स्पेशल रिपोर्ट- सियासी आग का प्रतीक बोड़सरा मेला ठंडा पड़ता गया.

‘रवि शुक्ला’

OMG NEWS NETWORK’ की स्पेशल रिपोर्ट में सामाजिक सद्भाव के वो तीन दिन.

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जोगी सरकार के समय अनुसूचित जाति के वोटरों के लिए लगाई गई सियासी आग का प्रतीक है बोड़सरा मेला,एक समाज के संत बाबा बालदास के बीजेपी में जाने के बाद यह आग और ठंडी पड़ गई। अब भूपेश सरकार के राज में चकरभाटा स्थित तीन दिवसीय बोड़सरा मेला कब निपट जाता है किसी को भनक भी नहीं लगती।

बोड़सरा गांव का बाजपेयी बाड़े की फिजा में पहले और अब में काफी बदलाव आ गया है। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद वर्ष 2002 के अगस्त में सियासत कुछ ऐसी रही कि बोड़सरा बाड़ा सियासी आग का प्रतीक बनकर रह गया है। बताया जाता है कि अनुसूचित जाति के एक प्रमुख आगरदास की कल्पना में बाजपेयी बाड़े को अपनी कर्मभूमि बनाने का विचार आया और इसके लिए गांव व आसपास चर्चा के साथ पर्चे बटने लगें। बाड़े में निवासरत बिलासपुर के चांटापारा बाजपेयी मैदान निवासी अखिलेश बाजपेयी और उनकी पत्नी श्रद्धा बाजपेयी के साथ छोटे से बच्चे के लिए यह परेशानी लेकर आया और धीरे धीरे कर सियासी आग भड़कने लगी,कहते है कि गांव वाले तो नही बल्कि इस आग में घी डालने का काम कुछ बाहर से आए असामाजिक तत्वों ने किया। 12 जनवरी 2003 का वो दिन जब बाजपेयी बाड़े में कब्जा करने का एलान हुआ फिर आग और भड़की और एलान लगातार जारी रहा। इधर बाड़े में पत्नी, बच्चे के साथ अखिलेश बाजपेयी को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा, फिर आई सरकार और प्रशासन के मदद की बारी,जिला प्रशासन से लेकर जोगी सरकार के मंत्रियों के बंगलो के लिए राजधानी तक दौड़ लगी,कारवा चलता रहा लेकिन
हासिल आई शून्य के तर्ज पर आश्वासन मिलता रहा और हुआ कुछ भी नही,किसी का साथ नही मिल रहा था सियासी आग और उबाल मारने लगी,अपने बाड़े को बचाने अब न्याय का एक ही उपाय नजर आया हाईकोर्ट,परिवार की लेडी सिंघम अधिवक्ता निरुपमा बाजपेयी ने इंट्री मारी और उतर आई बाहरी लोगों के खिलाफ जंग के मैदान में,बाजपेयी परिवार को एहसास हो चुका था कि अब भी कुछ नहीं किया तो सियायत की यह आग बाड़े को जलाकर कर खाक कर देगी। जिसके बाद 2 जनवरी 2003 को निरुपमा बाजपेयी पहुची हाईकोर्ट की शरण मे और दायर किया प्रोटक्शन केस, सुनवाई हुई और फेवर में आया आर्डर.

टीम- मंडल एंड कल्लूरी.

इधर हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उस वक्त जिले की कमान संभाल रहे, कलेक्टर आर पी मंडल (अब रिटायर),आईजी अनिल एम नवानी(अब रिटायर) और एसपी एसआरपी कल्लूरी (अभी एडीजी) की टीम ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन कर बोड़सरा स्थित बाजपेयी बाड़े के मचमच का बोझ हल्का करने कमान संभाली, अच्छी-खासी राहत मिली और सुगमता से अब कुछ चलता रहा। अब आई तत्कालीन रमन सिंह की सरकार की बारी फिर एक बार इस मामले ने यू टर्न लिया और राहत फिर मुसीबत बन के सामने आई,बाजपेयी बाड़े को घेरने की पिक्चर फिर शुरू हुई और मामला एक्शन सीन तक जा पहुंचा।

Ips गुप्ता जख्मी और मामला शांत.

