भ्रष्टाचार की दलदल में इग्नू, उप-कुलपति को यसमैन बनाने की तैयारी

शिवा कुमार

नई दिल्ली.मानव संसाधन विकास मंत्रालय की लूट और लालफीताशाही से स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग का ही बेड़ा गर्क नहीं हो रहा बल्कि मोदी सरकार को जुमले बाज का खिताब मिल रहा है. वर्ष 2015 में देश भर से चयनित 1000 स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था अब तक वित्त आवंटन में हो रही देरी की वजह से चौपट हो रही है। 1000 करोड़ के वित्तीय प्रावधान होने व 2015 से कई सत्र बीत जाने के बावजूद भी अंतिम सूची अभी तक फाइनल नहीं हो पाई है। मंत्रालय से जुड़े कुछ लोगों का यहां तक मानना है कि माल के आधार पर इस सूची में स्कूलों के नाम घटते-जुड़ते जा रहे हैं। सचमुच मंत्रालय की गंभीरता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगता है कि जो अनुदान 2015 में इन 1000 चयनित स्कूलों को मिलना था, 2017-18 के वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद भी उस अनुदान मिलने की उम्मीद की किरण नजर नहीं आती।लूट-खसोट का खेल केवल प्राथमिक शिक्षा तक ही सीमित नहीं, देश ही नहीं विश्व की सर्वोच्च शिक्षण संस्था इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय भी इसकी पूरी चपेट में हैं. कुछ वर्षों से जिस प्रकार से इग्नू में उपकुलपति की नियुक्तियों में नियमों की धज्जियां उड़ाई गई है, उसका उदाहरण विरले ही मिलेगा।

वर्तमान में इग्नू में उपकुलपति के पद की नियुक्ति के लिए जिन तीन सदस्यी पैनल को जिम्मा दिया गया है उनमें आईआईटी कानपुर के पूर्व निदेशक प्रो संजय गोविंद डांडे, यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो हरि गौतम और सीएसआईआर के निदेशक प्रो एस सी जोशी के नाम शामिल हैं। इस पैनल ने 23-24 अक्तूबर 2017 को इग्नू के लिए अंतिम दस लोगों की सूची तैयार की जिसमें से किसी एक को उपकुलपति बनाया जाना तय है। इन दस लोगों में से जिन तीन लोगों प्रो कपिल कुमार, प्रो रविंद्र कुमार श्रीवास्तव और प्रो विनय कुमार पाठक के साक्षात्कार लिए जा चुके हैं, इन तीन लोगों पर गंभीर आपराधिक मामले और भ्रष्टाचार के आरोप साबित हो चुके हैं। आपको बता दें कि उपकुलपति के पद के लिए विजिलेंस क्लियरेंस से प्रमाणपत्र अनिवार्य शर्त है। मगर पैनल के तीनों महानुभावों ने इस बात की भी अनदेखी की जो देश की सुरक्षा व्यवस्था के साथ मोदी के भ्रष्टाचार पर जीरो टालेरेंस पर गंभीर हमला है। प्रो. डांडे की विद्वता पर कोई संदेह नहीं, मगर उनकी कार्यशैली हमेशा विवादित रही है। ये अपनी डिग्री और अपने संस्थान की वजह से भरपूर लाभ उठाने में माहिर माने जाते हैं। यहीं से इनका खुला खेल फर्रूखाबादी शुरू होता है। ये जहां भी गए प्रो विनय पाठक की नियुक्ति का जुगाड़ करते रहे हैं। यहां यह जाना आवश्यक है कि प्रो. पाठक प्रो. डांडे के छात्र रहे हैं और पीएचडी स्कालर हैं। इन दोनों की जुगलबंदी भी कमाल की रही है। ये दोनों उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, कोटा मुक्त विश्वविद्यालय, डा एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय में साथ रहे हैं और अब इग्नू में प्रो डांडे स्क्रीनिंग कमिटी के सदस्य हैं तो प्रो विनय कुमार पाठक उपकुलपति के उम्मीदवार। यानी रेवड़ियां बांटने का सिलसिला अब भी जारी है। प्रो. पाठक भी प्रो. डांडे का पूरा ख्याल रखते हैं, जिन जगहों पर वे पदास्थापित रहे, वहां बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने अपने गुरू को आमंत्रित किया और दोनों एक-दूसरे को लाभान्वित करते रहे हैं।

