अखबार की पलटीमार परम्परा..

सौजन्य-अपना मोर्चा डॉट कॉम..

‘गिरीश पंकज’

रायपुर.बंदर जैसी गुलाटी मारने की कला कभी-कभी किसी अखबार विशेष से भी सीखी जा सकती है। राजस्थान से निकलने वाले एक बड़े अखबार को हम ताज़ा उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। इसके मालिक एक तरफ नैतिकता की बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हीं के अखबार में निकृष्ट किस्म के अश्लील विज्ञापन भी छपते रहे हैं। मैं उनके इस पाखंड को देखकर शुरू से चकित रहा हूं कि ईमानदारी और बेईमानी के बीच आखिर कैसे इतना ” सुंदर” संतुलन बनाकर ये पत्रकारिता कर रहे हैं। इस अखबार के पिछले कुछ सालों का ट्रैक- रिकॉर्ड भी जब हम देखते हैं, तो चकित रह जाना पड़ता है। इस अखबार का मालिक हर रविवार को बेहतर मनुष्य बनने के जीवन- दर्शन का मंत्र पढ़ाने की कोशिश करता है और दूसरी तरफ राग दरबारी भी गाता है। कमाल है। सत्ता के साथ सुर बदलने की कला इस देश में कुछ पत्रकारों में स्पष्ट नजर आती है। यह अखबार भी इसी परंपरा का अनुगामी है।

वर्तमान लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के पहले तक राजस्थान के इस अखबार में कांग्रेस का गुणगान अधिक नजर आता था। पर्याप्त लाभ न मिलने के कारण शायद इनके सेठ मोदी सरकार से कुछ खार भी खाए हुए थे। छत्तीसगढ़ से जब यह अखबार शुरू हुआ, तब भाजपा की सरकार थी। उस वक्त इनको विज्ञापन मिलने में दिक्कत होने लगी, तो उन्होंने भाजपा के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी। जितना हो सकता था, भाजपा सरकार को कोसने की पूरी कोशिश कर रहे थे। हमारे जैसे अनेक लोगों को लगता था कि वाह, क्या अखबार है । इनकी पत्रकारिता के क्या कहने! लेकिन बहुत बाद में पता चला कि मामला कुछ और है। विज्ञापन न मिलने के कारण इनके अंदर की पत्रकारिता उफन कर बाहर आ रही है। लेकिन जैसे ही बाद में इनको सरकार की ओर से विज्ञापनरूपी टुकड़े डाले जाने लगे, तो अखबार ने अपने सुर भी बदलने शुरू कर दिए। और हालत यह हुई कि ईमानदारी से पत्रकारिता करने वाले कुछ लोगों को इसी अखबार ने हटाने का सिलसिला भी शुरू कर दिया क्योंकि ये पत्रकार भाजपा सरकार की गलत हरकतों के विरुद्ध खबरें लिख रहे थे। अखबार की इस घटिया कार्रवाई के विरुद्ध मैंने उस वक्त भी प्रतिवाद किया था कि यह कौन-सी पत्रकारिता है कि जो सरकार के खिलाफ लिख रहा है, उस रिपोर्टर को आप अपने अखबार से बाहर का रास्ता दिखा दे क्योंकि आपको सरकार के विज्ञापन चाहिए?

इसी अखबार ने मोदी सरकार के आने के बाद तो यकायक यू-टर्न सा ही ले लिया है ।जैसे ही इस चुनाव में मोदी को अप्रत्याशित बहुमत मिला, तो इस अखबार के मालिक ने फौरन पलटी मार ली । 25 मई के अंक में उन्होंने प्रथम पृष्ठ पर बड़ी उदारता के साथ मोदी-वंदना की है। उनकी टिप्पणी की भाषा पढ़ कर सामान्य पाठक भी समझ गया कि अखबार मालिक कितना बड़ा मक्खनबाज़ है,विचारबदलू है । वैसे यह किसी एक अखबार की बात नहीं है। इस देश में समय-समय पर कुछ अखबार सत्ता के अनुसार पाला बदलते रहे हैं। इस अखबार ने भी उसी पलटीमार -परंपरा का निर्वाह किया है। इस अखबार के बारे में पहले से भी लोग यह कहते रहते हैं कि जब जब सरकारें बदलती है इस अखबार के सुर भी बदलते रहते हैं। शायद यह समय-सापेक्ष-पत्रकारिता का नया फंडा है कि जिधर बम,उधर हम। आर्थिक दृष्टि से बम-बम रहने के लिए मीडिया की यह ‘घुटनाटेक पत्रकारिता’ अंततः पत्रकारिता का ही नुकसान करेगी। पत्रकार को निष्पक्ष होकर , तटस्थ होकर पत्रकारिता करनी चाहिए, न किसी दल के साथ राग और न किसी दल के साथ द्वेष। यही उस का मूल मंत्र होना चाहिए। अगर इस भावना से पत्रकारिता होगी तो सरकार किसी की भी रहे, अखबार निर्भीक हो कर उसके खिलाफ लिख सकेगा। बिकी हुई पत्रकारिता सत्ता को आईना नहीं दिखा सकती। और जब और राग दरबारी गाने लगती है, तो बुरी तरह एक्सपोज़ भी हो जाती है।

वैसे ऐसा नहीं है कि यह इकलौता अखबार है ।अनेक अखबार समय-समय पर सुर बदलते रहते हैं । अब तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का पलटीमार-चरित्र भी साफ-साफ नजर आने लगा है । दस दिन पहले तक जिन चैनलों को लग रहा था कि नरेंद्र मोदी की वापसी संभव नहीं है, तो वे नरेंद्र मोदी को कोसते नजर आ रहे थे। लेकिन जैसे ही नरेंद्र मोदी बहुमत में आए, इन चैनलों के सुर बदल गए। यानी मोदी शरणम गच्छामि हो गए। पत्रकारिता तो किसी भी तरह की लाभ हानि की भावना से उठकर की जाने वाली साधना है लेकिन अब शायद पत्रकारिता को मिशन समझने वाला वह दौर ही नहीं रहा। जिस दौर को देखते और जीते हुए कुछ लोग पत्रकारिता किया करते थे ।

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