23 अगस्त को जन्मदिन पर विशेष..

एक उसूल पंसद योद्धा..

‘राजकुमार सोनी’

मुझे उसूलों के साथ उसूलों के लिए लड़ने वाले लोग खूब पसन्द आते हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मैं एक उसूल पसन्द योद्धा के तौर पर ही देखता हूं. निजी तौर पर मेरा मानना है कि जो व्यक्ति भीतर से साहसी होता है वहीं उसूलों का पक्षधर भी होता है. वैसे साहस की कोई एक किस्म तो पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के भीतर भी विद्यमान थीं, लेकिन इस किस्म की दशा और दिशा विध्वंश को बढ़ावा देने वाली ज्यादा थीं. राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि अगर जोगी अपने ही लोगों के हौसले और घुटनों को तोड़ देने के खेल में माहिर नहीं रहते तो शायद प्रदेश में पंद्रह साल तक भाजपा के बजाय कांग्रेस की सरकार काबिज रहती. जोगी प्रखर राजनीतिज्ञ थे, लेकिन कई बार ( बल्कि अक्सर ) उनकी राजनीति का हिसाब-किताब अपने ही पैर में ही कुल्हाड़ी मारने वाले मुहावरे को चरितार्थ करने लगता था.

भूपेश बघेल के पास भी चमकदार और धारदार कुल्हाड़ी है…लेकिन उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी का इस्तेमाल कांग्रेस की डंगाल को काटने के लिए कभी नहीं किया. उनकी कुल्हाड़ी सांप्रदायिक ताकतों पर चोट करने का हुनर जानती है. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि कब… कहां और कैसे भाजपा को मात देना है.

झीरम के माओवादी हमले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नंद कुमार पटेल और अन्य दिग्गज नेताओं के शहीद हो जाने के बाद जब प्रदेश की बड़ी आबादी यह मानकर चल रही थीं कि रमन सरकार से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा तब भाजपा ने जीत का परचम फहराकर कांग्रेस को गहन चिकित्सा कक्ष में भेज दिया था. अब भी जब कभी राजनीति की समझ रखने वाले लोग चर्चा करते हैं तो यह सवाल जरूर करते हैं कि झीरम जैसी बड़ी घटना के बाद भी कांग्रेस क्यों हारी ? बघेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कुछ पहले सब कुछ बरबाद हो चुका था. बड़ी लीडरशिप खत्म हो गई थीं. खेमे में बंटे हुए नेता टूट चुके थे और संगठन लगभग बिखर गया था. बघेल ने राजधानी के वातानुकूलित कमरे में बैठकर राजनीति करने के बजाय गांव-गांव की खाक छानी. जमीन का रास्ता नापा और धुंआधार दौरों को अंजाम दिया. थोड़े ही दिनों में उनकी सांगठनिक क्षमता, कार्यकर्ताओं को साधकर चलने वाले दिमाग और आक्रामक तेवर से यह साफ हो गया कि चाहे जो हो कम से कम वे भाजपा के हाथों बिकने वाले नहीं है. बघेल के अध्यक्ष बनने के पहले कांग्रेस के एक नेता को भाजपा का 13-14 वां मंत्री कहा जाता था तो कुछ ऐसे थे जो रमन सरकार से छोटी-मोटी सुविधाएं हासिल करने के लिए जी-हजूरी करते नजर आते थे.

टीएस सिंहदेव के साथ उनकी जुगलबंदी यह भरोसा पैदा करने में कामयाब रही कि सबको साथ लेकर चलने से हारी हुई बाजी को पलटा जा सकता है. धनबल के आगे जनबल तभी टिकता है जब लक्ष्य को पाने का इरादा मजबूत होता है. अन्यथा जुलूस तो हर दूसरी सड़क पर निकलता है और अमूमन हर रोज निकलता है. यकीनन जुलूस में सबसे मजबूत इरादा होता है और कोई मजबूत इरादा ही जुलूस का नेतृत्व करता है.

एनसीपी नेता रामवतार जग्गी की हत्या और झीरम हमले के बाद भले ही अजीत जोगी अपनी साख को बचाने की जुगत में लगे हुए थे, लेकिन अंतागढ़ टेपकांड में उनकी और अमित जोगी की संलिप्तता सामने आने के बाद एक आम राय यह कायम हुई कि वे भाजपा के लिए कार्यरत थे. जब कांग्रेस के तमाम बड़े दिग्गज उन पर कार्रवाई करने से घबरा रहे थे तब बघेल आलाकमान को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि जोगी परिवार के बगैर भी कांग्रेस की नैय्या पार लग सकती है. पिता-पुत्र के पार्टी से बाहर होने के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान होगा, लेकिन इसके उलट बघेल यह साबित करने में कामयाब रहे कि जोगी बीता हुआ कल थे. अगर पार्टी में रहते तो कांग्रेस ज्यादा नुकसान में रहती.

