“मुँहफट”

रवि शुक्ला’

ना समझ नेता..

नगर के भाजपा के लाल से लड़ के जीत जाने की सजा हँसमुख पाण्डेय जी को आजतक भुगती पड़ रही है। यू तो सियासत में कोई बैर नही होता मगर,एयरपोर्ट के शुभारंभ कार्यक्रम में साफ दिखाई दिया कि कांग्रेसी और भाजपाई भले आपस में गले मिल ले। लेकिन सब के सामने पाण्डेय जी से कोई हाय हैलो भी नही करेगा। मंच पर सब की आँखों की किरकिरी बने पाण्डेय जी ने खुद भी नही सोचा होगा कि चुनाव हारने के बाद भी नगर के लाल का भाजपा और कांग्रेस के नेताओं में इतना दबदबा है।

क्षेत्र के लोग इतने भी नासमझ नही है जो भाजपा और कांग्रेस की गलबहियों को न समझे,समझदार हैं तभी तो पाण्डेय जी को कुर्सी दिलवाई, ना समझ तो मंच के नेता है।जो मतदाताओं की तासिर को न पहले समझे थे और न अब समझ पा रहे हैं।

(👆पार्किंग-नो कमेंट्स👆)

काबिल कबाड़ी..

जिले के मुंह लगे काबिल सिपाही की एक और काबिलियत का पता चला है। बताते हैं कि सकरी पेंड्रीडीह बाईपास रोड़ पर उसके परिवार की एक कबाड़ दुकान है। वैसे तो कबाड़ का धंधा और पुलिस में सांप नेवले जैसी स्थिति है। कबाड़ को पकड़ना पुलिस का काम है,क्योंकि चोरी का माल कबाड़ी के जरिए ही ठिकाने लगता है।क्या अब पुलिस परिवार में कबाड़ फैल जाएगा तो क्या महकमा उसका क्या बिगाड़ पाएगा। अब इसे पुलिस विभाग के अदने से सिपाही की काबिलियत ही तो मानेंगे की वह बे ख़ौफ इस धंधे को जाने अनजाने संरक्षण दे रहा हो।

भई नौकरी है..

सरकार राजधानी में खेल (रोड़ सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट) करा रही है। जो पुलिस के अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए सजा साबित हो रही हैं। कर्मचारियों की बात करें तो बेचारे अच्छा खासा चौक चौराहों पर पसीना बहा के बाइक वालों को धर चार पैसा कमा लेते थे। तो वही अफसरों की क्या बताए। खैर अब एक माह तक खिलाड़ियों की सुरक्षा लेकर खेल मैदान और अन्य ताम- झाम में दिन रात की जिम्मेदारी निभा ड्यूटी करनी पड़ रही है। चलो पुरुष अधिकारी कभी तो कैसे भी घर से बाहर,घर से दूर दिन रात काम कर ले रहे हैं, क्योंकि भई नौकरी है तो कही न कही सुरक्षा का काम तो करना ही पड़ेगा। लेकिन ज्यादा फजीहत महिला अधिकारियों की हो रही है बेचारी घर बार छोड़कर कैसे नौकरी कर रही है। सरकार की आँख और कान नही होते, तभी तो इन बेचारियों का न दर्द दिख रहा न सुनाई दे रहा। इधर आला अफसरों को कौन बताए कि बच्चों की ऑनलाइन क्लास, घर का कामकाज ऊपर से चूल्हा चौका,एक्जाम का टाइम है गर्मी ने अपना तेवर दिखाना शुरू कर दिया है पर पता नही क्यो महिला दिवस पर भी सरकार इन पर रहम नही कर रही आला अफसरों की तपना तो आम बात है।

डमडम सिपाही का ड्रामा..

कहते है नगर कोतवाल किसी से नही डरता खास कर अपने मातहतों से तो बिल्कुल नहीं, करीब एक माह से ज्यादा हो गया यहां एक कोतवालिन आई है। स्टाफ की कमी और काम के दबाव के चलते आम तौर पर पुलिस वालों को जल्दी छुट्टियां नही मिलती। लिहाजा इस महिला टीआई (कोतवालिन) ने एक सिपाही की छुट्टी रद्द कर दी या कहे किसी कारण से छुट्टी की परमिशन नही दी फिर क्या इसका नतीजा उल्टा पड़ गया। सिपाही गुस्से में बेदम बम रात में सिपाही डमडम होकर थाने के पुलिस ग्रुप में चटियाने लगा,लिख भेजा अगर छुट्टी नही मिली और मुझे या मेरे परिवार को कुछ हो गया तो इसकी जिम्मेदार कोतवालिन होगी। जैसे ही मैसेज कोतवालिन ने देखा उनकी सांसे फूलने लगी। अभी एक माह ही तो हुआ है जॉइन करें ऊपर से ये सब तमाशा, आननफानन में सिपाही के घर स्टाफ भेजकर सारा माजरा समझा गया और उसकी पत्नी से बात कर नजर बनाए रखने बोला गया तब कहि जाकर राहत की सांस कोतवालिन ने ली। वैसे इस घटना को लगभग दो हफ्ते बीत गए हैं कोतवालिन की साँसे रोकने वाला सिपाही कभी थाने का स्टार हुआ करता था मगर वक्त का मारा इन दिनों लूप लाइन की तरह काम कर रहा है।

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