‘मुंह फट’

‘रवि शुक्ला’

चार मंत्री नान लोकेट.

कौआ कान ले गया कि तर्ज पर भाजपाई पीछे पड़े है कि प्रदेश में कांग्रेस का सीएम बदलने वाला है। रात में नींद से उठ बैठते हैं और कहने लगते हैं, ढाई साल ढाई साल.. विपक्ष की चीख-पुकार से कांग्रेस की सत्ता चलाने वाले भी हैरान और परेशान हैं। खुद सीएम को कभी-कभी इस हुंआ-हुंआ के चक्कर में खुद का हाथ भी सांप नजर आने लगा है।

बेकार में अपनो पर नजर रखना पड़ रहा है कहां कौन आया कहां कौन गया खासकर तो कोई दिल्ली आ जा तो नहीं रहा, पिछले हफ्ते चार मंत्री की लोकेशन नहीं मिल रही थी। किसी ने हवा उड़ा दिया कि दिल्ली निकल लिए सब जानते हैं कि कांग्रेस की राजनीति में कुछ भी संभव है सीएम ऑफिस के तोते उड़ गए। खोज-पुकार मच गई सुबह से लेकर शाम तक शासन प्रशासन में हड़कंप मचा रहा। शाम को पता चला कि यह मंत्री यहां तो वह मंत्री वहां थे और फलाने जी फंक्शन में शिरकत कर रहे थे। क्या करोगे राजनीति में जागते रहो का सिद्धांत लागू रहता है खासकर कांग्रेस की राजनीति में तो इसलिए भी सतर्क रहना पड़ता है क्योंकि प्यादे से वजीर बनते यहां देर नहीं लगती है।

एमआईसी मेम्बर्स का बर्थडे..

शहर की राजनीति में नगर सरकार चलाने का मौका भले ही कांग्रेस को मिला है और नगर सरकार में रवताही छाई है। लेकिन सब भूपेश सरकार की छत्रछाया वरना दलीय ताकत के हिसाब से देखा जाए तो कांग्रेसी पार्षदों की संख्या बीजेपी के पार्षद संख्या से 19-20 ही है। मतलब साफ है कि एक दो पार्षद भी इधर-उधर हुए तो कांग्रेस मेयर के जय श्री राम होते देर नहीं लगेगी।

इस बात को कांग्रेसी मेयर भी अच्छी तरीके से समझते हैं शायद यही वजह है कि हर पार्षद के सुख-दुख का उन्हें खास ध्यान रखना पड़ता है। अभी पिछले हफ्ते दो एमआईसी मेंबर का बर्थडे उन्हें मनाना पड़ा, अब सत्ताधारी पार्षदों का बर्थडे समझ गए न कैसे मना होगा खूब छककर खाना-पीना किया गया देर रात तक पार्टी चली इंतजाम तो सभी कांग्रेसी पार्षदों के लिए था मगर हैरत की बात है की इसमें शिरकत सिर्फ एक दर्जन के आसपास ही पार्षदों ने की,खैर जो भी हो इस पार्टी की नगर सरकार में काफी जमकर चर्चा है।

जेल के धंधे में प्रशासन..

सरकार 15 साल के बाद आई है तो लगता है कि इतने लंबे समय में कांग्रेसी कमाना खाना भूल गए हैं। भई ऐसा नहीं होता तो सेंट्रल जेल को प्रभारी अफसर के भरोसे नहीं छोड़ देते अरे भई जेल में हर महीने 20 से 30 लाख का धंधा तो होता ही होगा। कैदियों को साजो सामान मुहैया कराने के एवज में अच्छी खासी तोड़ी होती है, और यह तोड़ी प्रभारवाद के भरोसे हो रही है।

सत्ता चलाने वालों की नजर इस पर नहीं पड़ी तो प्रशासन ने अपने घोड़े दौड़ा दिए, एक महिला डिप्टी कलेक्टर माल मत्ते का हिसाब लगाने मौका मुआयना कर आई है। कुछ लोग यह भी चाहते हैं कि हमारी एक आंख फूटे तो फूटे उसकी राय में कमाने खाने वाला तो अंधा हो जाए। इसके लिए प्रशासन की बीन बजाने के लिए भी तैयार हैं।

मेयर सड़क पर..

पुलिस के अफसर तो ऊंच-नीच समझते हैं लेकिन सिपाही हवलदार तो जब सड़क पर निकलते हैं तो उनकेआगे नेता मंत्री की कोई बख्त नहीं होती, हाल ही में सिरगिट्टी थाने का एक सिपाही हाईवे को अपनी जागीर समझकर ट्रकों की छानबीन में लगा हुआ था रात में लगी वाहनों की कतार महापौर का काफिला आने के बाद भी नहीं हटा यादव जी का हूटर बजा तब भी पुलिस वाले के कान में जूं तक नहीं रेंगी।

मेयर को समझ में ही नहीं आया कि आखिर सड़क पर चल जा रहा है गाड़ी से उतर कर जाकर देखा तो पता चला कि सिपाही अपनी ड्यूटी में लीन है। मेयर ने उसे प्रोटोकॉल समझाने की कोशिश की तो सिपाही ने उल्टा झड़क दिया लिहाजा मेयर का दिमाग घुटने में और वह सड़क पर ही बैठ गए। मेयर का वाहन अलग जाम देखते ही देखते पुलिस अफसरों का फोन घनघनाने लगा सियासत सड़क पर आने से रात को ही पुलिस अफसरों का सिर दर्द शुरू हो गया। नगर सरकार चलाने वाले नेताओं की भाग दौड़ शुरू हो गई, ले देकर मेयर को मनाया गया पुलिस अफसरों ने माफीनामा किया फिर सिपाही को लाइन भेजा गया तब जाकर मामला शांत हुआ।

नीली कार और थानेदार..

जिले की पुलिसिंग में जोरदार प्रभारवाद हावी है,सीनियर इंस्पेक्टरो को लाइन में बिठाया गया है तो वही शहर और देहात मिलाकर कुछ थानों को सब इंस्पेक्टर चला रहे है अब कॉमन सी बात है थानों में जमे रहना है तो बड़े साहब के साथ उनके सिपासलाहकारो को भी खुश करना पड़ता है न जाने कब किसका विकेट गिर जाए। इसलिए बड़े साहब के मूड और उनके दफ्तर की हलचल लेने कुछ तो जुगाड़ बनाना ही होगा न.

खैर अभी लॉक डाउन खुलने के आसपास रेत घाट से सटे एक नवसीखिए थानेदार अक्सर साहब के ऑफिस के नजदीक विचरण करते रहे उनकी कार आई,कुछ देर रुकी और बड़े साहब के दफ्तर के बाबू से मेल मुलाकात के बाद एक लिफाफा टिका दिया। ऐसा करीब दो तीन बार हुआ जरूरी भी है थाने में टिके रहना है तो इतना तो बनता ही है क्योंकि यहां तो प्रभारवाद जो चल रहा है।

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