खैरागढ़। खैरागढ़ जिले के झूरानदी गांव में दो मासूम भाई-बहन की हत्या से पूरा क्षेत्र शोक में डूबा हुआ है. एक तरफ पुलिस ने 12 घंटे में इस सनसनीखेज वारदात का खुलासा कर आरोपी नाबालिग को पकड़ लिया, वहीं दूसरी तरफ प्रशासनिक लापरवाही ने पूरे सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.
पोस्टमार्टम के बाद जब परिजनों ने छुईखदान अस्पताल से बच्चों के शव घर ले जाने के लिए शव वाहन की मांग की, तो अस्पताल में एक भी शव वाहन उपलब्ध नहीं था. मजबूरी में परिजनों को दोनों मासूमों के शवों को मालवाहक में रखकर गांव ले जाना पड़ा. यह दृश्य देखकर ग्रामीणों की आंखें नम हो गईं— हत्या का दर्द अलग और प्रशासन की बेरुखी का घाव अलग.
परिजन और ग्रामीण प्रशासन पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं. खैरागढ़ जिले का गठन हुए तीन साल हो चुके हैं, लेकिन अब भी स्वास्थ्य सुविधाओं और आपात सेवाओं की हालत ज्यों की त्यों बनी हुई है. यह परिस्थिति इस बात की तरफ इशारा करती है कि जिले में स्वास्थ्य ढांचा केवल कागजों में सशक्त दिखता है, जमीनी हकीकत में नहीं.

ग्रामीणों ने बताया कि घटना इतनी बड़ी थी, पूरे गांव में मातम पसरा था, लेकिन अस्पताल में एक वाहक उपलब्ध नहीं कराया जा सका. लोगों ने अफसोस जताया कि मासूमों के शवों को भी सम्मानजनक तरीके से घर तक ले जाने की सुविधा यहां नहीं है. घटना के बाद स्थानीय सामाजिक संगठनों और कई जनप्रतिनिधियों ने भी सवाल उठाए हैं कि जब मौत जैसी आपात स्थितियों में भी शव वाहन उपलब्ध नहीं हो पा रहा, तो सिस्टम आखिर किस काम का.
ग्रामीण प्रशासन से तत्काल इस सुविधा को दुरुस्त करने और अस्पतालों में पर्याप्त शव वाहन उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं. मासूमों की हत्या ने जहां पूरे गांव को हिलाकर रख दिया, वहीं प्रशासन की लापरवाही ने लोगों में आक्रोश और बढ़ा दिया है. दुःख और गुस्से के बीच गांव एक ही सवाल पूछ रहा है, “हत्या करने वाला दोषी कौन, और शव वाहन न देने वाला दोषी कौन?”



