‘मुंहफट’

‘रवि शुक्ला’

धत कलेक्टरी..

पद और शोहरत इंसान के सिर चढ़कर बोलती है जमाना बदल गया है साहब सूरजपुर में कलेक्टर रणबीर शर्मा का एक थप्पड़ पूरे देश भर में गूंज गया है। छत्तीसगढ़ सरकार आईएएस लॉबी समेत सोशल मीडिया मे चौतरफा थू-थू हुआ तो कलेक्टर को अपने किए पर पछतावा हुआ क्यों बेकार में मेडिकली काम से जा रहे बालक को थप्पड़ मार दिया और पुलिस के डंडे से पिटवाया सो अलग, पद की गर्मी से बेकार में नुकसान हो गया न बैठे ठाले फजीहत हो गई। किसी का ट्रेड रिकॉर्ड ही खराब होता है और कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखने लग जाते हैं। भर्ती होकर प्रशिक्षण में आए थे तभी से इनकी प्रतिभाएं दिखने लगी थी। पेंड्रा में भालू से जंग लड़ लिए और गोली चलवा दी।

कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर ब्लॉक में एसडीएम के पद पर पदस्थ रहते हुए रिश्वत लेने के आरोप में रंगे हाथों एसीबी के हत्थे चढ़ गए थे गिरफ्तारी भी हुई लेकिन आईएएस लॉबी की वजह से खुद को बचा लिया और मातहत पर आरोप मढ़ दिया।
आशा यह है कि पढ़ना लिखना ही सब कुछ नहीं है उच्च पदों पर बैठने के बाद सामाजिक संवेदनाओं का भी कोई एग्जाम होना चाहिए।

करनी के बाद दे रहे सफाई..

अपनी करनी के बाद तुनक मिजाज आईएएस शर्मा कहते हैं कि सालभर से मैं और मेरा पूरा अमला मेहनत कर रहे हैं मैं,मेरे माता पिता भी कोविड की चपेट में आये थे।
इसे भलीभांति समझता हूं। व्यक्ति पर शारीरिक रूप से क्या बीतती है आवेश में आकर थप्पड़ मारने की बात कही और क्षमा मांग कहा की किसी के अपमान करने का मेरा मकसद नहीं था, आवेश में आकर मैने हाथ उठाया जिसके लिए क्षमापार्थी हू।

पुलिस में सबला..

पुलिस से सलाम दुआ रख काम निकालने वालों के लिए बेचैन करने वाली खबर है। महीने दो महीने में डीएसपी लेवल के आधा दर्जन पद खाली होने वाले हैं याने जमे हुए बरगद पीपल उम्र का आखरी पड़ाव पार कर विभाग को टाटा, बाय-बाय करने वाले हैं। चलो यह सब तो होता रहता है।

बेचैनी की बात यह है की इन सब पदों के लिए अधिक आबादी (महिला) अफसरों की नजर है। जिले की पुलिस में अबलाएं जरा ज्यादा सबला होकर उभरेंगी तो सोच लो किसकी किसकी खैर नहीं कुछ तो पहले से जमी है और कुछ जमने के लिए ट्रेनिंग ले रही है सोच लीजिए पुलिस कप्तान कि ना जाने कहां कहां ओले पड़ने वाले हैं।

पॉलीटिकल जुआ..

पीएम,सीएम और डीएम कुछ भी कर ले होता तो वही है जो थानेदार और पटवारी चाहता है। फिर इसमें पुलिस कप्तान की तो कोई बखत ही नहीं है आते रहे सूचना पकड़ते रहे जुआ, कोनी थाना क्षेत्र में कप्तान ने जुआ पकड़वा या तो क्या हुआ भारी तो पड़ गई न कोनी की थानेदारी पहली फुर्सत में लिखा पढ़ी करते समय एक सरपंच (रेल्वे स्टेशन में कैंटीन संचालक) का नाम गायब, वैसे अच्छा ही किया नाम गायब कर यह तो इंटेलिजेंसी है।

थानेदार को पता था क्षेत्र से लगे विधानसभा की महिला मैडम मिनिस्टर का फोन आता ही होगा बेकार में ऐसे जुए को नहीं पकड़ना चाहिए था। जिसमें पॉलीटिकल इंवॉल्वमेंट हो क्राइम मीटिंग में बार-बार बोलते ही थे थानेदार की साहब मेरे क्षेत्र में जुआ नहीं होता कोई नहीं मानता था अब पकड़ लिया तो क्या हुआ माल मशरूका भी कम ज्यादा करना पड़ा आखिर लीपापोती करना ही था तो ऐसा जुआ पकड़ने का क्या मतलब..

👆 नो कमेंट्स..

पकौड़ा संग हर हाथ हो दारू..

लॉकडाउन में सब का धंधा मार खा गया नौकरी चाकरी बंद, कोई बात नहीं सरकार ने हर हाथ को काम देने के लिए कोचिया गिरी का नया धंधा शुरू कर दिया है। जिसको भी थोड़ा सा मोबाइल नेट और ऑनलाइन काम आता है वह बड़े आराम से हजार 500 या उससे अधिक पर डे कमा रहा है। ज्यादा मेहनत मशक्कत भी नहीं करना है सुबह ऐमेज़ॉन,फ्लिपकार्ट की खरीदी की तरह छत्तीसगढ़ सरकार से ऑनलाइन दारू ऑर्डर करना है दोपहर को भट्टी जाकर झोले में माल भरकर लाना है नहीं तो दारू की घर पहुंच सेवा मिल ही रही है।

शाम को गली मोहल्लों में आपदा का अवसर तलाशना है एक बोतल और पव्वा के पीछे 200- 400 से ज्यादा लेकर मदिरा प्रेमियों के कंठ को गिला करना है दूसरों की भी जनसेवा करो और खुद भी पियो खाओ, इसके साथ 200-500 घर भी ले जाओ, इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।  केंद्र की भाजपा सरकार युवाओं से पकौड़ा (चखना) तलवा ही थी अब खाली (चखने) से काम कैसे चलता तो छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने हर हाथ दारू के साथ कर दिया है।

कहीं कटघरे मैं ना खड़ी हो जाए सरकार..

राज्य में जेल विभाग का भी अजब गजब काम चलता है कोरोना की दूसरी लहर से बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कैदियों को पैरोल अंतरिम जमानत पर छोड़ने का अंतिम फैसला लेने का अधिकार राज्य की हाई पावर कमेटी पर छोड़ दिया। इधर छत्तीसगढ़ स्टेट लीगल अथॉरिटी कमेटी ने जेल अधीक्षकों को पत्र भेजकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार बंदियों की रिहाई का आदेश भी दे दिया। अब सवाल यह है कि आखिर जेल प्रबंधन क्यो कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर छोड़ने का मूड नहीं बना रहा।

भई ऐसा है कोरोना काल ने सब के कामकाज,धंधे में बट्टा लगा दिया स्वाभाविक है जेल की अंदरूनी कमाई में भी इसका फर्क पड़ा है प्रदेश की पूरी जेलों से अगर कैदियों को तुरंत छोड़ दिया जाए जाता तो एक मोटी कमाई पर सीधा असर पड़ रहा है सारा खेल माल का है इसीलिए रायपुर मुख्यालय में बैठे एक डीआईजी लेवल के अफसर कैदियों को छोड़ने में जरा आनाकानी कर रहे हैं। इनकी मनमर्जी का नतीजा कहीं ऐसा ना हो कि सुको
के आदेश की अवहेलना करने के चक्कर में कहीं सरकार को कटघरे में ना खड़ा होना पड़ जाए।

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