आखिर भद्रा काल में क्यों नही मनाया जाए राखी का त्यौहार, जानिए शुभ – अशुभ मुहूर्त का अर्थ प्रचलित कथा से.

पंडित अनिल कुमार पाण्डेय.

रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है! परन्तु शास्त्र कहता है :-

पूर्णिमायां भद्रारहितायां श्रिमुहूर्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराह्वे प्रदोषे वा कार्यम्.

(निर्णयशिन्धु)

अर्थात – जब पूर्णिमा तिथि हो और भद्रा ना हो तब अपराह्न काल में या प्रदोष काल में रक्षाबंधन का कर्म किया जाना चाहिए.

इस बार पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि दिनांक 30 अगस्त 2023 दिन बुधवार को प्रात: 10:58 बजे से प्रारंभ हो जायेगी, परन्तु ठीक उसी समय अर्थात 10:58 बजे से ही भद्रा भी प्रारंभ हो जायेगी, जो रात्रि 21:01 बजे समाप्त होगी। अत: भद्रा काल जो रक्षासुत्र बांधने के लिए निषिद्ध है उसमें रक्षा नही बांधना चाहिए वर्ना परिणाम बड़ा भयानक होता है। इस विषय में एक कथा भी प्रचलित है कि जब रावण ने अपने बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिह्वा की हत्या कर दी थी तो शूर्पणखा ने अपने पति की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए अपने भाई रावण के विनाश की प्रतिज्ञा की थी लेकिन रावण के शक्ति और सामर्थ्य के सामने वह कुछ भी कर पाने में समर्थ्य नही थी तो उसने नारद ऋषि की तपस्या कर उनसे अपने भाई के विनाश और अपने प्रतिशोध को पूर्ण करने के लिए उपाय पुछा। तब देवर्षि नारद ने उसने भद्राकाल में अपने महाबली भाई रावण के कलाई में रक्षासुत्र बांधने का उपाय बताया। तब सुपनखा ने भद्राकाल में अपने भाई रावण के कलाई में रक्षासुत्र बांध दिया। जिससे एक वर्ष के अन्दर ही रावण के द्वारा माता सीता का हरण किया गया और प्रभु श्रीराम ने लंका पर चढाई किए और रावण का अन्त कर दिया।

कब बांधे रक्षासुत्र.

दिनांक 30 अगस्त बुधवार को प्रात: काल 10:58 के बाद पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी उसी समय भद्रा प्रारंभ होने से रात्रि 9 बजकर 1 मिनिट तक रक्षासुत्र कदापि ना बांधे। रात्रि 9 बजकर 1 मिनिट के बाद रक्षासुत्र बांधा जा सकता है। चुँकि दिनांक 31 अगस्त 2023, गुरुवार को 2 घटी 37 पल तक अर्थात प्रात: 7:05 तक पूर्णिमा तिथि है! अत: दिनांक 31 अगस्त गुरुवार को प्रात: 7:05 तक भाईयों के कलाई में रक्षासुत्र बांध सकते है।

इस मंत्र का करे जप.

पंडित अनिल पाण्डेय का अनुरोध है कि सभी बहनें यदि वास्तव में अपने भाई के आयु और यश की रक्षा करना चाहती है तो शुभ मुहूर्त में आधुनिक रक्षासुत्र के साथ साथ पीले रंग के साफ कपड़े में एक चुटकी साबूत चावल, एक चुटकी पीली सरसो के दाने और कोई सुवर्ण की वस्तु रखकर पोटली बनाकर भाई के दाहिने कलाई में भगवान नृसिंह मंत्र “ॐ नृँ नृँ नृँ नृसिंहाय नम:!” का जाप करते हुए तथा भगवान नृसिंह का स्मरण करते हुए बांधे तथा भाई के माथे पर केसर, कुमकुम, दही का तिलक करके धन वृद्धि के लिये अक्षत अर्थात चावल माथे पर लगाकर मंगल कामना करें! यदि केसर ना हो तो हल्दी या रोली का प्रयोग कर सकती हैं।

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