निगम के नक्शा विभाग के भ्रष्टाचारी डोजर को फिलहाल तो रोक दिया। यह वही डोजर है जो पिछले दो साल से भाजपा के जनप्रतिनिधियों की जड़ें भी लगे हाथ खोद रहा था। अच्छा किया जो निगम अफसरों को फटकारा और कसर निकालनी थी।


मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर है हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पर दम निकले। बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।


शहर के लोगों ने महिला मेयर होने के बाद समझा था की पूजा विधानी एक कमजोर जनप्रतिनिधि साबित होंगी लेकिन जिस माकुल तरीके से सिंधी समाज के साथ खड़े होकर उन्होंने तुगलकी अफसरों को आढ़े हाथों लिया, ऐसा भाजपा में कम ही देखने- सुनने को मिलता है। नगर पालिका एक्ट में प्रावधान है कि यदि नक्शा पास करने के लिए आवेदन करने के बाद यदि 30 दिनों तक कोई कार्रवाई नगर निगम द्वारा नहीं की जाती तो उसे स्वीकृत मान लिया जाता है। इस हिसाब से देखा जाए तो सिंधी समाज के व्यापारी उतने दोषी नहीं है कि उनका लाखों रूपए का निर्माण कार्य ढहा दिया जाए। ठीक है कि आवासीय नक्शा पास करने के बाद अगर किसी ने अपने घर के नीचे दुकान बना भी ली तो इसमें कौन सा बड़ा गुनाह हो गया कि जीवन भर की जमा पूंजी से कराए निर्माण कार्य को ही तोड़ दें। महंगाई के जमाने में रेत, ईट गारे के दाम में आग लगी हुई है । आपकी अनुमति नहीं है, इसलिए महंगे निर्माण कार्यों को बेरहमी से तोड़ा जाना कहां से न्यायोचित है। अगर निर्माण कार्य किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है, तो जुर्माना लगाकर आप उसके नक्शे को नियमित करके स्वीकृत भी तो कर सकते हैं।


नगर निगम के काबिल अफसर कितने दूध के धुले हैं, यह तो इंदू चौक में निर्माणाधीन शादी घर पर बुलडोजर चलाने के मामले में सब ने देखा है। इस मामले में न्याय के मंदिर हाईकोर्ट ने भी उनको कस के लताड़ लगाई थी और स्टे दिया था। अब महापौर ने खरी-खोटी सुना दी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष और विधि वेक्त ा स्व. पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला तो मंच से अफसरों लताड़ते थे। यहां के लोगों ने सुना है उनको, मंच से भाषण देते हुए पब्लिक से कहते थे कि ये अफसर आपकी नहीं सुने तो इनको जूते से मारना। अच्छे- अच्छे आईएएस उनके सामने जाने से थर्राते थे। कौन नहीं जानता कि नगर निगम में पैसा दो तो हर नक्शा पास है और नहीं तो हर नक्शा फेल है। कोई न कोई कमी नक्शे में निकाल कर आपको सालों लटकाया जाता रहेगा। बैंक लोन लेकर निर्माण करने वालों का क्या हाल होगा, जब उनका नक्शा दो साल तक पास ना किया जाए। जनता की इस पीड़ा को उसका चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं समझेगा तो कौन समझेगा।


कहते हैं राम को मानने वाली भाजपा की सरकार केन्द्र्, राज्य और शहर यानी तीनों स्तर पर है। यानी रामराज में अफसरों की यह राक्षसी प्रवृत्ति को कुचलने किसी न किसी को तो आगे आना ही होगा ना। अगर मेयर पूजा विधानी दंपती आगे आए हैं तो वास्तव में शाबासी के पात्र हैं। सीधी सी बात है कि यदि नक्शे के विपरीत निर्माण कार्य हो रहा था तो उसे शुरू में ही तोड़ दिया जाना चाहिए था। दो साल तक उसके पूरा लेंटर ढलने तक नगर निगम का नक्शा विभाग नोटिस-नोटिस क्यों खेलते रहा। नक्शे के अनुरूप नहीं बना है तो जुर्माना राशि लेकर नियमित कर दो लेकिन नहीं, डोजर का डर दिखाकर लंबी उगाही कैसे हो पाएगी। अगर इस चश्मे से पूरे शहर को देखा जाए तो तकरीबन पचास हजार घरों में से आधे से ज्यादा तोडऩे लायक होंगे जो नक्शे के अनुरूप नहीं बने हैं। तो प्रश्न यह है कि क्या पूरे शहर पर आप बुलडोजर चला दोगे और जिनको वोट देकर शहर के लोगों ने चुना है वे खामोश बैठे रहेंगे। नहीं ना। तो फिर मेयर विधानी ने कौन सा गलत कर दिया, जो आपको पटरी पर लाने की कोशिश की है।

नगर पालिका में प्रावधानों के अनुसार महापौर नगर का प्रथम नागरिक है। इस सर्वोच्च नागरिक की बात को यदि अफसर सुनेंगे नहीं, मानेंगे नहीं तो शहर चलेगा कैसे।


शहर के लाखों लोगों ने इनको चुनकर शहर चलाने के लिए ही तो भेजा है। लेकिन पढ़ लिखकर नौकरी पाने और जनता के टैक्स के पैसे से तनख्वाह लेकर काम करने वाले यदि शहर चलाएंगे तो ऐसी विसंगति तो होगी ही ना। अफसर बन गए हैं तो यह नहीं की देवदूत हो गए हैं। उनका कहा-सुना ही अंतिम सत्य हो। करने के लिए बहुत कुछ काम है शहर में। वह तो हो नहीं रहा है इन काबिल अफसरों से। नालियां- नाले बजबजा रहे हैं शहर में। मानसून सिर पर खड़ा है। अभी थोड़े दिनों बाद ही चौतारफा चीख पुकार मचेगी कि इस मोहल्ले में पानी घुस गया, वहां घर डूब गए। इसकी झोपड़ी गिर गई तो इन सब की चिंता नगर निगम के देवदूत बनाम अफसर नहीं करेंगे तो कौन करेगा।

manojyash2003@gmail.com





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