माओवादी मानवाधिकार के सब से बड़े दुश्मन-डीआईजी डांगी

जगदलपुर.माओवादी मानवाधिकारों के सबसे बड़े दुश्मन है।जब माओवादी स्कूलों को तोड़कर बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करते हैं ,जो कोई कैसे भी बाहरजाकर शिक्षा प्राप्त करके अपने घर जाता हैं तो माओवादी उससे सवाल करते हैं कि बिना अनुमति शिक्षा कैसे प्राप्त कर ली और उसकी हत्या करके अन्य बच्चों को दहशत मे डालते हैं ।

सरकारी राशन ,दवाएं स्वाथ्य सुविधा को आम लोगों तक नहीं पहुँचने दे रहे हैं।आंगनबाड़ी भवन नहीं बनने दे रहे। लोग दुनिया से सम्पर्क नहीं कर पाएं इसलिए मोबाइल टावर को ब्लास्ट कर देतें हैं ।
यात्री बसों टेक्सियों मे यात्रा करने से आग लगाकर जिन्दा भी जला देते हैं।मिडिया की आवाज दबाने पत्रकारों की हत्याएं भी कर रहे हैं।
जंगलों मे पंगडंडी पर बम लगा देने से एक दर्जन से अधिक महिला बच्चों को जान खोनी पड़ी हैं ।
सुरक्षा बलों की मुखबिरी के लिए बच्चों को सूचना कर्ता के रूप मे तथा हथियार देकर बचपन छिनने का कृत्य करते है।
जन अदालत लगाकर बिना कोई प्राकृत न्याय का पालन किए मध्यकालीन युग की तरह लोगों की जान लेने मे गर्व महसूस करते हैं।
नक्सली कैडर के महिला पुरुषों पर बच्चे पैदा न करने का फरमान होता है ।व्यक्ति के एक मूलभूत अधिकार से वंचित कर देते हैं।
लोगों की मेहनत से कमाई को छीन लेते हैं।
सुरक्षा बलों पर हमले के बाद शवों के साथ अति घृणित कृत्य करते हैं।
यदि कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हिस्सा लेता हैं तो उसे मौत के घाट उतार देते हैं।राजनीतिक अधिकारों पर हमला करते हैं।
ग्रामीण संस्कृति के चिन्हो को नष्ट कर देते हैं।देव गुड़ी(पूजा स्थल) को नष्ट कर दिया है।पटेल ग्राम मुखिया को मार देते हैं। हाट बाजार मुर्गा बाजारों पर हमले करके कई ग्रामीणों की हत्याएँ कर चूके हैं।एक वर्ष की बच्ची से लेकर साठ साल बुजुर्गों तक की हत्याएँ कर देते है।
यात्री बसों टेक्सियों मे यात्रा करने से आग लगाकर जिन्दा भी जला देते हैं।मिडिया की आवाज दबाने पत्रकारों की हत्याएं भी कर रहे हैं।स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं पहुंचने दे रहे हैं।
जंगलों मे पंगडंडी पर बम लगा देने से एक दर्जन से अधिक महिला बच्चों को जान खोनी पड़ी हैं ।
सुरक्षा बलों की मुखबिरी के लिए बच्चों को सूचना कर्ता के रूप मे तथा हथियार देकर बचपन छीनने का कृत्य करते है।
जन अदालत लगाकर बिना कोई प्राकृत न्याय का पालन किए मध्यकालीन युग की तरह लोगों की जान लेने मे गर्व महसूस करते हैं।
नक्सली कैडर के महिला पुरुषों पर बच्चे पैदा न करने का फरमान होता है ।व्यक्ति के एक मूलभूत अधिकार से वंचित कर देते हैं।
लोगों की मेहनत से कमाई को छीन लेते हैं।
सुरक्षा बलों पर हमले के बाद शवों के साथ अति घृणित कृत्य करते हैं।
यदि कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हिस्सा लेता हैं तो उसे मौत के घाट उतार देते हैं।राजनीतिक अधिकारों पर हमला करते हैं।
ग्रामीण संस्कृति के चिन्हो को नष्ट कर देते हैं।देव गुड़ी(पूजा स्थल) को नष्ट कर दिया है।पटेल ग्राम मुखिया को मार देते हैं। हाट बाजार मुर्गा बाजारों पर हमले करके कई ग्रामीणों की हत्याएँ कर चूके हैं।एक वर्ष की बच्ची से लेकर साठ साल बुजुर्गों तक की हत्याएँ कर देते है।
फिर भी कोई संगठन ऐसे घृणित कृत्यों पर एक शब्द नहीं बोलते है ।
शायद इसलिए की ऐसे दुष्कृत्य माओवादी अधिकतर आदिवासियों के खिलाफ करते है ।क्योंकि इन संगठनों के शीर्ष नेतृत्व मे इनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
साथ ही मानवाधिकार के नाम से केवल सरकारी एजेंसियों को कठघरे मे खड़े करने वाले संगठनों को भी मानव मानव मे भेद करने की मानसिकता से बाहर आना होगा।तथा इन माओवादियों के द्वारा किए जा मानवाधिकार उल्लंघन के इन गंभीर मामलों पर अपना मौन तोड़ना चाहिए।

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