श्री बाबू की जयंती मनाने जुटी बिहार कांग्रेस लालू के सहारे से और बिखरी

शिवा कुमार

पटना.  बिहार केसरी श्रीकृष्ण बाबू की 130 वीं जयंती समारोह, प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए किया जा रहा शक्ति प्रदर्शन बनकर रह गया।

प्रदेश की राजधानी में श्रीबाबू के बहाने कई कार्यक्रम आयोजित हुए। विशेष रूप से इन दो कार्यक्रमों की चर्चा आम थी। अखिलेश सिंह द्वारा आयोजित व राजद द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि लालू यादव थे। वहीं एनडीए की तरफ से पूर्व मंत्री महाचंद्र सिंह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश की पूरी सरकार एकजुट दिखाई दी। पक्ष और विपक्ष में बंटे दोनों खेमों ने जमकर एक-दूसरे पर राजनीतिक प्रहार किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कौकब कादरी और उनके साथ 100-150 लोगों की जमात थी, जिसमें जिलाध्यक्ष बनने को आतुर नेताओं ने शिरकत की।

लालू के राजद कार्यकर्त्ताओं ने अखिलेश के व्यक्तिगत शक्ति प्रदर्शन में हिस्सा लिया। राज्य में महागठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस में मची खलबली के बीच पार्टी कई खेमों में बिखरी नजर आई. जिसने कौकब की भावी राजनीति के समीकरणों को गड़बड़ा दिया है।
प्रातःकाल प्रदेश कांग्रेस के कार्यालय में कांग्रेस के लगभग सभी दिग्गज ने एक सादे समारोह में बाबू श्रीकृष्ण सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। लगा कि पूरी बिहार कांग्रेस के दिग्गज अपने मतभेदों को भुलाकर एकजुट हो गए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कौकब का रूख भी बदला-बदला सा नजर आया। पिछली मीटिंग में अशोक चौधरी के साथ हुए दुर्व्यवहार से वे भी दुखी थे। मगर मध्यान्ह आते-आते मौसम के साथ-साथ राजनीतिक तापमान भी बदलने लगा.

बढ़ती भाजपा से लालू चिंतित

भाजपा के बढ़ते जनाधार और भूमिहारों की कांग्रेस छोड़ भाजपा में बढ़ती सक्रियता से चिंतित लालू यादव की प्रेरणा से अखिलेश सिंह ने 2000 में श्रीबाबू जयंती की शुरूआत की थी। या यूं कहें कि राजद की अपने प्रति भूमिह एक सकारात्मक पहल थी। बता दें कि राजद सुप्रीमो के कहने पर अखिलेश बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस में बाहरी का ठप्पा लगाए और अपनी कमजोर पड़ती दावेदारी को देखते हुए लालू के कंधे पर बैठकर बिहार की ताजपोशी चाहते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वे पुनः राजद में अपनी पारी तेजस्वी-तेजप्रताप के साथ शुरू करने की तैयारी में हैं जिसकी बुनियाद श्रीबाबू के जयंती के बहाने अखिलेश रखने में कामयाब रहे। पहले अखिलेश तेजस्वी को इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाना चाहते थे, मगर लालू खुद मोर्चा संभालते हुए मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में सामने आए। रोज सीबीआई और ईडी के बुलावे से झल्लाए लालू को एक ऐसे ही मंच की तलाश थी जिससे जनता के बीच अपनी बात को मजबूती से रख सके। अखिलेश ने भी इस लालू की दबी नस को छू लिया और राजद में यूटर्न करने का अपना रास्ता भी तैयार कर लिया।

महात्मा गांधी के पटना प्रवास का साक्षी रहे डीएम आवास के नजदीक ये घर अब गांधी संग्रहालय के नाम से पहचाना जाता है, जहां कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसी प्रांगण में कार्यक्रम से प्रभारी महासचिव सीपी जोशी ने पल्ला झाड़ लिया और 24 अक्तूबर को होने वाली वर्किंग कमिटी का हवाला देते हुए आने से इंकार कर दिया। आपको बता दें कि इस कार्यक्रम को लेकर हुए विवाद को देखते हुए सीपी जोशी की अच्छी-खासी क्लास दिल्ली में लग चुकी है। सूत्रों की माने तो राहुल के कार्यालय ने भी कांग्रेस से इतर व्यक्तिगत विशेष के कार्यक्रम को लेकर सवाल उठाए। दिल्ली की लताड़ के बाद कांग्रेस के वयोवृद्ध और वर्किंग कमिटी के पूर्व सदस्य ललितेश्वर शाही जो श्रीबाबू के मंत्रीमंडल के सदस्य भी थे, उनके साथ केके तिवारी को ऐन वक्त पर प्रोग्राम में बुलाया गया। पूर्व लोकसभा अध्यक्षा मीरा कुमार और केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य रहे अशोक राम, जिन्हें पोस्टर में नीचे जगह दी गई थी, उनको बड़ी मुश्किल से मनाया गया।

वहीं पटना में ही महाचंद्र सिंह के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अखिलेश पर सीधा निशाना साध दिया। सुशील मोदी ने अखिलेश द्वारा आयोजित जयंती कार्यक्रम पर चुटकी लेते हुए कहा कि श्रीकृष्ण सिंह का सपना उन्हीं की पार्टी के लोग तोड़ रहे हैं। उनका इशारा राजद सुप्रीमो के कार्यकाल की ओर था जिसमें श्रीबाबू द्वारा शुरू की गयी योजनाओं एक-एक कर बंद कर दिया गया था। मोदी ने लालू और अखिलेश को निशाने पर लेते हुए कि जिन लोगों ने श्रीबाबू को भुलाया, उनके विचारों का गला घोंटा वहीं लोग उनकी जयंती मना रहे हैं। अखिलेश सिंह पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोग कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए श्रीबाबू की जयंती माना रहे हैं और उसमें ऐसे व्यक्तिविशेष को मुख्य अतिथि बनाया जिन्होंने श्रीबाबू को अपमानित किया. जदयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि 90 के दशक में लालू यादव ने भूरा बाल साफ करो का नारा दिया था और बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे। कांग्रेस उपाध्यक्ष जो अब अध्यक्ष की भूमिका में नजर आने वाले हैं, ने लालू के पारिवारिक भ्रष्टाचार को लेकर राजद सुप्रीमो से एक नियत दूरी रखी है। वे शुरू से कांग्रेस को एकला चलो तर्ज पर लाना चाहते हैं और यही सलाह उनको कांग्रेस के दिग्गजों से भी मिल रही है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी राहुल को यह मंत्र दिया था कि देश में कांग्रेस की मजबूत स्थिति के लिए अकेले पार्टी को चुनाव में उतरना चाहिए। आज कांग्रेस उपाध्यक्ष की मेहनत का नतीजा है कि देश का संपूर्ण विपक्ष उनको नेता मान रहा है। महागठबंधन के दौर में राहुल ने भी लालू से अधिक नीतीश को तरजीह दी थी। इसके पीछे नीतीश की साफ छवि का होना था।
कौकब ने अपने राजनीतिक उस्ताद का बचाव करते हुए कहा कि लालू प्रसाद यादव के साथ स्वाभाविक गठबंधन है, वह धर्मनिरपेक्ष ताकतों के बड़े नेता हैं। राहुल के करीबी सूत्र बताते हैं कि उनके अध्यक्ष बनते ही बिहार के प्रभारी का पद सीपी से छीना जा सकता है और बिहार में कांग्रेस की हो रही फजीहत से महासचिव पद से भी मुक्त किए जा सकते हैं।

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