अब आपको इन तीनों चयनित उम्मीदवार के चरित्र के बारे में बताते हैं। प्रो. कपिल कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और वे जमानत पर रिहा हैं। उन पर केस संख्या 779/110 दिनांक 14 दिसंबर 2015 को मानव संसाधन मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेट्री के पद का दुरूपयोग करने का दोषी पाया गया था। गलत तरीके से पीएफ के पैसे निकासी का दोषी पाए जाने पर धारा 500 आईपीसी के तहत उस पर केस भी दर्ज किया गया था। बाद में वे 3 फरवरी 2016 को 20,000 रूपए के जमानती बांड भरने के बाद उन्हें बेल पर रिहा किया गया। वहीं दूसरे उम्मीदवार प्रो. रविंद्र कुमार श्रीवास्तव पर 2002 में 1993-98 की अवधि में सरकारी कर्मचारी रहते हुए एचआरए एवं अन्य कई सुविधाएं, जिनके वे अधिकारी भी नहीं थे, उसका लाभ उठाया। दरअसल प्रो श्रीवास्तव अपने भाई जो दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी हैं, उनके आवंटित आवास में रहते थे, मगर एचआरए उठाते रहे। उनके खिलाफ सीवीओ रिपोर्ट मंत्रालय में रखी गई है। तीसरे उम्मीदवार प्रो. विनय पाठक को मानव संसाधन मंत्रालय की संसदीय समिति ने दोषी माना है। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का उल्लेख राज्यसभा में मंत्रालय की संसदीय समिति के अपनी 263वीं रिपोर्ट में किया गया है। खास बात है कि प्रो. पाठक की कार्यकारी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति प्रो. एम. असलम ने की थी। प्रो असलम के भ्रष्ट होने का पता मानव संसाधन मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 12 जुलाई 2017 को लिखे गए पत्र से चलता है। मंत्रालय द्वारा जारी पत्रांक संख्या 10-2/2014-डीएल (पीटी 2) के अनुसार प्रो असलम पर विभागीय अनियमितता बरतने व 37 अन्य मामलों में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था। प्रो असलम ने वस्तुस्थिति को देखते हुए प्रो. पाठक को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया जबकि उनके पास ऐसा करने का कोई सांवैधानिक अधिकार तक नहीं था। अपने कार्यकाल में जब विनय पाठक अध्यक्ष रहे तो असलम कार्यकारी उपकुलपति की भूमिका में थे। फिर जिन चार सेवानिवृत प्रोफेसरों को शामिल किया गया था, उसमें प्रो असलम का नाम भी शामिल था। यानी प्रारंभ से गड़बड़झाला। तो सवाल उठता है कि इन सभी चयनित उम्मीदवारों को क्लीन चिट कैसे मिली। प्रो. असलम ने डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल के कुछ कर्मचारियों के साथ मिलकर बिना जांच के कई निजी विश्वविद्यालय को मंजूरी दी थी। मंजूरी देते समय नियम कायदों का कोई ध्यान नहीं रखा गया। उन पर धारा 167 (गलत दस्तावेज तैयार करने) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था। पूर्व में इग्नू में वी. एन. राजशेखरन पिल्लै के कुलपति पद पर रहने के दौरान (2006-2011) बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार, निजी संगठनों को अवैध ढंग से लाभ पहुंचाने और इस तरह विश्वविद्यालय के राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाने तथा नियुक्तियों में की गई धांधलियों को लेकर विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने 2009 में ही केंद्रीय सतर्कता आयोग को शिकायत की थी। इन शिकायतों की जांच करने के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपने निष्कर्षों को मानव संसाधन मंत्रालय को आगे कार्रवाई के लिए भेजा था, लेकिन तत्कालीन कुलपति और ऊंचे पदों पर बैठे राजनेताओं और नौकरशाहों के नापाक गठजोड़ ने इन अनियमितताओं और भ्रष्टाचार पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं होने दी।

हद तो तब हो गई जब इस पूरे मामले को इग्नू के डा. आर. सुदर्शन ने संज्ञान में लाने का प्रयास किया तो उन्हें दो साल तक निलंबित कर दिया गया। डा. सुदर्शन ने इस बाबत पीएमओ से सीधा संवाद भी किया है और 27 अक्तूबर को लिखे गए ईमेल में सभी मामलों का जिक्र भी किया है, मगर नतीजा ढाक के तीन पात। इसके पूर्व वे 11 सितंबर 2017 को राष्ट्रपति, यूपी के राज्यपाल राम नायक सहित मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों को पत्र एवं ईमेल भेज चुके हैं, मगर अभी तक इस पर कोई कार्रवाही होती नहीं दिखती, न ही विषय की गंभीरता को देखते हुए कोई संज्ञान की लिया गया है। इग्नू में अपने यसमैन को उप-कुलपति बनवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने की परंपरा जो यूपीए के कार्यकाल में शुरू हुई थी, एनडीए के आने के बाद आज भी बदस्तूर जारी है.

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