मुंह फट

"रवि शुक्ला"



माननीयों की नाराजगी और मुखिया से शिकायत.


सुशासन राज में भई माननीय बहुत नाराज चल रहे हैं। कहते हैं काम नहीं हो रहा अफसर सुनते नहीं ऐसा वैसा, डबल इंजन सरकार की स्टेयरिंग लड़खड़ा रही है। भद्द खफा कुछ पुराने तो बड़े बंगले तक पहुंच जाते है और मुखिया से इसकी उसकी शिकायत, हाल ही में अपने जमाने में प्रशासनिय कोहराम मचा चुके कुछ माननीय बंगले की चौखट लांघ गए और आमना सामना होते ही तेज बारिश की तरफ शुरू,कोई कड़का,कोई गरजा और किसी ने तो नौकरशाहो के रवैए को लेकर नाराजगी भरी बिजली ही गिरा दी।


बंगले जाने वाले सभी एक से बढ़कर एक सुरमा जिन्हें अपने अनुभव का कहर विधानसभा सत्र में देखा जाता है। क्या करे सीधे सादे और सरल, मिलनसार मुखिया ने सब को सुना और ठंडा किया कि फलाने तारीख के बाद आप जो कहेंगे होगा अब हुकूमत में नए पुराने चेहरों की इस कश्मकश में बाजीगर कौन इस पर नजरे लगी हुई है।



देव के आनंद का कंट्रोल.


पार्ट 1.

प्रदेश के पुलिस अमले के बड़े साहब की सरलता, सादगी और ईमान की परिपक्ता के सब कायल है। देव का आनंद ऐसा कि किसी को नाराज नही करते, उनके कुर्सी संभालने के बाद या कहे सुशासन के बदलाव की बयार में डिपार्मेंट कौन हैंडल कर रहा इसे लेकर मच - मच मची हुई है। चर्चा जोरो पर है कि सारे गेम का पावर किसी और के हाथों में है और वहीं हुजूर है। तबादला आदेश डिस्प्ले हो जा रहा है इसके बाद भी जो जहां जमे हैं वही ठहर गए बड़े साहब रिमाइंडर पर रिमाइंडर भेज रहे है। किसी को कोई फर्क नहीं,एक दो को धीरे से खिसका दिया तो अलग बात है वो भी मान सम्मान बना रहे। विभाग के मातहतों मे बड़े कंफ्यूज के हालात है आखिर जाए तो जाए कहा इससे अच्छा जहा टीके है रोजी रोटी वही से चलने दो।


पार्ट 2.

छत्तीसग़ढ बनने के बाद गृह विभाग से शायद ही ऐसा आदेश जारी हुआ होगा जिसके बाद राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को एक अनुभाग से कई अनुभागों में बांटा गया हो, ऐसा बता रहे है कि नियम विरुद्ध की गई भीतर की तैनाती को लेकर फलाना , फलाना अदना सा महसूस कर रहे हैं आखिर ये हो क्या रहा है। जिनका अनुभव अच्छा है वो भी और जिनकी नौकरी से शुरुआत है वो भी बस कागजों के जमा खर्च पर नौकरी कर परिवार का पेट पाल रहे हैं। कोई बता रहा था कि भारी तनाव और आक्रोशी भरा माहौल चल रहा है ऊपर से एक लेडी लॉयन ने लेटर बम से ऊपर से लेकर नीचे तक सब का बाजा फाड़ दिया है। अब इस लेटर बम की गूंज से राज्य पुलिस सेवा संघ कितना मैनेज या कहे  दुखियारो को न्याय दिला पाएगा इस पर सब की नजर है।


राजस्व विभाग के पन्नों का रहस्य.


जब सैंया भई कोतवाल तो डर काहे का..अरे यहां तो कोतवाल से ऊपर की बात है खाकी में श्रीमती और राजस्व में ए जी सुनते हो..


कहते हैं कि राजस्व विभाग में रातों रातों जमीन उड़ती है। कब कहां किसके नाम चढ़ जाए और इस पूरे गेम का मास्टर माइंड कौन होता है ये तो बोलने की बात ही नहीं है, सब समझदार है। किसी फिल्म, नाटक के अच्छे किरदार के लिए कोई नहीं मिला तो पाण्डेय जी, शर्मा जी का नाम से पूरा काम चल जाता है।

मसले पर शोर मचा हुआ है कि शर्मा जी की नयाबी में जमीनों को उड़ाने वाले कितने खेल हुए, कुछ सामने आए और बहुत कुछ छू हो गए। अरे भई जो सामने आए उसमें किया धरा कोई और जेल की हवा खा रहे चैतू, बैसाखु.

लेकिन राजस्व विभाग के कई पन्नो के साथ उन सात पन्नों की कहानी में शर्मा जी रोल उलझा हुआ है कि आखिर जांच की आंच में बच कैसे गए सारा खेल तो सामने आ ही गया था। पूरी स्क्रिप्ट बनी जिले के दूसरे बड़े इलाके के पाण्डेय जी के थाने में और मामला रफा दफा क्योंकि जब सैंया भई कोतवाल तो डर काहे का.


पार्ट 2.

उड़ती जमीनों को पंख लगा लगाने के जादू वाले शर्मा जी का अब कद बढ़ गया है। चर्चा है कि जब उन पर जांच की आंच आई और पुराने से लेकर नए कारनामे का पुलिंदा रेंज के बड़े साहब के दफ्तर पहुंचा और जैसे ही फाइल खुली तो खबर आई कि शर्मा जी फलाने मैडम के हसबैंड हैं बस फिर क्या मामला सेट और पाण्डेय जी थाना इलाके में उड़ाई गई जमीन के मामले में उस वक्त के नयाबी शर्मा जी को क्लीन चिट देकर बेचारे प्यादों को जेल.


दरोगा मंगनी राम की विदाई.


आदर्श थाने से जिले के बड़े साहब ने दरोगा मंगनी राम की पिछले दिनों विदाई कर दी। हुजूर भारी खफा थे और उनका यही स्टाइल भी है कि थाना नहीं संभल रहा तो बताओ वरना लाइन की रवानगी देने में बिल्कुल भी टाइम नहीं लगाते, शहर के दरोगा मंगनी राम का रवैया भी कुछ ऐसा अलग की कुछ भी हो जाए तो लोग चुपके से पूछते थे कि कही वो या उनका थाना क्षेत्र तो नहीं,अरे नहीं रे बाबा कोई और था फिर उधर तपाक से जवाब आता काश बड़े साहब के मेहरबानी की नजर इन पर भी पड़ती तो थाने के साथ जनता का भला होता और हुआ भी बड़े साहब ने दरोगा मंगनी राम की विदाई कर दी.


एक सवाल.


जिले के पुलिस विभाग मे एक विषय पर गंभीर चर्चा हो रही है। आखिर थाने का स्टाफ थानेदार के इशारे के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलाते तो ऐसे में हर किसी चूक ने निचला स्टाफ ही दोषी क्यों, बड़ी सजा छोटे पर और थानेदार को सिर्फ लाइन की रवानगी देकर खानापूर्ति, सारा दोष ही मढ़ना है थानेदार को कटघरे में खड़ा क्यों नहीं करते। शहर से लेकर देहात के थानों में जब भी पुलिसिंग को लेकर कोई चूक होती है मारा जाता है निचला स्टाफ लेकिन थानेदार लाइन से घूम फिर कर वापस, और गुजारिश करते हुए चुप्पी से बोलते हैं कि नाराज न होइएगा इतना सवाल तो पूछने का हक तो बनता ही है न.







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