तत्कालीन बीजेपी की सरकार में बोड़सरा बड़ा छावनी में तब्दील हो गया था। उस वक्त कलेक्टर सुबोध सिंह, एसपी प्रदीप गुप्ता (अभी एडीजी) जिला प्रशासन से ट्रेनी डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया, डीएसपी श्रीमती सिंह,सुशील डेविड, टीआई स्वर्गीय एस के रस्तोगी,टीआई शमशीर खान व अन्य आला अफसरों की टीम ने मेला स्थल पर पैनी नजर रखे हुए थे।

चारो तरफ पुलिस का हुजूम और संत बालदास,मीडिया कर्मियों की भीड़ और बाड़े तक पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था में बाड़े तक पैदल मार्च, शाम होते होते मेला अपने पूरे शबाब मे आया और बालदास की अगुवाई में पूजा अर्चना करने भीड़ बाड़े की ओर बढ़ती चली गई।

मौके का फायदा उठाकर बाहरी असामाजिक तत्वों ने भीड़ को उग्र किया और बाड़े में प्रवेश के लिए जद्दोजहद करने लगे,चारो तरफ से बाड़े को घेरे जिला व पुलिस प्रशासन की टीम ने काफी समझाने का प्रयास किया। लेकिन भीड़ ने फोर्स पर चढ़ाई की इसी बीच मोर्चा संभालने एसपी गुप्ता सामने आए और

उन पर किसी ने हमला कर दिया, एसपी के हाथ से खून निकलता देख फोर्स आगबबूला हुई और चली जमकर लाठियां फिर गिरफ्तारी और कई के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज जिसमें बालदास भी पुलिस गिरफ्त मे आए (तीन महीने की सजा) और मामला शांत हुआ.पुलिस की गिरफ्त में बाहरी लोग और गेहूं के साथ घुन की तरह गांव वाले भी पीस गए थे। जिन्हें बाजपेयी परिवार की ओर से छुड़वाया भी गया।

दो कमरों का अधिग्रहण.

एक्शन सीन के बाद जहां एक ओर सियासत की आग में जल चुके बोड़सरा के बाजपेयी परिवार की मुश्किल फिर भी कम होने का नाम नहीं ले रही थी,बाहरी लोगों को तो पुलिस ने शांत कर दिया। लेकिन तत्कालीन बीजेपी की सरकार में सियासी दांवपेच जारी था। बीजेपी की सरकार में बाजपेई बाड़े को तीर्थ स्थल बनाने की घोषणा कर दो कमरों का अधिग्रहण बाजपेई परिवार को देने का फरमान जारी कर दिया गया।

इसे लेकर एक बार फिर विरोध के स्वर उठे और निरूपा बाजपेयी ने बीजेपी सरकार के इस फैसले पर हैरानी जताई और हाईकोर्ट पहुच अपनी व्यथा से हाईकोर्ट को अवगत कराया। हाईकोर्ट ने इसे अपने आदेश का उल्लंघन करार दिया और सरकार के फैसले को कैंसिल की मुहर लगाई।

और बालदास की बीजेपी में इंट्री.

काफी उथल पुथल के बाद रमन सरकार ने बालदास समेत बोड़सरा बाड़े की आग की जद में आए सभी लोगो पर दर्ज आपराधिक मामले को वापस लिया। जिसके बाद बालदास एंड टीम ने बोड़सरा बाड़े से राजधानी की ओर रुख किया और वर्ष 2017 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने अपने पुत्र के साथ बीजेपी का दामन थाम लिया। उसके बाद भी फिर सियासत उभरी और विपक्ष में बैठी कांग्रेस की सरकार के नेता प्रतिपक्ष टीएस बाबा (अभी स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री) ने कहा था की केस वापस लेना एक प्रक्रिया है वही बालदास के बीजेपी प्रवेश को उन्होंने बयान दिया था कि वह डूबती नैया में सवार होना चाहते है।

एसएसपी ने कहा.
हालांकि अब बोड़सरा बाड़े का तीन दिवसीय मेला काफी शांति से निपट रहा है लेकिन कानून व्यवस्था मद्देनजर एसएसपी पारुल माथुर ने.

विभाग से दो राजपत्रित अधिकारी, 6 टीआई और 10 एसआई समेत 170 पुलिस कर्मचारियों का बल बोड़सरा मेले की चाक-चौबंद में लगाया है।

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