जब सारकेगुड़ा में मारे जा रहे थे बेकसूर आदिवासी तब क्या कर रहे थे खुफिया चीफ मुकेश गुप्ता, आईजी लांगकुमेर और एसपी प्रशांत अग्रवाल ?

साभार-अपना मोर्चा डॉट कॉम..

रायपुर. सारकेगुड़ा न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट के सामने आने के साथ ही यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि 28-29 जून 2012 की दरम्यानी रात जब सीआपीएफ और सुरक्षाबलों की टीम बेकसूर आदिवासियों को मौत के घाट उतार रही थीं तब खुफिया महकमे के प्रमुख मुकेश गुप्ता, बस्तर आईजी की कमान टीजे लांग कुमेर और पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल क्या कर रहे थे ?

पूरे देश में हलचल मचा देने वाली यह घटना तब हुई थीं तब सत्ता में डाक्टर रमन सिंह की सरकार काबिज थीं, लेकिन तब नक्सल मामलों की पूरी कमान स्पेशल इंटेलिजेंस ब्यूरो मुकेश गुप्ता के हाथ में थीं. इसके अलावा बस्तर आईजी टीजे लांग कुमेर और बीजापुर एसपी प्रशांत अग्रवाल को भी नक्सल मामलों को एक्सपर्ट माना जाता था. इधर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट के आने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता, आईजी टीजे लांग कुमेर, प्रशांत अग्रवाल और घटना के दिन सुरक्षाबलों का नेतृत्व कर रहे डीआईजी एस इंलगो, डिप्टी कमांडर मनीष बरमोला निर्दोष आदिवासियों की मौत के लिए जिम्मेदार नहीं है ? अगर है तो… क्या इन अफसरों पर कोई कार्रवाई सुनिश्चित हो पाएगी ?

पहले ही साफ हो गया था मुठभेड़ फर्जी है..

देश को दहला देने वाली घटना के बाद जब राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ फैक्ट फाइडिंग टीम के सदस्यों ने सारकेगुड़ा का दौरा करना चाहा तब काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को माओवादी ठहराकर गोलियों से भून देने की धमकी-चमकी दी गई थी. देश के कई बड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता आंध्र प्रदेश के रास्ते भोपालपट्टनम होकर गांव में दस्तक दे पाए थे. छत्तीसगढ़ के कुछ चुनिंदा अखबार और चैनल के संवाददाताओं ने गांव जाकर हकीकत जानने की कोशिश तो की थी, लेकिन स्थानीय मीडिया के लोग पूरी तरह से दहशत में थे न जाने कब उन्हें भी माओवादी ठहराकर मौत के घाट उतार दिया जाएगा. जैसे-तैसे देश के कुछ चैनल और मैग्जीन के संवाददाता अपनी जान हथेली पर लेकर वहां पहुंच सकें थे. प्रशासन का पूरा अमला उनकी भी बोलती बंद कर देने के फिराक में जुटा हुआ था. एक पाक्षिक मैग्जीन के संवाददाता को अज्ञात फोन के जरिए धमकी दी गई थी कि अगर माओवादी बनकर मरना नहीं चाहते हो वापस लौट जाओ. पत्रकारों का दल घटना स्थल पर न पहुंच पाए इसके लिए हर नाके पर पुलिस कम गुंडों की फौज तैनात की गई थीं. कुछ पत्रकार ग्रामीणों की वेशभूषा पहनकर गांव तक पहुंचने में कामयाब तो हुए लेकिन उन्हें भी जान बचाने के लिए आंध्र के रास्ते से भागना पड़ा था.

चलती रही लीपा-पोती..

जो सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार इस घटना को कवरेज करने गए थे वे प्रथम दृष्टया ही यह जान गए थे कि सुरक्षा बल ने बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतार दिया है और सरकार मामले की लीपा-पोती में लग गई है. हकीकत यह थी कि सारकेगुड़ा के दो टोलों राजपेटा और कोत्तागुड़ा के ग्रामीण बीज-पंडूम का त्योहार कैसे मनाया जाय… इसके लिए बैठक कर रहे थे. घटना के दिन रात दस बजे तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन जब ग्रामीणों ने संगीत में रुचि रखने वाले एक युवक नागेश से मांदर बजाने का आग्रह किया तभी सूखे पत्तों पर लय-ताल के साथ बूटों की आवाज सुनाई दी. इससे पहले गांववाले कुछ भांप पाते… फायरिंग शुरू हो गई थीं. घटना में कुल 17 लोग मारे गए थे जिसमें मड़काम दिलीप, मड़काम रामविलास, अपका मिठू, काका सरस्वती, कुंजाम मल्ला, कोरसा बिचम, इरपा सुरेश और काका राहुल सहित कुल नौ नाबालिग थे. घटना के दौरान केंद्र में केंद्रीय गृहमंत्री पी चिंदम्बरम थे. पहले तो उन्होंने इसे एक बड़ी कामयाबी निरूपित किया, मगर जब उन्हें पता चला कि पूरा मामला फर्जी है तो उन्होंने माफी मांग ली थी. चिदम्बरम की माफी के बाद भी प्रदेश की पुलिस लीपा-पोती के खेल में जुटी रही. पुलिस की ओर से यह प्रचारित किया जाता रहा कि जो मारे गए थे वे पूरी तरह से नक्सली थे. ग्रामीणों को नक्सली बताकर क्लीन चिट लेने की यह कवायद ज्यादा दिन नहीं चल पाई. थोड़े ही दिनों बाद प्रशासन के लोग साड़ी, कपड़ा, गहना, कंबल, अनाज और नोटों से भरा बोरा लेकर गांव पहुंच गए. गांव में मौजूद कमला काका नाम की एक युवती ने तब सवाल उठाया कि अगर गांव के लोग और उनके परिजन नक्सली है तो फिर सरकार उनको अनाज, कपड़ा और मुआवजा क्यों दे रही है ? क्या सरकार नक्सलियों को भी पैसा बांटती है ? इधर आयोग की रिपोर्ट सामने आने के बाद अब सबकी निगाहें इस बात को लेकर टिक गई है कि पूरे मामले में जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अफसरों के खिलाफ क्या कोई एफआईआर दर्ज हो पाएगी ? क्या बेकसूर आदिवासियों के हत्यारे जेल के शिंकजों के पीछे पहुंच पाएंगे ? भूपेश सरकार को यह तो पता लगाना ही चाहिए कि आखिर किसके इम्पुट और निर्देश के बाद सुरक्षा बलों ने बेगुनाह आदिवासियों को मौत के घाट.उतार दिया था.

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