रायपुर: कारवाने ग़ज़ल के मीर हैं मीर , मैं ज़िया खुश हूँ दरमियान में हूँ

  •हरदिल अज़ीज़ शायर ज़िया हैदरी के अवदान को जसम ने किया याद.   • जसम की पत्रिका प्रतिसंसार का एक अंक केंद्रित होगा शायर जिया हैदरी पर.   रायपुर. देश में लेखकों और संस्कृति कर्मियों के सबसे बड़े संगठन जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई ने विगत दिनों हरदिल-अज़ीज़ शायर ज़िया हैदरी साहित्यिक अवदान को याद किया.स्थानीय वृंदावन हॉल में एकत्रित रचनाकारों और श्रोताओं ने सबसे पहले पहलगाम की घटना में शहीद हुए नागरिकों को श्रद्धांजलि दी. इसके बाद एक सुरुचिपूर्ण गोष्ठी में शायर ज़िया हैदरी की शायरी पर विस्तार से चर्चा की गई.   शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले युवा कवि वसु गंधर्व और निवेदिता शंकर की जोड़ी ने ज़िया हैदरी की ग़ज़लों की संगीतमयी प्रस्तुति देकर कार्यक्रम में चार चांद लगाया.   आयोजन में शिरकत करने वाले वक्ताओं ने ज़िया हैदरी की अनेक ग़ज़लों को उद्धृत करते हुए एक शमां बांधा. ज़िया हैदरी साहब के पुत्र आफ़ाक़ अहमद ने जसम के आयोजन को बेहद महत्वपूर्ण बताया. जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर रज़ा हैदरी ने कहा कि ज़िया साहब उनके भाई अवश्य थे, लेकिन वे शायरी के उनके उस्ताद भी थे. ज़िया साहब की सरपरस्ती में उन्होंने शायरी की शानदार तालीम हासिल की जो आज जीवन के हर क्षेत्र में काम आ रही है.   ख्यातलब्ध शायरों में फ़ज़्ले अब्बास सैफ़ी, सुख़नवर हुसैन, मीसम हैदरी, आलिम नक़वी, अब्दुल सलाम कौसर और जसम रायपुर के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने ज़िया साहब की ग़ज़लों की विभिन्न खूबियों की गहरी पड़ताल की. जसम के संयुक्त सचिव अजय शुक्ल ने ज़िया साहब की ग़ज़लों का वाचन किया. इस समूची चर्चा का निचोड़ यह था कि ज़िया हैदरी एक बड़े मयार के शायर थे जिनकी शायरी का सही मूल्यांकन अभी नहीं हो पाया है. एक बहुत निराश करने वाली बात जो उभरकर सामने आई वह यह थी कि इतने बड़े शायर का एक भी संग्रह उनके जीते जी प्रकाशित नहीं हो पाया है. आयोजन में शामिल सभी वक्ताओं ने एक मत होकर कहा कि सामूहिक प्रयास से बहुत जल्द ही उर्दू तथा हिंदी में उनके संग्रह का प्रकाशन किया जाएगा. इस अवसर पर जसम की पत्रिका प्रतिसंसार का एक अंक भी ज़िया साहब पर केंद्रित करने का संकल्प लिया गया. ज़िया हैदरी पर केन्द्रित वैचारिक आदान-प्रदान में यह स्पष्ट हुआ कि उन्होंने बहुत सरल शब्दों में गहरे निहितार्थों वाली गंभीर शायरी की है. उनकी शायरी आधुनिक जीवन के तमाम पहलुओं को अपने दामन में समेटती है और हिंदी और उर्दू के बीच की उस भाषाई जमीन पर खड़ी है जो हिंदुस्तान की बहुसंख्यक आवाम की जमीन है. ज़िया जीवन की विडंबनाओ और संत्रासों के गहन व्याख्याकार थे. उनका फ़न शायरी के सबसे ऊंचे शिखर को छूता है.चर्चा के दौरान सबने माना कि ज़िया हैदरी ग़ज़ल के शिल्प से समझौता किए बगैर शायरी की सभी बंदिशों का बखूबी निर्वाह करते हुए ऊंचे मयार की प्रवाहमय शायरी को अंजाम दिया है.   कार्यक्रम में विशेष तौर पर नामचीन रचनाकार जया जादवानी, डॉ.रेणु महेश्वरी, मधु वर्मा, मौली चक्रवर्ती, नीलिमा मिश्रा, राजेश गनौदवाले, नंद कुमार कंसारी, मीर अली मीर, एसएस ध्रुव नंदन, हैदर हुसैन सुल्तानपुरी, रियाज़ अंबर, राजेन्द्र चांडक, आर. डी. अहिरवार, नरोत्तम शर्मा, हरीश कोटक, डॉ.अखिलेश त्रिपाठी सहित अनेक प्रबुद्धजन मौजूद थे. कार्यक्रम का संचालन राजकुमार सोनी एवं आभार प्रदर्शन जसम के सचिव इंद्र कुमार राठौर ने किया.





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