मुंह फट

‘रवि शुक्ला’

मुखिया की मनोव्वल..

एक कहावत है पाण्डेय जी पछताएंगे… शहर की सियासत में तो इस कहावत की चर्चा जरुर है। सत्ता के ढाई साल के चक्कर में शहर के नेता अब तक पिसते रहे, लगता है शनि की अढ़ैया फेल हो गई है।

जो जहा है पूरे पांच साल वही रहेगा,क्या करते आखिर नेता गिरी तो करना ही है बिना सत्ता पावर के कुछ हो भी नहीं सकता इसलिए कहावत के अनुरूप हँसमुख नेता ने प्रदेश के मुखिया के आगे सरेंडर कर दिया है। मनाया पथाया,बताया और विश्वास दिलाया कि साहब हम आप के ही हैं, कुछ तो रहम करो दया करो सरकार, कहते हैं बिगड़ी बात बनने वाली है। शहर के लिए अच्छा भी है बात बन जाए तो भला ही होगा शहर वासियों का..

तहसीली मलाई-1..

तहसील मतलब माल मलाई का खजाना इसका दफ्तर भले ही नेहरू चौक में लगता है। लेकिन निपटारा छत्तीसगढ़ भवन के कमरा नंबर दो से होता है। निपटारे की कहानी बड़ी दिलचस्प बैठने वाले कोर ग्रुप (चोर ग्रुप नहीं) रोज शाम को 7:00 बजे के बाद कोर ग्रुप रन करता है।

किसकी विवादित जमीन है,कौन कैसे सलटेगा, किसको कहां निपटाना है। सब की रणनीति यही बनती है, इस ग्रुप के लीडर का नाम भी कम मजेदार नहीं है,हाल ही में बने भारी मंत्री के युवराज ग्रुप की दशा और दिशा तय करते है 4 लोगों की टीम में माल मलाई खाकर प्रमोट हुए डिप्टी साहब समेत शहर के तीन दलाल सब कुछ तय करते हैं। बिलासपुर के राजस्व का चार्ज युवराज को मिलने से कोई बुरा भी नहीं मान रहा है अरे ठीक ही तो है इसमें पहले रायपुर,दुर्ग वाले अपनी जो चलाते थे।

सरकार का टेस्ट बदला..

कांग्रेस की सरकार में ढाई साल कमाने खाने वाले दिन गए अब बाकी के ढाई साल ईमानदारी से काम करने और छवि बनाने के लिए है। आगे चुनाव होगा है फिर सरकार बनानी है यह बात कांग्रेस के सत्ताधारी अच्छे समझ रहे हैं,कि अब काम करते दिखना पड़ेगा।

इसलिए अफसरों को फ्री हैंड किया गया राजस्व के सारे मामलों की अपडेट कलेक्टर कर रहे हैं तो वही पुलिस को भी अब कार्रवाई का नशा चढ़ रहा तभी तो नशे और जुआ सट्टा या कहे काले कारोबार के खिलाफ अभियान जोरों पर है। बदनाम जिलों में दमदार और काम करने वाले अफसर तैनात किए जा रहे हैं। खुद सीएम उड़न खटोला लेकर निकलने वाले हैं काम करना,काम करते दिखना दोनों अब सरकार को चाहिए।

तहसीली मलाई-2..

यूं तो तहसीलदार की पोस्ट बड़ी छोटी होती है, लेकिन होती बड़ी मजेदार बड़े से बड़ा पैसे वाला अपनी जमीन-जायजाद को लेकर इनके पास आता जरूर है कहने को तो बिलासपुर में साहू जी तहसील चलाते हैं पुराने साहब अब डिप्टी हो गए।

लेकिन यहां आने-जाने,काम कराने वालों से पूछ लो तो सब बताएंगे की तहसील के सारे फैसले आज भी डिप्टी साहब लेते हैं। साहू जी बस नाम के है, छत्तीसगढ़ी में इसी को कहते हैं। माल मलाई आन खाए टुकना बपुरा मार खाए।

गुरु की राह पर चेला..

जिले की एक तहसील में गड़बेल तहसीलदार पदस्थ हुआ करते थे अब डिप्टी साहब, जिन्होंने पदस्थापना के दौरान कई बडे गफलत किये और सभी को सेट कर के तत्कालीन तौर पर मामले से पाक साफ निकल लिए पदस्थापना के दौरान कई विवादास्पद फैसले भी उनके द्वारा दिये गए,अब प्रमोशन के बाद उन्होंने अपने शिष्य को अपने प्रभाव के इस्तेमाल से प्रभारी तहसीलदार बनवा दिया है।

जो अब अपने गुरु की राह पर ही अग्रसर हैं और राजस्व सम्बंधित मामलो में गफलत भरे आदेश जारी कर रहे है ऐसा करते वक्त उन्हें उच्चाधिकारियों की भी परवाह नही है, हाल ही में एक राजस्व सम्बंधित मामला जो एडिशनल कलेक्टर के न्यायालय में पेंडिंग है,प्रकरण से सम्बंधित कागजात मंगाने के लिए एडिशनल कलेक्टर ने साल भर में 10 से अधिक बार नोटिस भेजा पर गड़बेल के शिष्य ने कागजात सौपना जरूरी नही समझा और तो और अपने से ऊपर के न्यायालय में प्रकरण लम्बित रहने के दौरान ही खुद केस में अंतिम आदेश जारी कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि जब ऊपरी अदालत में केस लम्बित हैं तो प्रभारी तहसीलदार ने किस आधार पर आदेश जारी किया हैं। माना जा रहा हैं कि अपने गुरु के पदचिन्हों पर चलने के कारण ऐसा सम्भव हो सका हैं और हो भी क्यो न जब तक गड़बेल का हाथ सर पर है तब तक गड़बड़ी होने की कोई संभावना नही है।

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