कोरोना काल और कोल इंडिया..

‘मनोज कुमार चौरसिया’
क्षेत्रीय विक्रय प्रबंधक
जमुना कोतमा क्षेत्र, SECL
कोल इंडिया..

हीरो होना असल में कैसा होता है? असल में हम सबको जिंदगी में हीरो की तलाश रहती है, जो हमारी जद्दोजहत भरी जिंदगी में सुकून और सुरक्षा को भर सके। तो कहाँ हैं ऐसे हीरोज? पिछले साल भर में हमने ऐसे हीरोज को अपने आस-पास बखूबी महसूस किया। अस्पतालों में कोरोना से लड़ते हुए मरीजों के पीछे खड़े हजारों डॉक्टर्स और नर्सों में, सड़कों पर चाक-चौबंद होकर अपनी ड्यूटी निभाते हुए पुलिस कर्मियों में, उन लोगों में, जो इस क्षेत्र में ना रहते हुए भी सैकड़ों जिंदगियों को बचाने में लगे हुए थे, घरों में रोजमर्रा की जरूरत का सामान पहुंचाने वाले लोगों में और उन में भी जिन्होंने बेबस, बेसहारा और बेरोजगार हुए गरीबों के घर में राशन पहुंचाया। सरहद पर खड़े जवान हमेशा से ही हमारे हीरो रहे हैं। इन सबकी कीमत हम सब बखूबी पहचानते हैं। इन सबको सलाम है।

लेकिन उनका क्या जो इस दुनिया के रंगमंच पे सामने नया आकर परदे के पीछे खड़े होकर चुपचाप अपना काम बखूबी करते रहते हैं। क्या उनका जयगान कोई कलम नहीं लिखेगी? उनके बारे में कब बताया जाएगा। मैं यहाँ कॉल इंडिया और उसके लाखों कर्मचारियों की बात कर रहा हूँ। जब लॉकडाउन के चलते सब घरों में थे, तब हम कोल इंडियंस कोरोना के डर के तले दिन रात अपने क्षेत्र में जुटे हुए थे ताकि देश की ऊर्जा की पूर्ति कर सकें। कोल माइनिंग एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां काम करते हुए सोशल दूरी बनाए रखना संभव नहीं है। अन्डरग्राउन्ड खदान में अगर किसी एक को भी कोरोना हो जाए तो पूरी की पूरी शिफ्ट संक्रमित होने की संभावना रखती है।

हमने दिन रात काम किया, अपने साधारण दिनों की अपेक्षा ज्यादा काम किया ताकि आपके घरों में बिजली आ सके, आपके मोबाईल और टीवी चल सकें, देश के अस्पतालों को बिना रुके बिजली मिल सके, जहां हजारों जाने दांव पर थीं। लेकिन जान दांव पर हम लोगों की भी थी, हमारे परिवार की भी थी। इस दौरान देश ने बहुत सी कीमती जिंदगियाँ खो दीं, हमारे बहुत से अपने भी हमसे छिन गए; जिनका हम अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाए और इसी दौरान हमारे अपने सैकड़ों साथी भी काम करते हुए कोरोना से बीमार हुए, जिनमें से बहुत से फिर कभी वापस लौट कर नहीं आ पाए।

बहुत कठिन होता है, अपने काम पर वापस जाकर ये देखना कि हमारा अमुक साथी अब कभी काम पर नहीं आ सकेगा। हमारे हाथ काँपते थे, दिल रोता था और आँखें नम होती थी लेकिन हमारे पास शोक मनाने का समय नहीं था। क्यूंकी अगर हम बैठ जाते तो देश में अंधेरा हो सकता था, जो हमारे जेहन को कतई गँवारा नहीं था।

कितना मुश्किल है इस दौर में काम करना जिसे यहाँ समझा पाना संभव ही नहीं है। ब्रेकडाउन होने पर हमें सामान नहीं मिल पा रहा है, उन्हें रिपेयर करने के लिए आदमी नहीं हैं लेकिन हमारे लिए तो वक़्त जैसे रुक सा जाता है, हमारी घड़ियाँ बंद हो जाती हैं, किसी दरवेश सा हाल है जो दिन भर मौला-मौला छोड़कर, कोयला-कोयला की रट लगाए फिरता रहता है। किसी क्षेत्र विशेष का जीएम किसी सेना के कर्नल सरीखा होता है जिसके कंधों पर क्षेत्र की हर गतिविधि को चलाए रखने का दारोमदार होता है। इस दौरान उनके दिन मरीजों के हाल चाल, अस्पतालों की व्यवस्था और आक्सीजन के इंतजामात करने में गुजरे। इसके बावजूद भी उन्होनें कितना बेबस महसूस किया होगा जब रोज उनकी सुबह इस खबर से होती थी कि फलां खदान का फलां आदमी मर गया। एक गिल्ट से सुबह की शुरुआत कि हम कुछ नहीं कर सके और फिर से लग जाना उसी रोजमर्रा की दौड़ में। इस दौरान मैंने हर रोज वो थकान और बेबसी हर रोज सुबह की रेपोर्टिंग के दौरान अपने जीएम की आवाज में महसूस की।