अपने इरादों और कामकाज के तौर-तरीकों में मजबूती के चलते भूपेश बघेल ने देश के बड़े राजनीतिज्ञों के बीच अपना एक खास मुकाम बनाया है. देश के बहुत से लेखक मित्र जब कभी भी फोन करते हैं तो बगैर किसी लंबी-चौड़ी भूमिका के कहते हैं-यार आपके यहां के मुख्यमंत्री तो जबरदस्त काम कर रहे हैं. एक बार मिलकर इस बात के लिए बधाई देनी है कि उन्होंने आदिवासियों की जमीन लौटाकर अच्छा काम किया है. संस्कृतिकर्मी मानते हैं कि वे करीना कपूर के साथ सेल्फी लेकर छत्तीसगढ़ के स्थानीय कलाकारों को अपमानित करने वाले सीएम नहीं है. उनका ठेठ देसी अंदाज छत्तीसगढ़ की संस्कृति-परम्परा और यहां के तीज-त्योहार को मानने-जानने वाले लोगों को लुभाता है. ऐसे सैकड़ों काम है जिसका जिक्र यहां कर सकता हूं… लेकिन यह सूची थोड़ी लंबी हो जाएगी.

ऐसा भी नहीं है कि उनके आलोचक नहीं है. फिलहाल इस काम में वे ही लोग सक्रिय है जो पिछली सरकार में ठेकेदार-कांट्रेक्टर बनकर सरकारी खजाने को हड़पने के खेल में लगे थे. भाजपा से संबंद्ध बहुत से उद्योगपति, ठेकेदार और धंधेबाज अपनी पूरी ताकत के साथ इस प्रचार में जुटे हुए हैं कि भूपेश सरकार महज चंद दिनों की मेहमान है. टीएस बाबा के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ रही है. कोई ढ़ाई साल का फार्मूला है जो छत्तीसगढ़ में लागू हो जाएगा. आदि-आदि. दुष्प्रचार के इस उपक्रम में जनवाद का छेद वाला कंबल ओढ़कर जिंदाबाद-जिंदाबाद करने वाले लोग भी शामिल है. इसके अलावा कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोग, पूर्ववर्ती सरकार के प्रति वफादार रहने वाले अफसर और हर महीने वजीफा पाने वाले पत्रकारों की जमात भी इन दिनों सक्रिय है. ऐसे तमाम शेयर होल्डर जो सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में नकारात्मक माहौल बनाते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि अभी सांप्रदायिक ताकतों से बड़ी और असली लड़ाई होनी बाकी है.

इससे इतर गांव और परिवार के एक मुखिया जैसी उनकी छवि को पसन्द करने वालों का बड़ा वर्ग भी मौजूद है. किसी गांव वाले से पूछकर देखिएगा तो कहेगा- अब लाल भाजी खाने का मजा आ रहा है. कहना न होगा कि छत्तीसगढ़ बेहद खूबसूरत है. यह राज्य अपने खांटी देसी स्वाद की वजह से भी जाना जाता है. जब कभी आप बाहर जाएंगे तो लोग आपसे तीजन बाई के बारे में पूछेंगे. सुरूजबाई खांडे, हबीब तनवीर के बारे में पूछेंगे. यहां के धान और उगने वाली साग-सब्जियों की जानकारी पाकर भी लोग आश्चर्य से भर जाते हैं. दुर्भाग्य से पंद्रह साल तक छत्तीसगढ़ का देसी स्वाद गायब कर दिया गया था. यहां के छत्तीसगढ़ियों को ही नहीं लग रहा था कि कोई उनके अपने बीच का है. भूपेश बघेल ठेठ छत्तीसगढ़िया है तो उन्हें गांव में रहने वाली बड़ी आबादी का दिल जीतने में देरी नहीं लगी. जहां तक भाजपा और उनके नेताओं की बात है तो ज्यादातर अब भी छत्तीसगढ़ की बोली-बानी और यहां के रहन-सहन को हिकारत के भाव से देखते है. भाजपा का कोई भी नेता ( एक-दो को छोड़कर ) अगर छत्तीसगढ़ी में बोलता और बतियाता है तो उसका व्यापारिक और बनावटी अंदाज साफ नजर आता है.

