आरोप- शक्ति सिंह को दुबे एंड टीम के साथ मिलकर बेवजह भेज दिया सिविल लाइन पुलिस ने जेल,बेटे को न्याय दिलाने अब माँ बनी एक ‘आशा’,कहा जिसने भी रची साजिश उसे भुगतना पड़ेगा.

बिलासपुर.शहर के एक युवा को पुलिस के साथ प्लानिंग कर एक ग्रुप ने फर्जी डॉक्टरी रिपोर्ट का बेस बना करीब 1 माह गैर जमानती धाराओं के तहत जेल भेजने का ताजा मामला सामने आया है। लगभग दस माह पहले हुए मारपीट के इस मामले में पहले पुलिस ने ही पीड़ित युवक को थाने से मुचलका देकर चलता कर दिया था। फिर उसे अचानक गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस पूरे घटनाक्रम में सिविल लाइन पुलिस की कार्यप्रणाली से क्षुब्ध युवक की माँ ने टीआई और विवेचक पर दूसरे पक्ष से सेटिंग करने का गंभीर आरोप लगाया है वही अपने पुत्र को न्याय दिला आरोपियों को सजा दिलवाने की ठानी है।

मारपीट के मामले में पहले थाने से मुचलका फिर एक निजी अस्पताल से फर्जी डॉक्टरी रिपोर्ट तैयार, दस माह बाद अचानक गिरफ्तारी और करीब 1 माह की जेल,आखिर क्यों और किसके शह पर.

इन सब सवालों को लेकर जबड़ापारा निवासी आशा सिंह पत्रकारों के बीच पहुची,उन्होंने प्रेस क्लब में बताया कि उनके पुत्र शक्ति सिंह को किस कदर उत्कर्ष दुबे,अंकित दुबे,ऋषभ शर्मा और अमन गुप्ता ग्रुप के साथ प्लानिंग कर सिविल लाइन पुलिस ने जेल में ठूस दिया था। पीड़ित की माँ का आरोप है कि सरकंडा स्थित स्काई हॉस्पिटल के डॉक्टरों के बिना जानकारी के पहले फर्जी क्योरि रिपोर्ट बनाई गई फिर गैर जमानती धाराओं की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर शक्ती सिंह के मोबाइल नंबर को ट्रेस कर उसे किसी कुख्यात अपराधी की तरह गिरफ्तार किया गया।

जबकि डॉक्टरों को जब इस फर्जी क्योरि रिपोर्ट की खबर लगी तो वही डॉक्टर्स सरकंडा थाना फिर सिविल लाइन थाने मे लिखित आवेदन देकर अपना पक्ष रखा। जिसके बाद शक्ति सिंह के लिए परत दर परत रची गई साजिश राज खुलता गया। अपने बेटे को न्याय दिलाने आशा सिंह ने खुद अपने स्तर पर दौड़ भाग की और दुबे एंड ग्रुप संग पुलिस की साठगांठ की पतासाजी की.

एक नजर पूरे मामले पर.

पुरानी रंजिश पर उत्कर्ष दुबे और शक्ति सिंह के बीच हुए मारपीट के मामले में सिविल लाइन पुलिस ने 10 महीने के बाद शक्ति सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। यह मारपीट बीते 12 जनवरी को हुई थी। पुलिस पर आरोप है कि दूसरे पक्ष से मिली भगत कर शक्ति सिंह पर अचानक गंभीर धाराओं के तहत 4 अक्टूबर को यानी 10 महीने के बाद सिविल लाइन पुलिस ने कार्यवाही कर जेल भेज दिया गया।

हॉस्पिटल बंद और बन गई रिपोर्ट.

पीड़ित युवक की माँ ने बताया कि स्काई हॉस्पिटल बीते कुछ माह से बंद पड़ा हुआ है अब सवाल ये उठता है कि आखिर ताला लगे हॉस्पिटल से क्वेरी रिपोर्ट कैसे तैयार हो गई। आरोप है कि पुलिस ने शक्ति सिंह को स्काई हॉस्पिटल के डॉक्टरों द्वारा बनाई गई फर्जी क्वेरी रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार किया। जबकि गैर जमानती मामलों में पुलिस आरोपी को तत्काल गिरफ्तार कर लेती है फिर शक्ति सिंह शहर में आम दिनों में अपने कामकाज में व्यस्त रहा और सब से मिलता जुलता रहा,अचानक ऐसा क्या हुआ कि 10 महीने बाद पुलिस किसके कहने पर गिरफ्तार कर लिया।

राजधानी के नेता से जोड़ा कनेक्शन.

इस पूरे मामले में सब से अहम बात यह है कि दुबे एंड पार्टी द्वारा बेवजह शक्ति सिंह को गिरफ्तार करवाने हर तरह का हथकंडा अपनाया गया। पुलिस और फर्जी क्वेरी रिपोर्ट के अलावा राजधानी में बैठे सत्तापक्ष के एक संसदीय सचिव स्तर के नेता का नाम लेकर उसकी गिरफ्तारी की बात उड़ाई गई। सूत्रों ने बताया कि सिविल लाइन पुलिस ने उक्त नेता का प्रेशर होने और फोन आने पर शक्ति सिंह को गिरफ्तार करने की बात कह रही थी। इधर बेटे के बेवजह जेल जाने से परेशान माँ आशा सिंह ने जब इस बात की खोजखबर ली तो पता चला कि ऐसा कुछ नही है और नेता भी इस बात से मुकर गए जिसके बाद तो सिविल लाइन पुलिस के हाथ पैर फूलने लगे।

डॉक्टर सखूजा ने कहा.

स्काई अस्पताल के डॉक्टर राजीव सखूजा अपनी बात रखी उन्होंने मीडिया से कहा की मेरा या मेरे अस्पताल का कोई हाथ नही है। उत्कर्ष दुबे नाम का कोई भी मेरे अस्पताल में भर्ती ही नही था। किसी ने मेरे अस्पताल का सील साइन फर्जी तरीके से उपयोग किया है।इसकी शिकायत मैंने खुद पुलिस में की है। इसके अलावा डॉक्टर नरेश कृष्णानी ने भी इस मामले में अपनी किसी तरह कोई भागीदारी नही होने का एक लिखित आवेदन पुलिस को दिया है।

हॉस्पिटल का सस्पेंस.

आरोप है कि जिस स्काई हॉस्पिटल से फर्जी रिपोर्ट तैयार की गई उसका संचालन शहर की चर्चित कोई श्रीमती जायसवाल मैडम कर रही है वही हॉस्पिटल के मैनेमेंट की जिम्मेदारी उन्होंने अंकित दुबे को दे रखा है,इससे पीड़ित पक्ष अनुमान लगा रहा है कि मैनेजमेंट की आड़ में डॉक्टरों की फर्जी रिपोर्ट तैयार की गई होगी.

नही मिला पुलिस का पक्ष.

दुबे एंड टीम के साथ बेगुनाह युवक को जेल भेजने के मसले पर आरोपो से घिरी सिविल लाइन पुलिस या विभाग के किसी बड़े अधिकारी का इस मामले में पक्ष नही लिया जा सका है।

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