लाल गलियारे से… विमोचन अवसर पर शामिल होंगे देश के कई दिग्गज..

रायपुर.वरिष्ट पत्रकार राजकुमार सोनी की नई किताब लाल गलियारे का विमोचन 15 मार्च को
सिविल लाइन के वृंदावन हाल में शाम पांच बजे होगा। इस मौके पर देश के कई दिग्गज साहित्यकार,पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी और प्रबुद्ध नागरिक शामिल होंगे।

विमोचन के अवसर पर देश के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता-गांधीवादी चिंतक हिमांशु कुमार, आलोचक प्रणय कृष्ण, बसंत त्रिपाठी, सत्यप्रकाश सिंह, पीयूसीएल के उपाध्यक्ष कमल शुक्ला प्रमुख वक्ता के तौर पर मौजूद रहेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता युवा आलोचक सियाराम शर्मा एवं कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर भुवाल ठाकुर करेंगे।

लाल गलियारे से..में मुख्य रुप से युद्धरत बस्तर और छत्तीसगढ़ की राजनीति-प्रशासन का अक्स देखने को मिलता है। सोनी ने बस्तर से लेकर नेपाल तक धुर माओवादी इलाकों की जमीनी रिपोर्टिंग की हैं। उन्होंने इस किताब का खाका तब खींचा था जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं। बस्तर और वहां के बेबस आदिवासियों की निर्मम हत्याओं के खिलाफ उनकी कई रपट तब चर्चा के केंद्र में रही. पिछली दो किताबों बदनाम गली, भेड़िए और जंगल बेटियां की तरह यह किताब भी गत वर्ष ही पाठकों तक पहुंच जानी थीं लेकिन भाजपा के आतंक से परेशान अधिकांश प्रकाशकों ने इसे छापने से ही इंकार कर दिया था। सोनी एक दैनिक के लिए कार्य कर रहे थे। इस बीच उनका तबादला कोयम्बटूर तमिलनाडु कर दिया और कुछ दिनों बाद उन्हें नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया। बहरहाल किताब में ऐसा बहुत कुछ हैं जिससे यह पता चलता है कि माओवाद के खात्मे के नाम भाजपा सरकार में कैसा कुछ भयावह घट रहा था?

किताब की भूमिका आलोचक प्रणय कृष्ण ने लिखी है। वे कहते हैं- बस्तर युद्ध से आक्रांत है। हम और आप ( यानी वे सब जो बस्तर कभी गए नहीं या ऐसी ही दूसरी समरभूमियों के साक्षी नहीं रहे ) आखिर सच को कहां से पाएं? सरकारी रिपोर्टों में? नेताओं के बयानों में? भूमिगत युद्धरत संगठनों के दस्तावेजों में? बिके हुए इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के गला फाड़, कानफोडू कौआ-रोर में? या वहां जहां परसेप्शन ही सब कुछ है, रियल्टी कुछ भी नहीं, वहां सच का संधान कैसे होगा? तथ्यों, आकंडों, भंगिमाओं और बयानों पर परजीवियों की तरह पलती पत्रकारिता से अलग क्या जनता को… समाज को.. सच जानने का हक नहीं है? राजकुमार सोनी की किताब ऐसे बहुत सारे सवालों का जवाब देती हैं। किताब का आवरण अशोक नगर गुना के चित्रकार पकंज दीक्षित ने बनाया है जबकि प्रकाशक है- शिक्षादूत।

राजकुमार सोनी की पिछली दो किताबों बदनाम गली, भेड़िए और जंगल की बेटियां के विमोचन अवसर पर प्रबुद्ध जनों की अच्छी- खासी मौजूदगी ने पुस्तक की बिक्री का एक रिकार्ड बनाया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार भी हिंदी पट्टी के इस लेखक को पाठकों का बेशुमार प्यार मिलेगा।

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