मेरा किसी जाति विशेष से कोई विरोध नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि गत पंद्रह सालों से प्रदेश में ठकुराई हावी थीं. प्रदेश के ज्यादातर भाजपा नेताओं और अफसरों का तौर-तरीका सामंती हो गया था. दूर-दराज गांवों में बसने वाले लोगों को लगता था कि पता नहीं कब जमींदार कोड़े लेकर आ जाएंगे और खेत-खार से बेदखल कर देंगे. फूल जैसी बिटिया को उठाकर ले जाएंगे. होता भी यहीं था. बस्तर में पदस्थ रहा एक पुलिस अफसर पुरानी सरकार के इशारों पर कुछ इसी तरह के कृत्य में संलिप्त भी रहता था. आतंक का पर्याय बन चुके पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता पर कार्रवाई भी आसान नहीं थीं. सब जानते हैं कि पिछली सरकार में वे किस तरह के पॉवरफुल थे. जानकार कहते हैं कि पिछली सरकार में मंत्रिमंडल के प्रत्येक सदस्य की कुंडली उनके पास थी और इसी आधार पर वे समय-असमय सबको यह कहकर धौंस देते थे कि ज्यादा उलझोगे तो नाप दिए जाओगे. लेकिन बघेल ने हत्या, साजिश सहित कई तरह के गंभीर आरोपों से घिरे इस खतरनाक अफसर को भी इधर-उधर भागने और छिपकर जीने के लिए मजबूर कर दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह, उनके दामाद पुनीत गुप्ता तथा अन्य कई रसूखदार नेताओं पर उनकी कार्रवाई को भले ही विपक्ष बदलापुर की कार्रवाई मानता है, लेकिन निजी तौर पर मैं इसे साहस का काम मानता हूं. पंद्रह साल के खौफ को भूपेश बघेल अपने देशज अंदाज से धीरे-धीरे खत्म करने का काम किया है. इस खौफ को कम करने के लिए उन्हें न तो लाठी भांजने की जरूरत पड़ी है और न ही अजीत जोगी वाले हथकंड़े को अपनाने की.

अब कोई कह सकता है कि जब आदमी सत्ता में होता है तो साहसी बन ही जाता है, लेकिन शायद यह सही नहीं है. भूपेश बघेल जब विपक्ष का हिस्सा थे तब भी बगैर किसी भय और दबाव के अपनी बात दमदारी के साथ रखते थे. बहुत से लोग बस्तर के माओवाद को लेकर डराने-धमकाने का काम करते हैं. मुझे याद है एक रोज वे खुली जीप में सवार होकर माओवादियों के सैन्य इलाके जगरगुड़ा जा धमके थे. इस खौफनाक इलाके में पुरानी सरकार के किसी भी मंत्री और नेता ने कभी दस्तक नहीं दी थी. कभी-कभार कुछ अफसर हेलिकाफ्टर से वहां जाने की हिम्मत दिखाते थे तो नक्सली हेलिकाफ्टर पर फायरिंग कर देते थे. यह सब लिखते हुए एक और बात याद आ रही है जो उनके बचपन से जुड़ी हुई है. एक बार उनके पैतृक गांव के मित्रों के बीच इस बात की शर्त लगी कि कौन बिच्छू का डंक तोड़ सकता है. भूपेश बघेल ने गांव के बाहर और भीतर पत्थरों के नीचे और पोखर के आसपास छिपे हुए सैकड़ों बिच्छुओं के डंक तोड़कर अपनी जेब के हवाले कर दिया था.

बहरहाल छत्तीसगढ़ियों के भीतर साहस और सम्मान का भाव भरने वाले भूपेश बघेल नए ढंग से छत्तीसगढ़ को गढ़ने में लगे हुए हैं. प्रदेश की एक बड़ी आबादी उनके कामकाज और तौर-तरीकों पर भरोसा करती है. राजनीति के धुंरधर मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में उनकी पारी बेहद लंबी रहने वाली है. छत्तीसगढ़िया अपनी उम्मीद को बरकरार रखना चाहते हैं. उम्मीद है तो सब कुछ है. उम्मीद पर दुनिया टिकी है.

उन्हें जन्मदिन की खूब सारी बधाई.

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