सकरात्मक पत्रकारिता के धनी थे गोपाल चाचा.

‘रवि शुक्ला’

कबिरा खड़ा बजार में, सबकी मांगे खैर
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।।

संत कबीर दास की इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए बिलासपुर शहर में चार दशक तक पत्रकारिता करने वाले कलमकार गोपाल शर्मा ने अपना सारा जीवन सरल और सहज तरीके से गुजार दिया। मार-धाड़ और नकारात्मक खबरों से परे श्री शर्मा ने अपनी कलम को हमेशा जनसरोकार और जनता को शासकीय योजनाओं का लाभ कैसे दिलाया जाए, इस पर फोकस किए रखा। शहर में गोपाल चाचा के नाम से मशहूर श्री शर्मा नए नवेले पत्रकार को चाहे वह बड़ा हो या छोटा, डांट दिया करते थे। मन से निश्छल बिना छल-कपट के वे अपनी बातों को रखते और फिर लौटकर प्यार से समझाया करते थे।

सन् 1946 में गोंड़पारा की पिंडीदास गली में रहने वाले सुविख्यात पंडित नंदकिशोर शर्मा के यहां उनका जन्म हुआ था। दो भाई और चार बहनों के इस परिवार में वे सबसे बड़े थे। शहर के शासकीय स्कूलों में पढ़ाई के बाद उन्होंने सीएमडी कॉलेज में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। युवा अवस्था के शुरुआती दिनों में उनका रुझान शहर की सियासत और समाजसेवा की तरफ था।

पं. मुन्नुलाल शुक्ला के साथ उनका बैठना और जनसरोकार से जुड़ाव रहा है। तब उन्होंने नगरीय निकायों की चुनावी गतिविधियों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। शहर की सियासत में गहरी पैठ होने के बावजूद उनकी बेबाक टिप्पणी की वजह से सत्ताधारियों से पत्रकार गोपाल चाचा की कभी पटरी नहीं खाई। मौके-बेमौके जब उन्हें कोई पद देने की बारी आई तो उन्होंने ठुकरा दिया और कहा करते थी कि मैं किसी दायरे में बंधकर नहीं रह सकता। शायद यही वजह रही कि उन्होंने फिर अपना ध्यान शहर की सियासत से हटाकर ठेकेदारी का काम किया। फिर चाय, कापी-पुस्तकों के व्यवसाय पर ध्यान लगाया, लेकिन मुक्त हस्थ और स्वछंद स्वभाव की वजह से व्यवसाय भी उन्हें ज्यादा रास नहीं आए। छोटे भाई अशोक शर्मा के साथ वे शहर के मारवाड़ी ब्राह्मण समाज में भी सक्रिय रहे हैं।
उतार- चढ़ाव भरी जिंदगी के बीच पत्रकार शर्मा का विवाह सन् 1961 में नागपुर के जोशी परिवार की सुपुत्री से हुआ। जीवन के उत्तरदायित्तवों के भार ने उनका रुझान पत्रकारिता की ओर किया और वे हितवाद से जुड़े और आखिर तक इस अखबार के लिए ही काम करते रहे। पत्रकारिता के दौर में जब कलमकार ग्लैमर से भरे दौर की तरफ आकर्षित थे, तब उन्होंने स्वतंत्र और सकारात्मक पत्रकारिता को दिशा देने का काम किया। वे रेलवे और एसईसीएल जैसे केन्द्रीय संस्थानों की खबरों को ज्यादा महत्व दिया करते थे।

उनका मानना था कि शहर के विकास में इन संस्थानों का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। इन संस्थानों के जरिये अधिकाधिक लोगों को भला किया जा सकता है। शहर के नामी और वरिष्ठ पत्रकार शर्मा को याद रखें या न रखें लेकिन एसईसीएल और रेलवे से जुड़े अफसर और नेताओं को उनकी कमी जरूर अखरती है।
पत्रकार शर्मा के बाद की और अब नई पीढ़ी के हम जैसे पत्रकारों को याद आती है, उनकी डांट-फटकार और उसके बाद अंतर्मन से पिता तुल्य स्नेह है। इसमें कुछ सिखाने और उत्साह भरने का एक नया अंदाज ही होता था। अपनी पत्रकारिता के दौर में उन्होंने कभी किसी को कुछ नहीं समझा और ना ही किसी की परवाह की। भले ही इसके लिए वे अपना नुकसान करा लेते थे, मगर जो कहते, खरी-खरी कहा कहते थे। गोपाल चाचा में ना कोई रोग ना कोई खोट। 78 साल की उम्र तक वे दौड़-भाग करते। इसके बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और बायपास सर्जरी के बाद भी वे संभल गए। सुबह से उठकर हर किसी से मिलते जुलते और हर किसी का दुख बांटते चला करते थे।
जाना तो इस जहां से हर किसी को है, लेकिन किसको पता था कि हमारे पत्रकार गोपाल चाचा को कोविड की दूसरी लहर अपने साथ असमय बहा ले जाएगी। शायद होनी को यही मंजूर था कि 19 मई 2021 को नागपुर में 85 साल की उम्र में वे आखिरी सांस लें। महामारी के इस विकराल दौर में वे जिंदगी की जंग हार गए। दो पुत्र और चार पुत्रियों से भरापुरा परिवार वे बिलखता छोड़ गए। वो दौर भी ऐसा था कि हजारों की संख्या में उनके चाहने वाले तब जुट नहीं सके, लेकिन उनकी 24 अप्रैल 2022 को नागपुर में होने वाले बरसी कार्यक्रम पर यादगार श्रद्धांजलि तो दे ही सकते हैं। शत् शत् नमन।

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