लगता नही है कि ‘हल और हाथी’ का जादू चल पाएगा..

‘विक्रम वरदराजन’

रायपुर.अजीत जोगी की नई नवेली पार्टी जनता कांग्रेस और मायावती की बसपा के बीच छत्तीसगढ़ में मिलकर चुनाव लड़ने के लिए समझौता हो जाने के बाद सोशल मीडिया में राजनीतिक धुंरधर सक्रिय हो गए हैं। धुंरधरों का कहना है कि दोनों के गठबंधन से भाजपा को फायदा मिलेगा और भाजपा जीत जाएगी। ऐसा कैसे होगा और क्यों होगा? यह सवाल पूछते ही धुंरधर जवाब देते हैं- दलित वोट एकजुट होंगे और इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।

धुंरधर मानकर चल रहे हैं कि जोगी की पार्टी इस चुनाव में ठीक वहीं कमाल दिखाने वाली है जो वर्ष 2003 के चुनाव में राकांपा ने दिखाया था। हालांकि अभी तक जोगी की पार्टी का खाता नहीं खुला है। याद रखना होगा कि 2003 में वीसी शुक्ल की राकांपा ने सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे और इस बार जोगी की पार्टी अर्थाभाव के चलते महज 55 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। ठीक चुनाव से पहले जोगी ने 35 सीटों पर कांग्रेस के लिए चुनौती खत्म कर दी है। जोगी ने जिन 35 सीटों पर कांग्रेस के लिए चुनौती खत्म की है उन 35 सीटों पर अब बसपा ताकत दिखाएगी। आपको आश्चर्य होगा कि पिछली बार बसपा ने 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और लगभग साढ़े पांच लाख वोट हासिल किए थे। क्या यह मान लेना चाहिए कि इस बार बसपा 35 सीटों पर चुनाव लड़कर साढ़े पांच लाख वोट हासिल कर लेगी?

जोगी ने जब पार्टी बनाई थीं तब साफ तौर पर कहा था कि उनकी पार्टी अकेले के दम पर विधानसभा की 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन चुनाव से ठीक दो महीने पहले उनकी पार्टी पस्त हो गई और वे बसपा से गठजोड़ को मजबूर हो गए है।

प्रदेश में बसपा की हैसियत का जो आकंलन किया जा रहा है वैसा है नहीं। इस पार्टी के एक- दो विधायक ही चुनाव जीतते रहे हैं। तीन बार के विधानसभा चुनाव में वर्ष 2003 में दो वर्ष 2008 में दो और 2013 में एक विधायक ही इस पार्टी से चुनकर विधानसभा पहुंचा था। राजनीति के खिलाड़ी तर्क दे रहे हैं कि अगर कांग्रेस बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ती तो कम से कम तखतपुर, चंद्रपुर, पामगढ, बिलाईगढ, कसडोल, बेहतरा, सांरगढ, सक्ति, मुंगेली और बैकुंठपुर में दोनों दल में किसी एक दल की जीत तय थी। कांग्रेस और बसपा मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में आ सकते थे। कहा जा रहा है कि दोनों दलों के न मिलने से भाजपा इन सीटों पर फायदे में रहेगी। एक सवाल यह भी है कि क्या उक्त सीटों पर जरा भी सत्ता विरोधी लहर का असर नहीं होगा? क्या भाजपा पूरी तरह से फायदे में रहने वाली है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने राकांपा से दो- तीन सीटों पर समझौता था जिसका कोई फायदा नहीं मिला था। बसपा- राकांपा-गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सहित अन्य कई दलों के चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस भाजपा से महज 70-80 हजार वोट पीछे थी।

इधर बसपा के साथ समझौते के बाद से अजीत जोगी एक बार फिर निशाने पर आ गए है। उन पर जाति आधारित और सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से राजनीति करने का आरोप लगता रहा है। अपने इसी दाग को साफ करने के लिए वे अपने भाषणों में सभी वर्गों विशेषकर स्वर्ण और व्यापारी समुदाय को साथ लेकर चलने की बात करते रहे हैं, लेकिन एक बार फिर उन्होंने खुद को कटघरे में खड़ा कर लिया है। उत्तर प्रदेश में अवश्य ही मायावती की इमेज अच्छी होगी लेकिन छत्तीसगढ़ में उनकी इमेज उतनी शानदार नहीं है। जनता कांग्रेस और बसपा कांग्रेस के इस गठबंधन को भाजपा के खेल के तौर पर देखा जा रहा है। इस गठबंधन के साथ ही सोशल मीडिया में एक कार्टून भी खूब शेयर हो रहा है। इधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है कि कांग्रेस एक डूबता जहाज है जिस पर कोई भी सवारी नहीं करना चाहता है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि सत्ता को हाथ से फिसलते देख भाजपा कई तरह के हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है। भाजपा ने पहले जोगी की पार्टी को खड़ा किया। जब भाजपा को यह लगा कि जोगी तुरुप का पत्ता साबित नहीं हो पा रहे हैं तो फिर जो कुछ किया वह सामने आ ही गया, लेकिन इससे कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भाजपा की हालत दिन-प्रतिदिन पतली होती जा रही है।

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