मुंह फट

‘रवि शुक्ला’

अपना-अपना गोबर.

गाय,गोवंश, गोधन ,गौठान और मोब लिंचिंग जैसे शब्द हाल ही के राम राज्य में बहुत प्रचलन में आए हैं और जब से प्रचलन में आए हैं लोगों का रुझान और बढ़ गया है। जाहिर सी बात है कि मतदाताओं का रुझान जिस ओर जाता है वहां से वोटों की राजनीति के लिए योजनाएं तैयार हो जाती है।

पंद्रह साल पहले भाजपा की सरकार ने गाय की पूंछ पकड़कर श्वेत क्रांति लाने की कोशिश की गोकुल नगर बसाया चिल्ला-चिल्ला कर कहा गाय हमारी माता है। फिर भी दूध मिला न दोहनी,फिर आई कांग्रेस की सरकार उसने भी हुआं-हुआं चिल्लाया और गोधन-गौठान बनाकर धर दिया और तो और दो रुपए किलो में गोबर भी खरीदने लगे विपक्ष में बैठे भाजपाई चिल्लाने लगे गोबर घोटाला, साल दो साल में गुजरा नही कि बीजेपी शासित पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में देखा सिखी गोबर खरीदा जाने लगा। हद हो गई भक्तों के बड़े पापा ने इंदौर में कचरे से सोना बनाने की योजना का उद्घाटन किया इसके बाद गोबर मानो सोना बन गया।

अब मध्य प्रदेश के भाजपाई शिवराज सरकार ने गोबर पांच रुपए में खरीदने की घोषणा कर दी अरे भई गोबर तो गोबर है न, यहां छत्तीसगढ़ का गोबर दो रुपए किलो में और एमपी में पांच रुपए किलो, “मुफ्त की सलाह है” छत्तीसगढ़ के भाजपाईयो को चाहिए कि यहां के दो रुपए किलो का गोबर क्यों न एमपी में जाकर बेच दे, तभी तो आम के आम गुठलियों के दाम भी मिलेंगे।

शनि की दशा.

कोई माने या न माने जिले का सिविल लाइन थाना कांटो भरा ताज है, सुनो तो मुश्किल न सुनो तो मुश्किल, आज के जमाने में किस-किस की सुने और सुनते रहे तो काम कब करें, खैर यह तो है थाने की कहानी, इस कहानी का किरदार हाल ही में बड़े बेआबरू होकर बदल गया।

बेचारा मैनेज भी कितना करता कभी दाढ़ी वाले वर्सेस जरहाभाठा के एडी गैंग की भिड़त तो कभी थाने में हो हल्ला और बचा कूचा थानेदार के कमरे में गाली गुप्तार, शहर की ए टीम नाराज हो तो उसे देखो, बी टीम के हँसमुख नेता गुस्साए तो उनकी भी जी हुजूरी,सब मिलाकर कंझा जाने जैसा माहौल,अब
बदल के जो लाइन गया उस बेचारे को क्या पता था कि जलता (उड़ता) हुआ तीर थाने में जा घुसेगा इसी को कहते हैं बैठे ठाले मुसीबत आना ही नहीं थाने में घुस जाना, कहते हैं वैसे दोष किसी घटना या वक्त का भी नहीं है दोष है तो उस थानेदार के नाम मे जिसके नाम के आगे शनि जुड़ा हो, उसकी दशा कभी अच्छी तो कभी बुरी हो होती ही है। वैसे यह तो पुलिस की कप्तानिका ही बता पाएंगी कि उसको शनि की अढैया कहे या साढ़ेसाती का दोष.

दोष गरीब का या पिता का.

कहते हैं मुसीबत किसी को बताकर नहीं आती कुत्ते के कारण बच्चों की कार पलटी और गरीब मारा गया। बड़ा बुरा दौर चल रहा है पता नहीं क्यों बच्चे समय से पहले बालिग होना चाहते हैं। घर में कार आई नहीं की बच्चे कार को चलाने की जिद पकड़ लेते हैं।

इसका गंभीर अंजाम क्या हो सकता है यह लिंक रोड में देखने को मिला कुत्ते को अस्पताल ले जाते- जाते नाबालिग ने 8 मजदूरों को ही अस्पताल भेज दिया। इतना ही नहीं अपना हाड़-मांस गला, दो वक्त की रोटी कमाने वाले गरीब को मौत के मुंह में झोंक दिया। अब इसे होनी कहे या कुछ और कुत्ता झपटा कार अनियंत्रित होकर पलट गई मजदूरों पर बच्चे तो बच गए। लेकिन कार की चाबी सौंपने वाले पिता पर जुर्म दर्ज हो गया और शायद जेल भी हो जाए चिंता की बात तो यह है कि जो नहीं होना था वह हुआ। लेकिन मरने वाले गरीब मजदूर और हो सकता है जेल जाने वाले पिता का क्या दोष था यह कोई नहीं बता पाएगा।

अर्जुनी नसीहत.

सच कहें तो कांग्रेस की भीड़ एक तरह से शंकर जी की बारात होती है जिसमें चोर-उचक्के,नंगे-बुच्चे भी चले आते हैं और ऐसी खचाखच भीड़ खासकर तब होती है जब कोई बड़ा नेता शहर में आए ऐसा नहीं है कि इसे हम कह रहे हैं। यह बात कांग्रेस का हर पुराना कि घिसा पिटा नेता भी जानता है कि कांग्रेस की भीड़ कहां से और कैसे आती है।

बेकार में लोग कांग्रेस के डिजिटल प्रोग्राम में छोटे कद के महा मंत्री को कोस रहे,लोरमी से लेकर बिलासपुर तक इस नेता के अनुभव को सब जानते हैं। उन्होंने भीड़ देखी और माइक पकड़ा तो पीसीसी चीफ के सामने सब को आईना दिखा दिया, बताने लगे कि यह जो दिख रहे हैं वह सिर्फ चेहरा दिखाने आए है,जिंदाबाद- मुर्दाबाद करने आए हैं। काम तो इनसे कुछ होता नहीं फील्ड में, अब डिजिटल डिजिटल खेल के कौन सा संगठन का भला होना है। लगे हाथ सवाल भी उठा दिया कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो कांग्रेस कैसे दोबारा सरकार बनाएगी,कहने को तो कह गए। लेकिन पीसीसी चीफ इसे समझे या नहीं यह अलग बात है। मगर लेबर ठेकेदार की तरह भीड़ जुटाने वाले कांग्रेस के ठेकेदारों को यह बात और अर्जुन के शब्दभेदी बाण की तरह चुभ गई जो आज भी मरमाहत है,भला हो कांग्रेस का ऐसे नेता और कार्यकर्ताओं से.

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