फलां कारोबारी ने इतना पैसा कोरोना के लिए दिया, फलां ने आक्सिजन अस्पतालों को दे दी। लेकिन कोल इंडिया के एक-एक क्षेत्र ने करोड़ों रुपयों से प्रशासन को सहयोग दिया, अपने अस्पतालों को हर एक जिंदगी के लिए खोल कर रख दिया, आक्सिजन सिलेंडर्स मुहैया कराए, दवाइयाँ दीं लेकिन किसी भी राष्ट्रीय न्यूज चैनल ने इसे कवर नहीं किया।

हम महानगरों की चमक से दूर, दुर्गम स्थानों में कोयला निकालते हैं। हमारे पास वहाँ के जैसी सुविधाएं नहीं होती, घूमने फिरने, चिल करने की जगहें नहीं होती। हममें से बहुत, देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़े लिखे हैं, जो किसी भी मल्टीनैशनल कंपनी में करोड़ों के पैकेज पर काम कर सकते थे लेकिन उन्होनें चुना इस जगह को जहां देश सेवा का एक अलग ही मुकाम था। हमारे परिवारों को शहरी जीवन मुहैया नहीं है और उस जीवन की तुलना में हम रोज बहुत से त्याग करते हैं। हमारा परिवार बस मन मसोस कर रह जाता है और हम उनको बाकी सुविधाओं के साथ-साथ अपना समय भी नहीं दे पाते क्योंकि वो खुद भी हमारा नहीं हैं। इतना ही नहीं कोलफील्ड का आदमी बाकी दुनिया से कट जाता है, उसे इस बात तक के बारे में नहीं पता होता कि उसके बच्चों के लिए कौन सा कॉलेज बेहतर है, उनके शादी ब्याह की व्यवस्था कैसे करनी है। रिटायर होने के जब वो किसी शहर में सेटल होता है तो अपने आस-पास के नए माहौल और व्यस्त शहरी जिंदगी को देखकर डरने लगता है। उसे उस भीड़ के बीच में आईडैंडीटी क्राइसिस होने लगता है। बशर्ते वो कोलफ़ील्ड में होने वाली औधोगिक बीमारियों उस उम्र तक जिंदा बच सके।

हम स्वतंत्र नहीं हैं, हमें एक एक दायरे में बंधकर काम करना पड़ता हैं और काम को चलाए रखने के लिए कई बार हमसे कुछ गलतियाँ भी होती है, बहुत कुछ छूट भी जाता है, जिसके लिए हमें जांच भी झेलनी पड़ती है। ऐसे कठिन दौर में भी अपनी ड्यूटी निभाते हुए हम झेल रहे थे सीबीआई और विजलन्स की इंकुआरी। लेकिन कोई हमारे इस पक्ष को नहीं बताता। बताते हैं तो सब एक रटा हुया मुहावरा “कोयले की दलाली में हाथ काले”, मानों यहाँ काम करने वाला हर आदमी चोर हो। हाँ हमारे हाथ काले हैं क्योंकि तभी आपके चेहरे पर चमक है। जिस दिन ये हाथ साफ हुए उस दिन देश में अंधेरा हो सकता है। लेकिन इस सब से परे हम लगे हैं। हमें उस चकाचौंध भरी जिंदगी की लालसा तो है, क्योंकि हम भी वैसी ही आराम तलब जिंदगी चाहते है लेकिन हम उस हसीन जिंदगी की कल्पना करते हुए लगे रहेंगे साथी! अपने काम पर क्योंकि हम में भी है हीरो, हम हैं कोल इंडिया। मेरे कोल इंडिया के साथियों आपके जज्बे को सलाम। लेकिन मैं यहाँ सिर्फ कोल इंडिया के हीरोज की बात करने नहीं आया हूँ। असल में हीरो होने कैसा होता है? आप खुद को शीशे में देखे और खुद जान जाएंगे। क्या आपने अपनों को नहीं खोया लेकिन फिर भी आप यहाँ हैं उस दुख को लेकर भी, क्या आपने कभी किसी की मदद नहीं की इसके बाबजूद कि आपके जिसके हकदार थे वो आपको नहीं मिला। आपने अगर इस दुनिया को बेहतर बनाने में मदद की तो बेशक आप हीरो हैं और ऐसे हीरोज के बारे में पूरी दुनिया को जानना चाहिए ही।

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