जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने अपनों को बांटी करोडों की रेवड़ी..

‘विजया पाठक’

पीसी शर्मा से कमलनाथ को रहना होगा सावधान..

पिछले महिनों में जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा के कहने पर जनसंपर्क विभाग के माध्यम से नये बने एनजीओ और छोटे-मोटे पत्र-पत्रिकाओं में सरकार की उपलब्धियों को लेकर फीचर्स का प्रकाशन किया गया। इन प्रकाशनों में करोड़ों रूपये का फजीवाड़ा किया गया। प्रकाशन एजेंसियों को लाखों रूपये का भुगतान जनसंपर्क विभाग से हुआ।

इस खेल में सबसे दिलचस्प बात रही कि प्रकाशनकर्ताओं में लगभग 90 प्रतिशत लोग जनसंपर्क मंत्री के क्षेत्र के लोग थे। जबकि 25-30 बरसो से संचालित समाचार पत्र पत्रिकाओं को ना तो पिछला भुगतान हुआ और ना ही कोई बिज्ञापन जारी हो रहे सारा बजट कमीशन खोरी की भेट चढ़ पी. सी शर्मा और उनके गुर्गो की जेबे गर्म कर रही और एक बड़ा पत्रकार समुदाय पैसे पैसे को मोहताज हो गए मतलब साफ है कि पीसी शर्मा ने अपने क्षेत्र को लोगों को, कार्यकर्ताओं को ओवलाईज करने के लिए सरकार का करोड़ों रूपया बांटा। प्रकाशन करने वाले ये लोग न तो पत्रकार थे और न ही इनके एनजीओ थे। पूरा का पूरा फर्जीवाड़ा कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए था। यह पूरा षड़यंत्र पीसी शर्मा ने कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए रचा। जबकि बड़े पत्र-पत्रिकाओं को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। ये सब इसलिए और संभव हो सका क्योंकि जनसंपर्क मंत्री होने के नाते पीसी शर्मा ने अपने पावर का इस्तेमाल किया।

यहां तक कि जनसंपर्क के आयुक्त पी. नरहरि को भी नजरअंदाज किया गया। वैसे पी नरहरि की छबि साफ और स्वच्छ है लेकिन इस तरह के कारनामों से नरहरि की छबि भी खराब हो रही है, क्योंकि जनसंपर्क के मुखिया होने के नाते कहीं न कहीं उनकी भी जबावदारी बनती है कि वह इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने का प्रयास करें। पीसी शर्मा ने इस करतूत से सीएम कमलनाथ को भी अंधेरे में रखा। यह पूरा खेल गुपचुप तरीके से हुआ कि किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी। यदि सरकार इस पूरे फर्जीवाडा के सच्चाई की जांच करें तो पीसी शर्मा का असली चेहरा जनता और सरकार के सामने आएगा। मीडिया जगत में भी पीसी शर्मा के इस कारनामों की निंदा हो रही है।

एक तरफ तो कमलनाथ सरकार बजट का रोना रोकर विज्ञापनों पर कैंची चला रही है वहीं दूसरी तरफ विभाग के मंत्री करोड़ों रूपयों की रेवड़ी बांटकर कार्यकर्ताओं को खुश कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि क्या मंत्री के कामों के लिए बजट है। बाकी जो दशकों से इस पेशे में लगे हैं उनको विज्ञापन देने के लिए बजट नहीं है। इस भेदभाव पूर्ण रवैये से प्रदेश के मुखिया कब तक अनभिज्ञ रहेंगे या जानबूझकर सीएम भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं। कमलनाथ सरकार में जनसंपर्क विभाग के ओहदे पर बैठे पीसी शर्मा ने अपना असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है। ये चेहरा दिखता कुछ है और दिखाता कुछ है।
एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यदि आप मेरे निवास पर बाईट लेने के लिए नहीं आए तो आपकी संस्था के विज्ञापन बंद कर दिए जाएंगे। इस तरह से पीसी शर्मा अपने आप को महिमा मंडित कर रहे हैं। पीसी शर्मा वैसे भी उन नेताओं में शुमार में जिन्हें आस्तीन का सांप कहा जाए तो अतिश्योक्ति नही होगी। जिस थाली में खाते हैं उसी में छेंद करना इन्हें खूब आता है। लोगों ने इस नेता को राजनीति करते वर्षों से देखा है। ये कभी भी किसी एक नेता के वफादार नही हुए हैं। पीठ में छुरी घोंपना इन्हें बखूबी आता है। शर्मा महत्वपूर्ण विभाग के मुखिया के पद पर बैठकर प्रदेश के मुखिया की छबि धूमिल कर दी। जिसकी बानगी भर हम सीएम कमलनाथ के जन्मदिन के अवसर पर विभिन्न अखबारों में छपे विज्ञापन के रूप में देख सकते हैं।

इस विज्ञापन में कमलनाथ और प्रदेश के अन्य वरिष्ठ नेताओं के विषय में ऐसी-ऐसी बातों का जिक्र है वह शायद बहुत से लोगों को पता भी नही होंगी। यह जनसंपर्क के मुखिया के होने के नाते पीसी शर्मा की ही करतूत थी, जिसमें उन्होंने सीधे-सीधे कमलनाथ के साथ-साथ अन्य नेताओं की भी छबि खराब करने की साजिश की। इस साजिश का भंडाफोड़ हुआ तो दूसरे दिन इसके बदले दूसरा विज्ञापन भी प्रकाशित हुआ और इस सारी गलती का ढीकरा विज्ञापन एजेंसी पर फोड़ दिया। आश्चर्यजनिक है कि कैसे इतना खास विज्ञापन बिना जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा की इजाजत के प्रकाशित हो सकता है। यह पूरी की पूरी साजिश पीसी शर्मा की ही थी। पीसी शर्मा ने जानबूझकर कमलनाथ की छबि को दूषित करने का दुस्साहस किया था।

कमलनाथ सरकार में जनसंपर्क विभाग के ओहदे पर बैठे पीसी शर्मा ने धीरे-धीरे अपना असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है। ये चेहरा दिखता कुछ है और दिखाता कुछ है। पीसी शर्मा ने अवैध उत्खनन को भी खूब बढ़ावा दिया है। जिसकी पिछले दिनों काफी चर्चा रही। समय रहते सीएम कमलनाथ को पीसी शर्मा से सावधान रहना होगा। अपनी दबी चाल से कब किसे पार लगा दें पता भी नहीं चलेगा। सरकार को भी इनकी खुरापाती चालों से सतर्क रहने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री की भी ये जवाबदारी बनती है कि वह जनसंपर्क जैसे महत्वपूर्ण विभाग की कारगुजारियों पर नजर रखनी चाहिए। अंदर ही अंदर जो चल रहा है उसकी जानकारी होना आवश्यक है। वैसे ही मीडिया जगत में कमलनाथ सरकार की छबि धूमिल है। यदि ऐसे कारनामें और होते रहे तो सरकार तो बदनाम होगी ही जनसंपर्क विभाग भी भ्रष्ट्राचार का अड्डा बन जायेगा।

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