मोदी सरकार का ऐसे डुबो रहे मंत्री और बेलगाम नौकरशाह

  • शिवा कुमार

दिल्ली.प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी की घोषणाओं और योजनाओं को उनके कैबिनेट मंत्री और अफसरशाह ही पलिता लगा रहे हैं। स्कूलों को एक-एक करोड़ देने की योजना पर तीन साल में चवन्नी भी खर्च नहीं की जा सकी.

शिक्षा और रोजगार और युवाओं के लिए ‘मेक इन इंडिया‘ और ‘स्किल इंडिया‘ जैसी परियोजना मोदी की प्राथमिकता सूची में सर्वोपरि है। मगर पीएम की इन्हीं ड्रीम प्रोजेक्ट्स को ही पलीता लगाया जा रहा है। कौशल विकास मंत्रालय में अपना कौशल न दिखा पाने की वजह से राजीव प्रताप रूड़ी को मंत्रालय से चलता किया गया। उनका परफार्मेंस पीएम की अपेक्षा से काफी नीचे स्तर का रहा था। शिक्षा के क्षेत्र में चलाई जाने वाली एक ऐसी योजना मानव संसाधन मंत्रालय में दम तोड़ रही है। यूं कहें कि काबीना मंत्री प्रकाश जावडेकर के फाइलों में धूल फांकती नजर आ रही है जिससे प्रत्यक्ष तौर पर 30000 लोगों को सीधा रोजगार मिलने की उम्मीद है। जबकि इस योजना के लिए लगभग 1000 करोड़ रूपए का प्रावधान भी है।

हालाकि इस योजना की नींव यूपीए के शासनकाल में रखी गई थी, तब भी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। मगर मोदी ने सत्ता संभालते ही न केवल इस योजना की सारी बाधाओं को दूर किया बल्कि सिंगर विंडो क्लीयरेंस से बिना किसी हस्तक्षेप से त्वरित कार्ययोजना की शुरूआत की थी। मगर मानव संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों की होशियारी से से मंत्री तो छोड़िए प्रधानमंत्री तक गच्चा खा गए और पीएमओ को इसी भनक तक नहीं। रोजगार और शिक्षा से जुड़ी ग्रामीण क्षेत्र की इस परियोजना पर पिछले तीन सालों से अभी तक काम शुरू नहीं हो सका है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में उपसचिव जेपी महापात्रा द्वारा 3 जनवरी 2017 को जारी किए गए पत्र जिसका पत्रांक 35043/6/2015(एस) है, से मंत्री और मंत्रालय की उदासीनता और अधिकारियों की मोदी सरकार की कार्ययोजना को फेल करने व उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के खेल का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इसे मोदी विरोधी खेमे के मंत्रियों की कारगुजारियों की बानगी भर कहना ज्यादा उचित होगा। 2016-17 में इस योजना को मंत्रालय के वित्त विभाग द्वारा चयनित देश भर के 1000 स्कूलों की सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी थी। वित्त विभाग द्वारा केवल योजना की खर्च राशि स्कूलों को सीधे भेजनी थी, मगर यूपी के विधानसभा चुनाव के बहाने और चुनाव आयोग का भय दिखाकर देश भर की उन सभी 1000 स्कूलों की सहायता राशि को रोक दिया गया. चुनाव के छह माह बाद भी 2016-17 का पैसा बंटा नहीं, मगर योजना 2017-18 की हो गई। अब 2017-18 के तीसरी तिमाही भी शुरूआत हो चुकी है, अब फिर से मंत्रालय गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव का बहाना बनाकर योजना के लिए आवंटित राशि को जारी करने में हिचक रहा है। इससे इस वित्तीय वर्ष में भी राशि स्कूलों तक पहुंचने के आसार अभी तक तो नहीं दिख रहे, मगर मंत्री जी खामोश हैं।

मंत्रालय के सूत्रों की माने तो इस प्रकार की योजना का प्रदेशों में होने वाले चुनावों से कोई मतलब नहीं होता न ही इससे आचार-संहिता का उल्लंघन होता है,  फिर भी निर्वाचन आयोग का भय दिखाकर योजना को अभी तक शुरू तक नहीं किया गया। मोदी सरकार की युवाओं और रोजगार की नीतियों की अफसलता को चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस लगातार भाजपा को घेर रही है। वर्ष 2015 से ये योजना मंत्रालय में झूल रही है। पहले यही पैसा केंद्र द्वारा प्रदेशों को सीधे दिए जाता था और प्रदेश की सरकारें स्कूलों को अपनी मनमर्जी से फंड देती थी। मगर मोदी ने आते ही इसकी गुणवत्ता सुधारते हुए और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को बेहतर बनाने की दृष्टि से ‘‘राष्ट्रीय आदर्श विद्यालय पीपीपी माडल योजना‘‘ के तहत चरित्र निर्माण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ इन सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने का भरसक प्रयास किया। इसका मुख्य उद्देश्य गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है। मगर जरा मंत्रालय का हाल तो देखिए कि वह मोदी द्वारा जनता से किए गए वायदों को जुमले में तब्दील कर रहे हैं.

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